देश में चल रहे भाषा विवाद के बीच केंद्रीय मंत्री अमित शाह का एक नया राजनीतिक बयान आया है. अमित शाह ने बड़ी ही खूबसूरती से इस बार सीधे सीधे अंग्रेजी भाषा को ही टार्गेट किया है. अमित शाह ने एक बार में ही कई निशाने भेद डाले हैं.
अंग्रेजी पर आई अमित शाह की राय में निशाने पर वे सभी अंग्रेजी भाषी हैं, जो किसी न किसी रूप में हिंदी विरोधी भी माने जाते हैं. अमित शाह ने पहले जब भी हिंदी की बात की है, विवाद खड़ा हो जाता है, और लड़ाई राजनीतिक हो जाती है. भाषा के साथ साथ क्षेत्रीय राजनीति भी एकजुट हो जाती है.
संसद में बहस के दौरान भी नेताओं को भाषा के नाम भिडे़ देखा गया है. ऐसा लगता है जैसे एक पूरा इलाका हिंदी के खिलाफ लामबंद हो गया हो. ऐसा लगता है, जैसे देश अचानक उत्तर और दक्षिण में बंट गया हो. एक तरफ हिंदी वाले, और दूसरी तरफ हिंदी विरोधी.
सवाल खड़ा हो जाता है, सवाल पूछने पर भी बिल्कुल नई बहस शुरू हो जाती है. प्रश्न हिंदी में पूछा गया तो जवाब अंग्रेजी में क्यों दिया गया. अंग्रेजी में प्रश्न पूछा गया तो जवाब हिंदी में क्यों दिया गया. एक तरफ हिंदी भाषा के हिमायती खड़े हो जाते हैं, और दूसरी तरफ एंटी-हिंदी कम्युनिटी हाथ मिला लेती है.
हाल फिलहाल ये बवाल राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में तीन भाषाओं की अनिवार्यता को लेकर हो रहा है. नई शिक्षा नीति में छात्रों के लिए तीन भाषाएं सीखने का प्रावधान किया गया है.अंग्रेजी, हिंदी और एक स्थानीय भाषा. और त्रिभाषा फॉर्मूले को लेकर विरोध की आवाज उठ रही है, दक्षिण भारत से. तमिलनाडु से. सत्ताधारी डीएमके के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन राज्य की सिर्फ दो-भाषाएं सिखाये जाने की अनिवार्यता पर अड़े हुए हैं.
पहले भी अमित शाह के बयान का दक्षिण के नेताओं ने ये कहते हुए विरोध किया है कि हिंदी जबरन थोपी जा रही है. यही वजह है कि अमित शाह ने अब सिर्फ हिंदी की बात करने के बजाय सभी भारतीय भाषाओं की बात की है, और विरोध सिर्फ अंग्रेजी का किया है.
अंग्रेजी का विरोध तो हिंदी की हिमायत ही है
एक किताब के विमोचन के मौके पर अमित शाह ने कहा, 'मेरी बात ध्यान से सुनिए, और याद रखिए… देश में अंग्रेजी बोलने वालों को शर्म आएगी, ऐसे समाज का निर्माण अब दूर नहीं है… चीजों को वो ही कर पाते हैं, जो एक बार अपने मन में ठान लेते हैं, और मैं मानता हूं कि हमारे देश की भाषाएं, हमारा गहना हैं… इनके बिना हम भारतीय नहीं हैं… आप किसी विदेशी भाषा में अपने इतिहास, संस्कृति और धर्म को नहीं समझ सकते.'
अमित शाह का कहना है, अधूरी विदेशी भाषाओं के साथ संपूर्ण भारत की कल्पना नहीं की जा सकती... मैं इस बात से पूरी तरह वाकिफ हूं कि लड़ाई कितनी कठिन है… मुझे पूरा विश्वास है कि भारतीय समाज ये लड़ाई जीतेगा और अपनी भाषाओं पर गर्व करते हुए हम अपने देश को चलाएंगे, विचार करेंगे, शोध करेंगे, निर्णय लेंगे और दुनिया पर शासन करेंगे. किसी को संदेह करने की कोई जरूरत नहीं है.
अंग्रेजी विरोध की राजनीति काफी पुरानी रही है. राम मनोहर लोहिया से लेकर मुलायम सिंह यादव तक हिंदी के हिमायती, और कट्टर अंग्रेजी के विरोधी रहे हैं. हिंदी पट्टी के और भी नेता हैं, जो अंग्रेजों से लेकर दक्षिण के हिंदी विरोध के खिलाफ मोर्चा संभालते रहे हैं.
हिंदी के पक्ष में अमित शाह ने भी काफी बोल्ड स्टेटमेंट दिया है, जो राजनीतिक रूप से भी दुरुस्त है. क्षेत्रीय भाषाओं की वकालत, और अंग्रेजी का सीधा विरोध. अंग्रेजी का विरोध तो हिंदी की हिमायत ही है.
क्या हिंदी भी चुनावी मुद्दा बन सकती है
अगले साल, 2026 में ऐसे दो राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, जहां हिंदी विरोध के स्वर अक्सर सुनाई देते रहे हैं. ये राज्य हैं, केरल और तमिलनाडु.
केरल से आने वाले शशि थरूर आज की तारीख में भले ही राष्ट्रवादी नजर आ रहे हों, पहलगाम में खुफिया चूक और ऑपरेशन सिंदूर के बाद सीजफायर तक, हर तरफ छाये हुए हैं. सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के साथ पूरी दुनिया में भारत का पक्ष भी रख आये हैं. बेशक, ये सब वो अपनी शानदार अंग्रेजी के दम पर आसानी से कर लेते हों, लेकिन जैसे ही हिंदी की बात आती है, कट्टर विरोधी बन जाते हैं.
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन तो हिंदी की वजह से ही नई शिक्षा नीति का भी विरोध कर रहे हैं. नई शिक्षा नीति में तीन भाषाएं सिखाए जाने की अनिवार्यता है, जिसमें एक हिंदी है और डीएमके नेता को ये बिल्कुल भी पसंद नहीं है.
एमके स्टालिन का कहना है, राष्ट्रीय शिक्षा नीति शिक्षा नीति नहीं है… ये भगवाकरण की नीति है… इस नीति को भारत के विकास के लिए नहीं, बल्कि हिंदी के विकास के लिए बनाया गया है… ये नीति तमिलनाडु की शिक्षा प्रणाली को पूरी तरह से तबाह कर देगी… इसीलिए इसका विरोध कर रहे हैं.
तमिलनाडु में द्विभाषा फॉर्मूला लागू है. एक तमिल और दूसरी अंग्रेजी. स्टालिन का मानना है कि नई शिक्षा नीति से राज्य की स्वायत्तता और भाषाई विविधता कम हो जाएगी.
एमके स्टालिन के विरोध पर अमित शाह ने पहले अपने तरीके से समझाने की कोशिश भी की है. लहजा तो राजनीतिक होना स्वाभाविक भी है. अमित शाह ने CISF के स्थापना दिवस समारोह में कहा था, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने ये सुनिश्चित किया है कि परीक्षा तमिल में दी जा सके.
तमिलनाडु के ही रानीपेट जिले के आरटीसी थक्कोलम में CISF के स्थापना दिवस पर अमित शाह ने कहा था, मैं तमिलनाडु के मुख्यमंत्री से छात्रों के फायदे के लिए राज्य में तमिल में इंजीनियरिंग और मेडिकल शिक्षा शुरू करने की अपील करता हूं.
मान कर चलना होगा, 2026 के तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में ये सब कई बार देखने को मिल सकता है. अब तक तमिलनाडु और केरल के नेता हिंदी के विरोध में एक साथ खड़े हो जाते रहे हैं, अब अगर वैसा ही विरोध अंग्रेजी के खिलाफ नहीं देखने को मिला तो बीजेपी राष्ट्रवाद का एजेंडा तो आगे बढ़ा ही देगी - और जवाब तो सबको देना पड़ेगा.