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पाकिस्तान में दिखावे का भी लोकतंत्र नहीं बचा, मुनीर पर ट्रंप की मुहर के बाद पड़ोस में अघोषित मार्शल लॉ

सोशल मीडिया पर भी शहबाज शरीफ के बारे में एक X पोस्ट वायरल है जिसमें कहा गया है कि शाहबाज शरीफ को पाकिस्तानी सेना ने केवल कटोरा पकड़ने के लिए रखा है, बाकी सारी डील और मुलाकात आर्मी प्रमुख असीम मुनीर खुद ही कर लेते हैं.

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पाकिस्तानी सेना के फील्ड मार्शल आसिम मुनीर और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ
पाकिस्तानी सेना के फील्ड मार्शल आसिम मुनीर और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ

पाकिस्तान में लोकतंत्र का स्वरूप लंबे समय से विवादों और संदेहों के घेरे में रहा है. पिछले दशक में लगातार 2 चुनावों के बाद पड़ोसी देश में भी लोकतंत्र फलने-फूलने की संभावनाएं दिखने लगीं थी. पर यह ज्यादा दिन नहीं चल सका है. इमरान खान की पार्टी को सबसे ज्यादा सीटें मिलने के बाद भी जेल से रिहाई न हो सकी. पाकिस्तानी फौज को निशाना बनाने के चलते उन्हें इस तरह फंसाया गया कि शायद जीते जी वह जेल से कभी बाहर न आ सकें. पीएम शहबाज शरीफ के नेतृत्व में आंशिक ही सही कम से कम कहने को तो लोकतंत्र पाकिस्तान में बचा हुआ था. 

पर जिस तरह पिछले कुछ महीनों में सेना प्रमुख आसिम मुनीर मजबूत हुए हैं यह दिखावे का लोकतंत्र भी जाता रहा है इस देश में. पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तानी फील्ड मार्शल को जो इज्जत बख्शी है उसके बाद तो मुनीर के पांव जमीन पर नहीं पड़ने वाले है. जाहिर है कि अब दिखावे का भी लोकतंत्र नहीं बचेगा पाकिस्तान में आज की तारीख में पाकिस्तान के सेना प्रमुख, जनरल असीम मुनीर, देश की राजनीति और नीतियों को नियंत्रित करने वाले सर्वोच्च शक्ति केंद्र हैं. अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश ने भी पाक पीएम के बिना  मुनीर से बात चीत करना उचित समझा. अब प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ एक कठपुतली की तरह केवल नाममात्र के नेता हैं. 

पाकिस्तान की स्थापना के बाद से ही सेना ने देश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. 1958 में अयूब खान के सैन्य तख्तापलट से लेकर परवेज मुशर्रफ के शासन तक, सेना ने बार-बार लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को बाधित किया है. हाल के दशकों में, भले ही प्रत्यक्ष सैन्य शासन कम हुआ हो, सेना का प्रभाव कम नहीं हुआ. 2022 में इमरान खान की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव, जिसे कई विश्लेषकों ने सेना द्वारा प्रायोजित माना, इसका एक उदाहरण है.

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1- शाहबाज शरीफ, एक कमजोर प्रधानमंत्री की चुप्पी 

सोशल मीडिया पर भी शहबाज शरीफ के बारे में एक X पोस्ट वायरल है जिसमें कहा गया है कि शाहबाज शरीफ को पाकिस्तानी सेना ने केवल कटोरा पकड़ने के लिए रखा है, बाकी सारी डील मुलाकात आर्मी प्रमुख असीम मुनीर खुद ही कर लेते हैं. यह जनता की उस भावना को दर्शाता है कि शाहबाज का शासन केवल सैन्य नेतृत्व की मर्जी पर निर्भर है.
 शाहबाज शरीफ, जो 2024 के आम चुनावों के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने, को सेना की पसंद माने जाते हैं.शाहबाज की पार्टी, PML-N, ने सेना के समर्थन से गठबंधन सरकार बनाई, भले ही इमरान खान की PTI ने सबसे अधिक सीटें जीती थी. यह स्थिति स्पष्ट करती है कि शाहबाज का प्रधानमंत्री बनना जनादेश से कम और सैन्य हस्तक्षेप से अधिक था. पर आज की तारीख में जिस तरह उन्हें सुपरसीड करके आसिम मुनीर को अमेरिका ने तवज्जो दी है उससे शरीफ को परेशानी महसूस हो रही है. इसे इस तरह देखा जा सकता है कि शहबाज ने अमेरिका में मुनीर और ट्रंप की मुलाकात पर कोई टिप्पणी नहीं की है. यही नहीं उनका ट्वीटर हैंडल भी चुप्पी साधे हुए है.

पर शाहबाज पहले ही निस्तेज पड़ चुके है. यह बात कई बार देखने को मिली जिससे ऐसा लगा कि वह केवल एक दिखावे के नेता हैं. उदाहरण के लिए, मई 2025 में भारत के ऑपरेशन सिंदूर के दौरान, शाहबाज ने स्वीकार किया कि सेना प्रमुख असीम मुनीर ने उन्हें रात 2:30 बजे सूचित किया था कि भारतीय मिसाइलों ने नूर खान एयरबेस पर हमला किया है. यह स्वीकारोक्ति दर्शाती है कि महत्वपूर्ण सैन्य और राष्ट्रीय सुरक्षा निर्णयों में शाहबाज की भूमिका नगण्य है. इसके अलावा, शाहबाज द्वारा असीम मुनीर को एक फर्जी तस्वीर उपहार में देना, जिसे ऑपरेशन बुनयान-उल-मरसूस के रूप में प्रस्तुत किया गया, ने उनकी विश्वसनीयता को और कमजोर किया.

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2- अमेरिका की स्वीकारोक्ति: सेना ही असली सत्ता

अमेरिका, जो लंबे समय से पाकिस्तान का रणनीतिक साझेदार रहा है, ने भी अप्रत्यक्ष रूप से स्वीकार किया है कि पाकिस्तान में सैन्य नेतृत्व ही वास्तविक सत्ता का केंद्र है. हाल ही में, जब अफवाहें थीं कि असीम मुनीर को अमेरिकी आर्मी डे परेड में आमंत्रित किया गया था, तो अमेरिका ने इसका खंडन किया. इसके बावजूद, वाशिंगटन डीसी में पाकिस्तानी-अमेरिकियों ने मुनीर के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किए, जिसमें लोकतंत्र बहाली की मांग की गई. इस विरोध प्रदर्शन से पता चलता है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी पाकिस्तान में सेना की सर्वोच्चता को पहचान रहा है.

पाकिस्तान के साथ अमेरिका के संबंध इस तरह जटिल हैं कि इसे समझना मुश्किल है. एक तरफ अमेरिका आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान से सहयोग चाहता है, लेकिन दूसरी तरफ वह पाकिस्तानी सेना की राजनीतिक हस्तक्षेप को लेकर चिंतित है. लोग बहुत पहले से कहते रहे हैं कि PAKISTAN  में तीन A  महत्वपूर्ण एक अल्ला, दूसरा ऑर्मी और तीसरा अमेरिका. एक बार वही कहानी दुहराई जा रही है. 

अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से अमेरिका, ने पाकिस्तान में सैन्य वर्चस्व को मौन स्वीकृति दी है, क्योंकि यह आतंकवाद विरोधी और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए उनके हितों को पूरा करता है. हालांकि, यह स्वीकृति लोकतंत्र के लिए हानिकारक है. शाहबाज शरीफ की नाममात्र की भूमिका और असीम मुनीर का प्रभुत्व इस बात का प्रमाण है कि देश में सैन्य शक्ति नागरिक शासन को पूरी तरह नियंत्रित कर रही है. 

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अमेरिका और अन्य अंतरराष्ट्रीय शक्तियों की मौन स्वीकृति ने इस स्थिति को और जटिल बना दिया है. लोकतंत्र की बहाली के लिए न केवल आंतरिक सुधारों की जरूरत है, बल्कि सेना के राजनीतिक हस्तक्षेप को सीमित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय दबाव भी आवश्यक है. इमरान खान जैसे नेताओं की रिहाई और स्वतंत्र चुनाव इस दिशा में पहला कदम हो सकते हैं. हालांकि, जब तक सेना अपनी शक्ति छोड़ने को तैयार नहीं होती, तब तक पाकिस्तान में सच्चा लोकतंत्र एक दूर का सपना बना रहेगा.

3. लोकतंत्र का पतन, इमरान खान का मामला

पाकिस्तान में लोकतंत्र की स्थिति को समझने के लिए इमरान खान का उदाहरण महत्वपूर्ण है. 2022 में अविश्वास प्रस्ताव के जरिए उनकी सरकार को हटाया गया, जिसे व्यापक रूप से सेना द्वारा समर्थित माना गया. इसके बाद, PTI के खिलाफ कठोर कार्रवाई की गई, जिसमें पार्टी नेताओं की गिरफ्तारी और समर्थकों पर दमन शामिल है. न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट में बताया गया कि PTI समर्थकों ने न्यूयॉर्क के टाइम्स स्क्वायर में एक डिजिटल बिलबोर्ड के जरिए मुनीर और शाहबाज की आलोचना की, उन्हें धोखेबाज और चोर करार दिया.  मतलब साफ है कि पीटीआई को दबाने की कोशिश के बावजूद पाक फौज का विरोध करने वाले पाकिस्तानियों का जज्बा कायम है.

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इमरान खान ने जेल से भी देशव्यापी आंदोलन की घोषणा की, और PTI के एक वरिष्ठ नेता, गौहर अली खान ने दावा किया कि खान 11 जून 2025 को रिहा हो सकते हैं.पर यह सब कार्यकर्ताओं में एक उम्मीद बनाए रखने की कोशिश ही मात्र है. अमेरिका से लौटने के बाद मुनीर और मजबूत हो चुके हैं.लोकतंत्र समर्थकों का दमन होना तय है.

4. भू-राजनीतिक प्रभाव और क्षेत्रीय अस्थिरता

पाकिस्तान में सैन्य वर्चस्व का प्रभाव केवल आंतरिक राजनीति तक सीमित नहीं है; यह क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता को भी प्रभावित करता है. मई 2025 में भारत के ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तान की सैन्य और राजनीतिक कमजोरियों को उजागर किया. शाहबाज शरीफ ने स्वीकार किया कि भारत ने पाकिस्तान के नियोजित हमले को विफल कर दिया, जो सैन्य नेतृत्व की रणनीतिक विफलता को दर्शाता है.

इसके अलावा, शाहबाज शरीफ ने ईरान-इजरायल संघर्ष में ईरान का समर्थन किया और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से इजरायल के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है. यह कदम सैन्य नेतृत्व की मंजूरी के बिना संभव नहीं था, क्योंकि पाकिस्तान की विदेश नीति पर सेना का गहरा प्रभाव है. सोशल मीडिया पर लोग कह रहे हैं कि शाहबाज शरीफ डंके की चोट पर ईरान का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन मुनीर अमेरिका में ट्रंप से मुलाकात कर रहे हैं.

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