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पचेटी माताजी... नौकरी, शादी और संतान के लिए यहां भक्त लेने आते हैं 'पट्टा'

MP News: आगर मालवा से 15 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर स्थित है पचेटी माता का दरबार. मंदिर तक पहुंचने का रास्ता पहाड़ी से होकर जाता है. मंदिर के समीप टिल्लर डेम है, जहां सालभर पानी रहता है, और पास ही पचेटी गांव बसा है.

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एक ओर मां चांदिका और दूसरी ओर मां पार्वती.(Photo:ITG)
एक ओर मां चांदिका और दूसरी ओर मां पार्वती.(Photo:ITG)

MP News: आगर मालवा जिले में पचेटी माताजी का मंदिर अपनी अनूठी 'पट्टा' यानी गारंटी परंपरा के लिए देशभर में प्रसिद्ध है. भक्त यहां सुख-शांति, व्यापार, विवाह, नौकरी, संतान सुख और जमीन से पानी प्राप्त करने के लिए माता रानी से पट्टा लेने आते हैं. माता का आशीर्वाद भक्तों को बांधे रखता है.

मंदिर के पुजारी मांगीलाल बताते हैं कि यह गांव तीन बार बसा. सतयुग में यहां बनिया समाज रहता था, फिर राजा-महाराजाओं का शासन रहा और अब पचेटी गांव पुनः बसा है. माता रानी की प्रतिमा अनादिकाल से स्वयंभू रूप में प्रकट हुई है. मूर्ति का आधा हिस्सा जमीन से बाहर दिखता है, जबकि निचला हिस्सा अज्ञात है. माता दो रूपों में विराजती हैं- एक ओर मां चांदिका और दूसरी ओर मां पार्वती.

मंदिर के चारों ओर 24 स्तंभ हैं, और पूरा मंदिर संगमरमर से बना है. सभा मंडप का गुम्बद वास्तुशास्त्र के अनुसार निर्मित है. संगमरमर की कारीगरी और नक्काशी देखते ही बनती है. मंदिर में भक्त अपनी मनोकामना के लिए उल्टा स्वास्तिक बनाते हैं, जो पूर्ण होने पर सीधा कर दिया जाता है. मंदिर परिसर में प्राचीन बावड़ी है, जहां पानी कभी खत्म नहीं होता. यह बावड़ी भक्तों के लिए सालभर पानी का भंडार है. बावड़ी में पानी लाने के लिए विशेष पत्थर के मुख बने हैं. 

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नवरात्रि में यहां मिट्टी की बाड़ी बनाई जाती है, जिसकी नौ दिन तक पूजा होती है. माता रानी को बाड़ी माता के नाम से भी जाना जाता है. उनकी 'पट्टा' परंपरा देशभर में मशहूर है. भक्त नौकरी, विवाह और जमीन से पानी निकालने के लिए मिट्टी लाकर पट्टा लेते हैं. 

पुजारी बताते हैं कि संतान प्राप्ति के लिए भी भक्त पट्टा लेते हैं. मनोकामना पूरी होने पर परिजन संतान के साथ मंदिर आकर पालना चढ़ाते हैं.पट्टा प्रक्रिया में भक्त सात नारियल लेकर आते हैं. पुजारी नारियल तोड़कर उसका एक टुकड़ा (चटक) मन्नत के स्मरण के बाद माता की मूर्ति पर चिपकाते हैं. यदि चटक गिर जाए, तो मन्नत स्वीकार मानी जाती है और माता ने कार्यसिद्धि का पट्टा दे दिया. यदि चटक चिपकी रह जाए, तो कार्यसिद्धि में सफलता नहीं मिलती.

एक भक्त प्रधानसिंह के परिजन नदी में बह गए और उनका पता नहीं चला. उन्होंने माता से पट्टा लिया और उन्हें पूरा विश्वास है कि जल्द ही उनका परिजन मिल जाएगा. मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है, और देशभर से लोग दर्शन, आशीर्वाद और पट्टा लेने आते हैं.

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