MP News: भोपाल का इज्तिमा केवल एक धार्मिक जमावड़ा नहीं, बल्कि यह दुनिया में अमन, भाईचारे और इंसानियत का संदेश देने वाला आयोजन है. हर साल नवंबर के महीने में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में यह इज्तिमा दुनियाभर के मुसलमानों को एक मंच पर लाता है और इसे ‘तबलीगी इज्तिमा’ भी कहते हैं.
क्यों है भोपाल का इज्तिमा खास?
भोपाल का इज्तिमा अपनी विशालता और अनुशासन के लिए जाना जाता है. तीन से चार दिन चलने वाला यह आयोजन लाखों लोगों को एक जगह इकट्ठा करता है, लेकिन इतनी बड़ी भीड़ के बावजूद यहां व्यवस्था का अद्भुत उदाहरण देखने को मिलता है. यहां न केवल धार्मिक प्रवचन होते हैं, बल्कि जीवन में सादगी, इंसानियत और भाईचारे का संदेश भी दिया जाता है. किसी भी राजनीतिक या सांप्रदायिक मुद्दे पर चर्चा नहीं होती बल्कि पूरा ध्यान सिर्फ धर्म, शांति और नैतिक जीवन पर होता है. भोपाल का इज्तिमा यह दिखाता है कि किस तरह धार्मिक आयोजन भी समाज में अनुशासन, एकता और भाईचारे का उदाहरण बन सकते हैं.
क्या है भोपाल के इ्ज्तिमा का इतिहास
आपको बता दें कि हिंदुस्तान में इज्तिमा सिर्फ भोपाल में ही होता है. इज्तिमा में देश-विदेश से जमातें आती हैं और इस दौरान इस्लाम के अनुयायी धर्म की शिक्षा हासिल करने और सिखाने आते हैं. दुनिया भर में सिर्फ 3 देशों भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में इज्तिमा का आयोजन होता है.
- पहले इज्तिमा का आयोजन भोपाल के इब्राहिमपुरा स्थित मस्जिद शकूर खां में किया गया.
- पहले इज्तिमा में महज 14 लोग जुटे थे
- भोपाल इज्तिमा की नींव मौलाना मिस्कीन साहब ने रखी थी
- साल 1971 से इज्तिमा का आयोजन बड़े स्वरूप में भोपाल की ही ताजुल मसाजिद में होने लगा
- साल 2002 तक ताजुल मसाजिद परिसर में इज्तिमा का आयोजन किया जाता था
- लेकिन इज्तिमा में बढ़ती भीड़ को देखते हुए साल 2003 से इज्तिमा का आयोजन भोपाल से सटे ईंटखेड़ी में होने लगा
कितना विशाल और भव्य होता है यह आयोजन?
भोपाल के बाहर ईंटखेड़ी के घासीपुरा इलाके में इस साल करीब 300 एकड़ में फैला यह आयोजन किसी अस्थायी शहर जैसा होता है जहां हर साल देश और विदेश से लाखों लोग पहुंचते हैं. इस साल भी करीब 15 लाख लोगों के आने का अनुमान जताया जा रहा है. इनमें भारत के अलग-अलग राज्यों के अलावा श्रीलंका, नेपाल, सऊदी अरब, इंडोनेशिया और अफ्रीकी देशों से आए प्रतिनिधि भी शामिल होते हैं. तीन दिन तक चलने वाले इस इज्तिमा में नमाज़, दुआ, तकरीरें (धार्मिक प्रवचन) और सामूहिक प्रार्थनाएं होती हैं. आखिरी दिन की अखिरी दुआ में लाखों लोग शामिल होकर पूरी दुनिया में अमन-चैन के लिए दुआ की जाती है.
इज्तिमा कमिटी के मुताबिक,