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कोच्चि टस्कर्स को ₹538 करोड़ मिलने का रास्ता साफ, बॉम्बे हाईकोर्ट ने खारिज की BCCI की याचिका

न्यायमूर्ति आर.आई. चागला की एकल पीठ ने BCCI को फैसले के खिलाफ अपील करने के लिए दो सप्ताह की अतिरिक्त मोहलत दी है. अदालत ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों से इन पुरस्कारों पर सशर्त स्थगन (conditional stay) लगा हुआ था, इसीलिए कोच्चि टस्कर्स को भुगतान के लिए दो सप्ताह का समय और दिया गया है.

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बॉम्बे हाईकोर्ट (फाइल फोटो)
बॉम्बे हाईकोर्ट (फाइल फोटो)

बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) की अब बंद हो चुकी टीम कोच्चि टस्कर्स केरल के पक्ष में दिए गए दो मध्यस्थता (arbitration) पुरस्कारों को चुनौती देने वाली भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) की याचिकाएं खारिज कर दीं. ये अवार्ड कुल ₹538 करोड़ से ज्यादा के हैं.

हालांकि, न्यायमूर्ति आर.आई. चागला की एकल पीठ ने BCCI को फैसले के खिलाफ अपील करने के लिए दो सप्ताह की अतिरिक्त मोहलत दी है. अदालत ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों से इन पुरस्कारों पर सशर्त स्थगन (conditional stay) लगा हुआ था, इसीलिए कोच्चि टस्कर्स को भुगतान के लिए दो सप्ताह का समय और दिया गया है.

क्या था पूरा मामला?

BCCI ने 2015 में हाईकोर्ट में दो मध्यस्थता याचिकाएं दायर की थीं, जिनमें 22 जून 2015 को कोच्चि क्रिकेट प्राइवेट लिमिटेड (KCPL) और रेंडेज़वस स्पोर्ट्स वर्ल्ड (RSW) के पक्ष में दिए गए फैसलों को चुनौती दी गई थी. RSW ने अप्रैल 2010 में एक फ्रैंचाइज़ी एग्रीमेंट के तहत कोच्चि स्थित टीम के अधिकार जीते थे. इसके बाद KCPL नाम से एक संयुक्त कंपनी बनाई गई, जिसे नवंबर 2010 में टीम का अधिकार मिला. लेकिन मार्च 2011 तक आवश्यक बैंक गारंटी जमा न कराने पर BCCI ने सितंबर 2011 में अनुबंध समाप्त कर दिए. KCPL और RSW ने इसके खिलाफ 2012 में मध्यस्थता का रास्ता अपनाया.

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मध्यस्थता में क्या फैसला हुआ?

2015 में मध्यस्थ ने BCCI की याचिका को खारिज कर दिया और निर्देश दिया कि BCCI को KCPL को ₹385.55 करोड़ 18% ब्याज सहित देना होगा. RSW को ₹153.34 करोड़ 18% ब्याज सहित देने का निर्देश दिया गया, जो अनुबंध समाप्त करने की तारीख से लेकर भुगतान की तारीख तक लागू होगा.

BCCI की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रफीक डाडा ने दलील दी कि मध्यस्थ ने अहम अनुबंध शर्तों को नजरअंदाज कर दिया, जैसे कि बैंक गारंटी जमा करने की समयसीमा और बिना लिखित सहमति के शर्तों में बदलाव न होने की बात.

अदालत ने कहा कि मध्यस्थ का आदेश "विचारपूर्वक और साक्ष्यों के आधार पर" दिया गया है. अदालत ने यह भी कहा कि BCCI द्वारा बैंक गारंटी का अनुचित उपयोग अनुबंध की गलत व्याख्या और उल्लंघन था.

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