पंजाब में सियासत परिवारों को विरासत में मिली है. यहां सरकारें तो बदल जाती हैं, जो नहीं बदलती है वो है रिश्तेदारी. चुनाव आते हैं, खत्म हो जाते हैं. फिर सत्ता एक घराने से प्रस्थान कर दूसरे खानदान में चली जाती है और राज्य की राजनीति में आया अस्थायी संतुलन हर पांच साल बाद बैलेंस हासिल कर लेता है. इन घरानों में आपसी शादियां होती हैं, रिश्तेदारी है. राजनीति और रिश्तेदारी का ये नेटवर्क सुनिश्चित करता है कि कोई भी परिवार लंबे समय तक सत्ता के सुख से वंचित न रहे.
पटियाला से कैप्टन की शाही फैमिली, लंबी के बादल, सराय नागा के बराड़, मजीठिया, कैरों और मान, राज्य के ये वो राजनीतिक परिवार हैं जिनके आसपास वर्षों से पंजाब की राजनीति घूम रही है. हालांकि साल 2017 में आम आदमी पार्टी (AAP) ने 6 खानदानों के इस दबदबे को गंभीर चुनौती तब दी जब पहले ही प्रयास में पार्टी ने 20 विधानसभा सीटों पर कब्जा जमा लिया. इस बार चंडीगढ़ के नगर निगम चुनावों में भी AAP ने अपने रुतबे का ट्रेलर दिखा दिया है.
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बादलों का वर्चस्व
94 साल के प्रकाश सिंह बादल इस सियासी परिवार के चीफ पैट्रन हैं. चार बार मुख्यमंत्री रहे प्रकाश सिंह बादल ने शिरोमणि अकाली दल (SAD) की स्थापना की थी और वे सिख राजनीति के सिरमौर हैं. अभी उनके पुत्र सुखबीर सिंह बादल SAD के कर्ता-धर्ता हैं. बादलों का राजनीतिक संबंध कई परिवारों से रहा है. मजीठिया फैमिली से इनके नजदीकी संबंध हैं. मजीठिया राजपरिवार से आने वालीं हरसिमरत कौर प्रकाश सिंह बादल की बहू और सुखबीर बादल की पत्नी हैं. मजीठिया परिवार खुद को सिख शासक महाराजा रणजीत सिंह के मजीठिया सेनापति अत्तर सिंह मजीठिया का वंशज बताता है. हरसिमरत बादल ने 2009 में अपनी राजनीतिक पारी शुरू की. जब उन्होंने बठिंडा सीट से पटियाला राजपरिवार के उत्तराधिकारी और पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह के बेटे रनिंदर सिंह को हराया.
पंजाब की राजनीति में इन दिनों चर्चित रहे बिक्रम सिंह मजीठिया पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल के भाई हैं. हाल ही में पंजाब की चरणजीत सिंह चन्नी सरकार ने ड्रग्स रैकेट मामले में बिक्रम सिंह मजीठिया के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है.
प्रकाश सिंह बादल के भाई गुरदास बादल खुद सांसद और विधायक रहे. उनके बेटे मनप्रीत बादल ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत तो अकाली दल से की लेकिन बाद में चाचा प्रकाश सिंह बादल से उनका मनमुटाव हुआ. उन्होंने अकाली दल छोड़ दिया अपनी पार्टी बनाई जिसका विलय बाद में कांग्रेस में हो गया. इस वक्त वह पंजाब सरकार में वित्त मंत्री हैं और बठिंडा शहरी से विधायक हैं.
बादल परिवार के मुखिया प्रकाश सिंह बादल 2017 तक पंजाब के मुख्यमंत्री रहे. 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में सीएम पद पटियाला परिवार के कैप्टन अमरिंदर सिंह के पास आ गया. तब उन्होंने राज्य में कांग्रेस के नेतृत्व में जीत हासिल की.

पटियाला की विरासत
पटियाला लंबे समय से पंजाब की राजनीति की धुरी रहा है. पटियाला कुनबे ने अपने राजनीतिक हैसियत और प्रभाव से पंजाब को प्रभावित किया है. पटियाला राजपरिवार का कांग्रेस से लंबे समय तक संबंध रहा. हालांकि अभी कैप्टन और कांग्रेस की राहें जुदा हैं. लेकिन 2002 में कैप्टन अमरिंदर सिंह जब प्रकाश सिंह बादल को हराकर पहली बार सीएम बने थे तो उन्होंने कांग्रेस का ही झंडा उठा रखा था.
कैप्टन अमरिंदर के पिता यदविंदर सिंह और मां मोहिंदर कौर दोनों ही कांग्रेस से जुड़े थे. मोहिंदर कौर पहले कांग्रेस की ओर से राज्यसभा गईं फिर चौथी लोकसभा (1967-71) में वह पटियाला से कांग्रेस के टिकट पर सांसद बनीं. इंदिरा गांधी से उनके नजदीकी संबंध थे.
कैप्टन अमरिंदर के पिता यदविंदर सिंह का हेग में निधन तब हुआ था जब वे नीदरलैंड में भारत के राजदूत के हैसियत से काम कर रहे थे. कैप्टन अमरिंदर सिंह सेना को अपना पहला प्यार बताते हैं. उन्हें राजनीति में लेकर आए राजीव गांधी. राजीव उनके स्कूल के दिनों के दोस्त थे. 1980 में कैप्टन अमरिंदर पटियाला सीट से लोकसभा चुनाव में उतरे और विजयी रहे.
1984 के बाद अमरिंदर अकाली दल में चले गए फिर कांग्रेस में वापसी की. परनीत कौर कैप्टन अमरिंदर की पत्नी हैं. परनीत कौर स्वयं तीन बार सांसद रह चुकी हैं. वह मनमोहन सिंह सरकार (यूपीए-2) में राज्य मंत्री भी थीं.
परनीत और अमरिंदर के बेटे रनिंदर सिंह भी राजनीति में हैं. पिता की तरह उन्होंने भी अपनी राजनीति की शुरुआत कांग्रेस के साथ की थी. 2009 लोकसभा चुनाव में वह बठिंडा से हरसिमरत कौर के खिलाफ चुनाव लड़े. ये चुनाव राजनीतिक खानदानों का सियासी अखाड़ा बन गया था, लेकिन इस चुनाव में उन्हें हार मिली.
खानदानों की इस सियासी जंग में महात्वाकांक्षा का टकराव है. ये तब देखने को मिला जब कैप्टन अमरिंदर सिंह के भाई मालविंदर सिंह 2012 में कैप्टन का साथ छोड़कर शिरोमणि अकाली दल में शामिल हो गए थे.

बराड: सरपंची से निकल कर सीएम की कुर्सी तक
बराड़ कुनबा दक्षिणी-पश्चिमी पंजाब का एक और शक्तिशाली घराना है. इस कुनबे ने एक सरपंच से पंजाब के सीएम की कुर्सी तक की यात्रा की है. 1919 में जाट परिवार बराड़ के घर जन्मे हरचरण सिंह बराड़ 1995 में पंजाब के कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री बने. उन्हें पंजाब की कुर्सी तब मिली तब बेअंत सिंह की आतंकी हमले में हत्या हो गई थी. हरचरण सिंह बराड़ का जन्म सराय नागा गांव परिवार में हुआ था. हरचरण सिंह बराड़ का वैवाहिक संबंध भी राजनीतिक परिवार में हुआ. उनकी शादी पंजाब के पूर्व सीएम प्रताप सिंह कैरों की भतीजी गुरबिंदर कौर के साथ हुई थी. \
हरचरण सिंह बराड़ और गुरबिंदर कौर के दो बच्चे हुए. कंवरजीत सिंह बराड़ और कमलजीत बरार उर्फ बबली. कंवरजीत सिंह बराड़ दो बार विधायक बने. पहली बार 1977 में दूसरी बार 2007 में. कंवरजीत सिंह बराड़ की निजी जिदंगी भी राजनीति से प्रभावित हुए बिना न रह सकी. उनकी शादी हुई करन कौर बराड़ से. बता दें कि करन कौर बराड़ की बहन हरिप्रिया की शादी कैप्टन अमरिंदर के छोटे भाई मालविंदर से हुई है.
कंवरजीत सिंह बराड़ ने कांग्रेस में कई पद संभाले. वह पंजाब कांग्रेस के उपाध्यक्ष रहे, यूथ कांग्रेस का पद संभाला और पार्टी के कई मोर्चों पर अपनी सेवाएं दी.
कंवरजीत सिंह बराड़ कैंसर से पीड़ित हो गए थे. इसके बाद उनकी पत्नी करन कौर बराड़ ने उनकी राजनीतिक विरासत संभाली. वह 2012 में मुक्तसर विधानसभा से कांग्रेस के टिकट पर उतरीं. चुनाव नतीजे आने के बमुश्किल दो दिन पहले ही उनके पति कंवरजीत सिंह का कैंसर से निधन हो गया. भाग्य का अजब ही खेल रहा कि कंवरजीत सिंह तो इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन करन कौर बराड़ मुक्तसर से चुनाव जीत गईं.
कहा जाता है कि 2004 के लोकसभा चुनाव में सुखबीर बादल का मुकाबला करने के लिए सोनिया गांधी की तरफ से ये सीट उन्हें 'निजी पुरस्कार' के तौर पर दी गई थी.
अब कैप्टन अमरिंदर सिंह भले ही कांग्रेस से अलग हो गए हों, लेकिन करन कौर बराड़ ने कांग्रेस आलाकमान से अपनी वफादारी निभाई और वे 10 जनपथ द्वारा पंजाब में नियुक्त CM चन्नी की वफादार बनी हुई हैं. करन कौर बराड़ के छोटे बेटे करनबीर बराड़ परिवार की राजनीतिक विरासत संभाल रहे हैं.

माझे द जरनैल: बिक्रम मजीठिया
मजीठा अमृतसर जिले का एक इलाका है. यहीं से मजीठिया घराने का पंजाब की राजनीति में उद्भव हुआ. मजीठिया परिवार ने पंजाब को मुख्यमंत्री तो नहीं दिया लेकिन राज्य में इनका रुतबा कम नहीं रहा. यह परिवार सिखों की धार्मिक और राजनीतिक धारा को प्रभावित करने की क्षमता रखता है. मजीठिया खानदान खुद को पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह के दरबार का योद्धा बताता है. 101 साल से ज्यादा वक्त हो गया सुंदर सिंह मजीठिया शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पहले अध्यक्ष बने थे और पूरे पंजाब सूबे में (पाकिस्तान में गया हिस्सा भी शामिल) सिख राजनीति पर उनका असर था.
सुंदर सिंह मजीठिया की ये वंशावली अब पंजाब के मौजूदा चर्चित नेता और ड्रग्स केस में नामजद बिक्रम मजीठिया तक आ जाती है. सुंदर सिंह मजीठिया बिक्रम मजीठिया के परदादा (Great grandfather) थे. बिक्रम मजीठिया और पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर भाई-बहन हैं. बिक्रम मजीठिया के दादा सुरजीत सिंह मजीठिया जवाहर लाल नेहरू के काल में भारत के उप रक्षा मंत्री (1952-62) थे. चीन को लेकर इनका नेहरू से मतभेद होता रहता था.
बिक्रम मजीठिया के पिता का नाम सत्यजीत मजीठिया है. बादल और मजीठिया परिवार के बीच पारिवारिक रिश्ते ने सत्ता और संपत्ति के मेल को और भी ताकतवर कर दिया. बता दें कि सत्यजीत मजीठिया बड़े बिजनेस घराने के मालिक हैं. सराया ग्रुप सत्यजीत मजीठिया का ही है. इस ग्रुप का चीनी और शराब के क्षेत्र में बड़ा दखल है.
बादलों की छत्रछाया में बिक्रम मजीठिया का अकाली दल में तेजी से उदय हुआ. 2002 में वह यूथ अकाली दल में शामिल हुए, फिर वहां से मुड़कर नहीं देखा. 2007 में वह मजीठा सीट से अकाली दल के टिकट पर चुनाव लड़े और इस सीट से कांग्रेस को ऐसा बेदखल किया कि कांग्रेस वापसी नहीं कर सकी है. बिक्रम मजीठिया साल 2007, 12 और 17 का विधानसभा चुनाव यहां से लगातार जीते हैं. वे अकाली सरकार में कैबिनेट मंत्री बने.
अकाली सरकार के दौरान बिक्रम मजीठिया का कद इस तरह बढ़ा कि एक समय उन्हें सीएम पद का चेहरा कहा जाने लगा. अकाली दल के नेताओं ने सीनियर बादल से उनकी शिकायत की. पंजाब की राजनीति में उनका इतना कद बढ़ा कि उन्हें 'माझे द जरनैल' कहा जाने लगा. इस बीच पंजाब में ड्रग्स के मामले मीडिया की सुर्खियां बटोर रहे थे. 6 जनवरी 2014 को ड्रग्स माफिया जगदीश सिंह भोला ने मोहाली कोर्ट में पत्रकारों से कहा कि इस केस में बिक्रम सिंह मजीठिया भी शामिल हैं. इस खुलासे के साथ ही पंजाब की राजनीति में भूचाल मच गया. ड्रग्स मामले में बिक्रम मजीठिया अभी NDPS एक्ट के तहत कानूनी कार्रवाई का सामना कर रहे हैं.

कांग्रेसी कैरों अकाली में बदले
पंजाब की राजनीति अलग-अलग स्थानों से निकलकर एक स्थान पर जुड़ती है. कैरों तरन तारन जिले का एक गांव हैं. जाट सिखों के बाहुल्य वाले इस गांव से ही कैरों कुनबे का उदय हुआ. जिसने पंजाब का एक मुख्यमंत्री दिया है. उनका नाम है प्रताप सिंह कैरों. प्रताप सिंह कैरों के दादा का टाइटल ढिल्लों था. उनके पिता निहाल सिंह ने करों गांव से कैरों टाइटल लिया. 1901 में जन्मे प्रताप सिंह कैरों ने अमृतसर के खालसा कॉलेज से ग्रेजुएशन किया. इसके बाद उस जमाने में पढ़ने वे अमेरिका गए. अमेरिका में खेती बारी की नई तकनीक देख वे प्रभावित हुए और इसे उन्होंने पंजाब में भी अपनाने की सोची.
तब गदर विद्रोह की यादें ताजा थीं, इससे प्रताप सिंह कैरों काफी प्रभावित हुए. 1929 में भारत लौटने के बाद वे आजादी के आंदोलन में शामिल हो गए और जेल भी गए. 1946 में वे संविधान सभा के लिए चुने गए. देश की आजादी के बाद 1956 में वह पंजाब के मुख्यमंत्री बने और 1964 तक इस पद पर रहे. अमेरिका में सीखे खेती के नवीन तकनीक के प्रयोग उन्होंने पंजाब में लागू करवाए और राज्य में हरित क्रांति का रास्ता खोला. 6 फरवरी 1965 को दिल्ली से चंडीगढ़ आते वक्त सोनीपत में उनकी हत्या कर दी गई.
प्रताप सिंह कैरों की राजनीतिक विरासत को उनके बेटों सुरिंदर सिंह कैरों और गुरिन्दर सिंह कैरों ने संभाला. गुरिन्दर सिंह कैरों तो पिता की तरह कांग्रेसी ही रहे लेकिन उनके बड़े बेटे सुरिंदर सिंह कैरों शिरोमणि अकाली दल में शामिल हो गए. वे तरनतारन से सांसद बने. साथ ही 3 बार विधायक भी रहे.
सुरिंदर सिंह कैरों की राजनीतिक विरासत अभी सीनियर अकाली दल नेता आदेश प्रताप सिंह कैरों के हाथों में हैं. आदेश प्रताप सिंह कैरों पट्टी विधानसभा से 4 बार चुनाव जीते हैं और अकाली सरकार में खाद्य और आपूर्ति मंत्री रहे.
नातेदारी और राजनीतिक संबंध साथ साथ चलते हैं. इसे आदेश प्रताप सिंह कैरों ने भी सही साबित किया है. आदेश प्रताप सिंह कैरों पंजाब के पूर्व सीएम और सीनियर बादल प्रकाश सिंह बादल के दामाद हैं. 1982 में उनकी शादी प्रनीत कौर के साथ हुई है. इसी के साथ ही कांग्रेसी रहा कैरों परिवार अकाली हो गया.
चर्चा है कि आदेश प्रताप सिंह कैरों इस बार भी पंजाब के पट्टी सीट से चुनावी मैदान में उतरेंगे.

पंजाब का 'मान'
पंजाब की सियासत में साढू भाई की एक जोड़ी है. ये जोड़ी है पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह और संगरूर से सांसद रहे सिमरनजीत सिंह मान की. कैप्टन अमरिंदर की पत्नी परनीत कौर और सिमरनजीत सिंह मान की पत्नी गीतइंदर कौर सगी बहनें हैं. परनीत और गीतइंदर के पिता ज्ञान सिंह काहलों नौकरशाह रहे हैं, वे पंजाब के पूर्व मुख्य सचिव रह चुके हैं. ज्ञान सिंह काहलों ने अपनी दोनों बेटियों को विरासत में सियासत दी. इसलिए दोनों ही सक्रिय राजनीति में रहती हैं. परनीत केंद्रीय मंत्री रही हैं, जबकि गीतइंदर पार्टी में काम करती हैं.
बता दें कि सिमरनजीत सिंह मान शिरोमणि अकाली दल अमृतसर (SAD-A) के नाम से अलग पार्टी चलाते हैं. इस बार के विधानसभा चुनाव में स्थिति रोचक हो चुकी है. दरअसल कैप्टन अमरिंदर सिंह भी पंजाब लोक कांग्रेस के नाम से अलग पार्टी बनाकर चुनाव में उतर रहे हैं. उधर सिमरनजीत सिंह मान ने भी इस विधानसभा के लिए 43 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दी है. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या सियासत में रिश्तेदार भी टकराएंगे? क्या पंजाब लोक कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल-अमृतसर की टक्कर होगी.
सिमरनजीत सिंह मान तरनतारन से दो बार सांसद रह चुके हैं. स्वर्ण मंदिर पर इंदिरा गांधी की कार्रवाई के विरोध में IPS की नौकरी छोड़ने वाले सिमरनजीत सिंह मान सिख अपनी अकाली दल अमृतसर को एक प्रभावशाली पार्टी के रूप में खड़ा करने की कोशिश में हैं.

स्वतंत्र ताकतों ने इन सियासी खानदानों को चुनौती भी दी
पंजाब की राजनीति इन 6 कुनबों के आसपास जरूर घुमती रही है, लेकिन बीच-बीच में स्वतंत्र ताकतों ने इन सियासी खानदानों को चुनौती भी दी है. राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, पूर्व सीएम सुरजीत सिंह बरनाला, बेअंत सिंह ने सूबे के इन सियासी परिवारों को अपनी लोकप्रियता और सियासी गठजोड़ से चुनौती दी और पंजाब के सीएम बने.
2022 में पंजाब की राजनीति एकदम जुदा है. किसान आंदोलन ने कई समीकरणों को चोट पहुंचाई है. सूबे में AAP का प्रभावशाली आगमन हो चुका है, कैप्टन अपनी नैया के खुद खेवैया हैं. अंतर्कलह से जूझ रही कांग्रेस को दलित चेहरे पर भरोसा है. बादलों को वापसी की उम्मीद है तो बीजेपी भी अपनी जमीन तैयार कर रही है. पंजाब एक जबर्दस्त चुनावी युद्ध देखने जा रहा है.