1983. 4 अंकों की एक संख्या जो गणित की किताबों में कहीं से भी अनोखी नहीं मानी जाती. न ही प्राइम नंबर है, न ही यूनीक नंबर है. यहां तक कि विषम भी है. लेकिन इस एक संख्या के कलेंडर पर चढ़ते ही, एक समूचे खेल की, एक पूरे देश की तस्वीर बदल जाती है. आज अगर हम ये कह रहे हैं कि भारत क्रिकेट की सबसे बड़ी शक्ति है, तो इस यात्रा का पहला कदम 25 जून 1983 को लॉर्ड्स में रखा गया था. बीते 2 वर्ल्ड कप जीतने वाली वेस्ट इंडीज़ टीम को कपिल देव की अंडर-डॉग कही जा रही टीम ने 43 रनों से हराया.
कितनी ही तस्वीरें हैं जो ज़हन में जमी हुई हैं. श्रीकांत का स्क्वायर कट जो उस टूर्नामेंट का सबसे ख़ूबसूरत, कड़क और दृढ़ता से भरा शॉट था, संधू की अन्दर आती गेंद पर हाथ ऊपर उठाये खड़े ग्रीनिज के बिखरे स्टंप्स, पीछे भागकर विव रिचर्ड्स का कैच पकड़ने के बाद दर्शकों से घिरे कपिल देव, आख़िरी विकेट के बाद दर्शकों से बचने के लिये पवेलियन की ओर भागती भारतीय टीम, लॉर्ड्स की बालकनी में ट्रॉफ़ी उठाये खड़े कपिल देव और ड्रेसिंग रूम के नीचे खड़े भारतीय दर्शकों का हुजूम. ये सभी दृश्य अमर हो चुके हैं. इन तस्वीरों में कितनी ही कहानियां हैं. इन तस्वीरों में कितनी ही मेहनत का नमक घुला हुआ है. इन तस्वीरों में एक पूरे देश की किस्मत क़ैद दिखती है.
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मैच शुरू होने से पहले ही लगा झटका
25 जून को सुबह जब कपिल देव मैदान में उतरे तो उन्हें दिन का पहला झटका मिला. अबतक हुई हर भविष्यवाणी और नुक्ताचीनी को जीभ चिढ़ाते हुए भारतीय टीम वर्ल्ड कप के फ़ाइनल में पहुंच चुकी थी. कपिल देव का खेला एक-एक दांव, एकदम सही पड़ रहा था. यहां तक कि जब 17 रन पर भारत ने 5 विकेट खो दिए थे, कप्तान ने ताबड़तोड़ खेलते हुए पौने दो सौ रन स्कोरबोर्ड पर टांग दिए. कपिल देव स्थिति को पढ़ने में गलती करते नहीं दिख रहे थे. और इसी क्रम में उन्होंने पिछले दिन रणनीति बनाने के दौरान सभी को ये समझाया था कि पिच पर दिख रही हरियाली उड़ा दी जायेगी. लेकिन मैच शुरू होने से पहले जब उन्होंने पिच देखी तो मालूम पड़ा कि घास को हाथ भी नहीं लगाया गया था. उन्हें लॉर्ड्स में एक उछाल और स्पीड देने वाली पिच पर वेस्ट इंडीज़ की घातक गेंदबाज़ी से जूझना था. उस दिन तक भारत ने लॉर्ड्स के मैदान पर 10 टेस्ट खेले थे जिसमें 2 ड्रॉ हुए और बाकी 8 में भारत हारा. इनमें एक वो मैच भी शामिल था जिसमें अजीत वाडेकर की भारतीय टीम मात्र 77 मिनट में 42 रनों पर ऑल आउट हो गयी थी. तो स्थिति ये थी कि सामने 2 बार की विश्व विजेता टीम दुनिया की सबसे हुनरमंद बल्लेबाज़ी और सबसे क्रूर गेंदबाज़ी से लैस खड़ी थी. और भारतीय टीम को 22 गज की जिस पट्टी पर उनसे मुक़ाबला करना था, उसका एक-एक कण उनके पक्ष में ही खड़ा दिख रहा था.
ऐसे में एक ही चीज़ थी जो थोड़ा ही सही, मगर मामले को भारत के पक्ष में झुका सकती थी - कपिल टॉस जीतें और भारत पहले गेंदबाज़ी करे. सिक्का उछला, क्लाइव लॉयड ने हेड्स मांगा. अगले कुछ ही मिनटों में कपिल भारतीय ड्रेसिंग रूम में थे और सुनील गावस्कर, क्रिस श्रीकांत की जोड़ी पैड कस रही थी. भारतीय टीम को पहले बल्लेबाज़ी करनी थी. टॉस जीतते ही क्लाइव लॉयड अपने मन में आधा मैच जीत चुके थे. टॉस के बाद उनके चेहरे की मुस्कान मैदान के हर कोने से देखी जा सकती थी.
ग़ैर-अंग्रेज़ टीमों के किसी मैच के लिये लॉर्ड्स के मैदान में इतनी भीड़ पहले नहीं देखी गयी थी. अनुमान लगाया जाता है कि उस दिन मैदान में कुछ 25 हज़ार लोग थे. ये लॉर्ड्स की उस वक़्त की कैपेसिटी से कहीं ज़्यादा बड़ा आंकड़ा था. असल में कई दर्शक गैरकानूनी तरीकों से मैदान में घुसे थे. और इस क्रम में भारतीय टीम भी बराबरी की गुनाहगार थी. भारतीय टीम की बस में कुल 40 लोगों के बैठने की जगह थी. इसमें 15 बैठते थे. लेकिन फ़ाइनल मैच से पहले वो बस स्टेडियम में ठसाठस भरी हुई घुसी थी. क्यूंकि उसमें खिलाड़ियों के संगी-साथी, बोर्ड के कई नाम भी शामिल थे जो मैच देखना चाहते थे लेकिन उनके पास टिकट नहीं थे. इस भीड़ के सामने, एक कोने में बीबीसी की एक टीम मैच की एनालिसिस कर रही थी. टॉस के बाद जब ब्रेक लिया गया तो ब्रिटिश ऐंकर पीटर वेस्ट ने ड्रेसिंग रूम में जा रहे मदन लाल से कहा, 'हे मदन! आशा है कि तुम लोग जीत जाओ. क्रिकेट के खेल के लिये ये काफ़ी अच्छा होगा.' मदन लाल ने मुस्कुराते हुए पीटर वेस्ट की ओर हाथ उठाया और आगे बढ़ गए. तीन दिन पहले यही ब्रिटिश मीडिया इंग्लैण्ड और भारत के बीच होने वाले सेमी-फ़ाइनल की एक भी गेंद फेंके जाने से पहले भारत को हारा हुआ घोषित कर चुकी थी. असल मे, 25 जून 1983 को भारतीय टीम और भारतीय क्रिकेट सिर्फ़ वेस्ट इंडीज़ की टीम से ही नहीं बल्कि दुनिया की तमाम ताकतों से मुक़ाबला कर रहे थे और दांव पर बहुत कुछ लगा हुआ था.

कप्तान की सलाह को किनारे रखना ही पड़ा
लेकिन ड्रेसिंग रूम में कपिल देव एक अलग स्ट्रेटेजी अपना रहे थे. टॉस के बाद वो आये और उन्होंने कहा, 'ये पिच 70 प्रतिशत गेंदबाज़ी की है और 30 प्रतिशत बल्लेबाज़ी की है. हम अपने 30 प्रतिशत में ठीक काम कर लें, फिर उन्हें भी इसी पिच पर ही बल्लेबाज़ी करनी होगी.' कपिल ने कहा कि 'हर कोई जीतने का विचार दिमाग से निकाल दे. वो बस ये सोचे कि उनकी टीम इतनी दूर निकल आयी, जिसके बारे में किसी ने भी सोचा नहीं था. लिहाज़ा हर कोई अच्छा खेले और मैच ख़तम करे.' और फिर एनकेपी साल्वे और बोर्ड सेक्रेटरी एमए चिदंबरम ने टीम को बताया कि वो चाहे जीतें या हारें, हर किसी को 25 हज़ार रुपये मिलेंगे.
गावस्कर और श्रीकांत बल्लेबाज़ी के लिये उतरे. कपिल ने समझा कर भेजा था कि शुरुआत में संभल कर खेलना है और जब मुख्य गेंदबाज़ हट जाएं तो बाकियों पर हमला किया जाए. दोनों ऐसा ही कर रहे थे. लेकिन ऐंडी रॉबर्ट्स की एक गेंद ने उनके बल्ले का किनारा लिया और विकेट के पीछे जेफ़ डुजों ने कैच पकड़ा. गावस्कर को इस फ़ाइनल मैच में वेस्ट इंडीज़ और जीत के बीच सबसे बड़ी दीवार माना जा रहा था. उन्होंने वेस्ट इंडीज़ के ख़िलाफ़ हमेशा ही अच्छा प्रदर्शन किया था. लेकिन उस दिन ऐंडी रॉबर्ट्स ने भारत की इस ताक़त को 2 रन पर ही निष्क्रिय कर दिया. श्रीकांत का अभी खाता भी नहीं खुला था. कपिल की कही बात का वो पूरी तरह से पालन करने की कोशिश कर रहे थे. नये बल्लेबाज़ मोहिंदर अमरनाथ के आते ही पटकी हुई गेंदें दिखने लगीं. वेस्ट इंडीज़ टीम उन्हें जानती थी. ये उनकी रणनीति का हिस्सा था. इसी क्रम में श्रीकांत भी लपेटे में आ रहे थे. वो आराम से खेलने की कोशिश में लगे हुए थे और रन निकल ही नहीं रहे थे. इस बीच जोएल गार्नर की एक आगे फेंकी गयी गेंद पर श्रीकांत ने पैर निकालकर डिफे़ंड करना चाहा लेकिन गेंद अंदर की ओर आयी और टप्पा खाकर ऐसे उछली कि जाकर उनकी उंगली पर लगी. दर्द से बिलबिलाये श्रीकांत ने मन ही मन कप्तान के प्लान को आग लगायी और अपने हिसाब से खेलने का फैसला किया. ऐंडी रॉबर्ट्स ने अगले ओवर में श्रीकांत के सामने एक गेंद पटकी और सेकण्ड के आधे हिस्से में चमड़े के खोल में समायी वो गोल चीज़ मिडविकेट बाउंड्री पर मिली. ये इतना करारा शॉट था कि रॉबर्ट्स तमतमा उठे. उन्होंने और भी छोटी गेंद फेंकी जो और भी तेज़ गति से श्रीकांत के पास पहुंची. श्रीकांत का बल्ला एक बार फिर एकदम सटीक मौके पर गेंद के पास पहुंचा और इस बार भारत के खाते में आधा दर्जन रन आये. गेंद स्क्वायर लेग के दर्शकों के बीच जाकर गिरी. लॉर्ड्स में बिजली दौड़ चुकी थी. श्रीकान्त अपनी रौ में आ चुके थे. उनके दूसरे शॉट पर भारतीय ड्रेसिंग रूम में बैठे गुंडप्पा विश्वनाथ बालकनी में आकर तालियां बजा रहे थे. श्रीकांत शुरुआत से ही गुंडप्पा विश्वनाथ को अपना हीरो मानते थे. उस रोज़, अपने खेल के सबसे महत्वपूर्ण मौके पर वो अपने हीरो को इम्प्रेस कर चुके थे.

लेकिन श्रीकांत का सबसे ख़ूबसूरत शॉट आया ऐंडी रॉबर्ट्स की एक आगे फेंकी हुई गेंद पर. गेंद ऑफ़ स्टंप के कुछ बाहर थी. और श्रीकांत ने अपना पिछला घुटना ज़मीन पर रख स्लैज़ेंगर के अपने बल्ले के सबसे कीमती हिस्से को गेंद पर दे मारा. ट्रैवर्न स्टैंड की तरफ़ गेंद इतनी तेज़ी से गयी कि श्रीकांत के बल्ले के पिछले हिस्से पर छपा तेंदुआ भी शरमा जाता. शॉट लगाने के बाद श्रीकांत देर तक उसी पोज़ में बैठे हुए थे और मैदान में मौजूद बाकी 14 लोग उन्हें देख आह भर रहे थे. कोहनी तक चढ़ी शर्ट, ऊपर चढ़ी नाक और पूरे हो चुके फ़ॉलो-थ्रू के बाद बाएं कंधे के ऊपर टिके बल्ले के साथ श्रीकांत की वो तस्वीर उनके लय में आ जाने का सबसे बड़ा सबूत है.
इसके बाद मैल्कम मार्शल ने मोहिंदर अमरनाथ के सामने पटकी. फ़रवरी-मार्च में करीबियन आईलैंड्स में हुई टेस्ट सीरीज़ के दौरान अमरनाथ को इन गेंदबाज़ों ने ख़ूब पढ़ा था. ये पटकी हुई गेंदें उसी का नतीजा थीं. लेकिन अमरनाथ भी तैयार थे. मार्शल की गेंद मिडल स्टम्प की लाइन में पड़कर उनके मुंह की ओर आ रही थी. वेस्ट इंडीज़ में टेस्ट सीरीज़ के दौरान एक गेंद अमरनाथ के मुंह पर लगी थी और उनके होंठ कट गए थे. लेकिन यहां उन्होंने अपना सारा भार पिछले पैर पर डाला और शरीर को लेग साइड की ओर घुमाते हुए, अगला पैर हवा में उठाकर एक ज़ोरदार हुक मारा. गेंद मिडविकेट बाउंड्री से पहले नहीं रुकी. भारत धीमी शुरुआत के बाद अब गति पकड़ रहा था और 19 ओवर में 1 विकेट के नुकसान पर 58 रन बन चुके थे.

मैदान से जाने लगे भारतीय दर्शक
लेकिन फिर मार्शल के अगले ओवर में आड़े बल्ले से खेलने के चक्कर में श्रीकांत आउट हो गए. स्कोरकार्ड पर उनके नाम के आगे 57 गेंदों में 38 रन लिखे हुए थे जो एक धीमी पारी कही जायेगी. लेकिन असल में उनके य रन दो पालियों में आये थे. पहली पाली में वो रोककर खेलना चाह रहे थे जिसमें ख़ुद को असहज पाने के बाद उन्होंने अपनी दूसरी पाली शुरू की और 7 चौकों के साथ 1 छक्का मारा.
अब यशपाल शर्मा ने जिमी अमरनाथ के साथ मोर्चा संभाला. दोनों बेहद अलग तबीयत के खिलाड़ी थे. जिमी आज गेंद पर तेज़ चोट कर रहे थे जबकि बादाम खाने की आदत के चलते बादाम नाम पा चुके यशपाल शर्मा, क्रिकेट कोचिंग की किताबों के अनुरूप गेंद पर करीने से बल्ला रखते हुए माइकल होल्डिंग को बाउंड्री तक पहुंचा रहे थे. लेकिन शर्मा के हिस्से में इसके सिवा और कोई बाउंड्री नहीं आयी. उनका स्कोर 11 से आगे नहीं बढ़ा. उनसे पहले मोहिंदर अमरनाथ 26 रनों पर आउट हो चुके थे.
यशपाल के जाने पर कपिल देव आये. आते ही उन्होंने 3 चौके मारे. लग रहा था कि संदीप पाटिल और कपिल देव की पार्टनरशिप जमने जा रही थी. लेकिन फिर लैरी गोम्स की धीमी गेंदों पर तेज़ रन बनाने की फ़िराक में दिख रहे कपिल देव ने हवा में गेंद उठा दी जो उनके बल्ले में कुछ ज़्यादा ही ऊपर लगी. इस वजह से गेंद को जितना आगे जाना था, नहीं गयी और बाउंड्री से अन्दर ही माइकल होल्डिंग ने कैच पकड़ा. हर किसी को मालूम था कि अब भारत बड़ी मुश्किल में पड़ चुका था. कपिल ने भले ही तेज़ रन बनाए थे लेकिन उनके नाम के आगे महज़ 15 रन ही दर्ज हुए थे. तेज़ गेंदबाज़ों के जाने के बाद 2 स्लो बॉलर्स को लूटने का प्लान भी उल्टा पड़ गया था.
बताते हैं कि बम्बई के बांद्रा ईस्ट की साहित्य सहवास कॉलोनी के एक घर में तमाम लोगों के साथ मैच देख रहे 10 साल के तेंडल्या ने कपिल का विकेट गिरने के बाद टीवी से नज़रें हटा दीं और रेडियो ऑन करके विम्बलडन की कमेंट्री सुनने लगा जहां उसका पसंदीदा टेनिस खिलाड़ी जॉन मेकनरो खेल रहा था. इसी लड़के ने 2011 में वर्ल्ड कप ट्रॉफी उठायी. उसकी तो कुछ अलग ही कहानी है.
इसी बीच लॉर्ड्स से भी जनता उठकर जाने को हुई. कई भारतीय सपोर्टर 130 रनों पर 7 विकेट गिरते-गिरते हार तय मान बाहर निकल रहे थे. उन्हें नहीं मालूम था कि वो क्या मिस करने वाले थे. लेकिन उनके जाने से न जाने कितने ही लोगों की किस्मत भी खुली, जो बाहर उनसे टिकट लार अंदर आ सके और आगे का मैच देखने लगे. संदीप पाटिल भारत की आख़िरी आस थे लेकिन 153 के स्कोर पर वो भी चलते बने. पाटिल अपनी पारी के दौरान लगातार गेंद को इधर-उधर धकेलते रहे. उन्होंने बाउंड्री के नाम पर मात्र 1 छक्का मारा था लेकिन उनका स्ट्राइक रेट 93 का था.
आख़िरी विकेट के लिये आये बलविंदर सिंह संधू को आते ही मैल्कम मार्शल की एक पटकी हुई गेंद मिली. ये बेहद तेज़ फेंकी गयी थी. संधू ने अपने शरीर को पीछे की ओर झुकाना शुरू किया लेकिन उनके शरीर की फुर्ती गेंद की गति से कम थी और जब तक वो बाख पाते, गेंद आकर उनके हेल्मेट से बचती हुई उनकी कनपटी पर लगी. संधू खड़े रहने की कोशिश कर रहे थे. विकेटकीपर जेफ़ डूजों दौड़कर उनके पास आये लेकिन मार्शल दूर खड़े रहे और अपने जूतों के पहले से बंधे फीते खोलकर उन्हें दोबारा बांधने लगे. अम्पायर ने मार्शल को डांटा और उन्हें बताया कि इसके बाद वो नंबर 11 पर खेलने आये बल्लेबाज़ को बाउंसर नहीं फेंक सकेंगे. मार्शल ने घमंड में पगे हुए तरीक़े से अपना उल्टा हाथ उठाकर माफ़ी मांगने की खानापूर्ति की. भारतीय ड्रेसिंग रूम में हर कोई संधू को ही देख रहा था. उनमें कितने ही लोग थे जो संधू के दर्द को समझ भी सकते थे. 7 टांके खाकर टूर्नामेंट से बाहर हो चुके दिलीप वेंगसरकर इसमें सबसे आगे थे.
मामला हल्का होने के बाद संधू आगे की गेंदें खेलीं और 11 रन बनाकर नॉट आउट रहे. सैयद किरमानी को होल्डिंग ने आउट किया और भारत ने 184 रनों का लक्ष्य वेस्ट इंडीज़ के सामने रखा. ये वर्ल्ड कप फ़ाइनलों के इतिहास में पहले बल्लेबाज़ी करते हुए बनाया गया सबसे कम रनों का रिकॉर्ड था जो 1999 के फ़ाइनल में पाकिस्तान के हाथों टूटने वाला था.

खेल की प्रकृति को संधू का ठेंगा, पहली चोट
वेस्ट इंडीज़ के पास अगर 4 सबसे आक्रामक गेंदबाज़ थे तो उनकी बल्लेबाज़ी में पहले चार खिलाड़ी थे - गॉर्डन ग्रीनिज, डेसमंड हेंस, विव रिचर्ड्स और क्लाइव लॉयड. ब्रेक के दौरान वेस्ट इंडीज़ का खेमा बेहद शांत और निश्चिन्त था. वो लगातार तीसरी बार वर्ल्ड कप उठाने की तैयारी कर रहे थे. उन्होंने मैच ख़तम होने के बाद मनाये जाने वाले जश्न के लिये कुछ शैम्पेन भी मंगवा ली थीं. लेकिन भारतीय ड्रेसिंग रूम में कपिल देव कह रहे थे - "मैंने कहा था कि ये पिच 30% बैटिंग और 70% बॉलिंग वाली है. हमने 30% में 183 रन बनाये हैं. लेकिन इन्हें भी इतने ही रन बनाने पड़ेंगे."
लॉर्ड्स के मैदान में एक स्लोप है. मैदान का एक हिस्सा थोड़ा उठा हुआ है जिसकी वजह से आउटफ़ील्ड में जाने पर एक तरफ़ गेंद को बाउंड्री तक जाने में मुश्किल होती है लेकिन दूसरी तरफ़ वो भागती चली जाती है. लॉर्ड्स में ऐसा हमेशा से होता आया है इसलिये हर खिलाड़ी के ज़हन में ये बात जमी होती है. वो स्लोप गेंदबाज़ी को भी प्रभावित करती है. जिस छोर से संधू ने गेंदबाज़ी शुरू की, वहां से सीधे हाथ के बल्लेबाज़ को गेंद फेंकने पर स्लोप के कारण गेंद बाहर ही निकलती है. ये लॉर्ड्स का अलिखित नियम है. ग्रीनिज को पिछली वेस्टइंडीज़ सीरीज़ के दौरान संधू ने अपनी इनस्विंगर से आउट किया था. लेकिन यहां वो ग्रीनिज को आउटस्विंगर ही फेंक पा रहे थे. ग्रीनिज बड़े आराम से उन गेंदों को छोड़ते जा रहे थे. संधू को एक दिन पहले कपिल देव ने भी यही सिखाया था कि अगर अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में आउटस्विंग से ही विकेट मिलते हैं. लेकिन ग्रीनिज सारी गेंदें छोड़ते जा रहे थे और उनपर कोई असर होता नहीं दिख रहा था. समय वेस्ट इंडीज़ के ही पक्ष में था क्यूंकि रनों की संख्या बेहद कम थी. ऐसे में कपिल देव की सीख और लॉर्ड्स के नियमों को ठेंगा दिखाकर संधू ने एक गेंद फेंकी. ग्रीनिज ने ऑफ़ स्टंप के बाहर पड़ी गेंद को फिर से जाने देना चाहा. उन्होंने अपने दोनों हाथ ऊपर हवा में उठा दिये और ये उनकी बहुत बड़ी भूल साबित हुई. गेंद अचानक ही अंदर आयी और उनके ऑफ़-स्टम्प के ऊपरी सिरे से जा टकरायी. मैच के फ़ाइनल राउंड की पहली चोट की जा चुकी थी. 5 रनों पर वेस्ट इंडीज़ का पहला विकेट गिर चुका था.

मास्टर ब्लास्टर रिचर्ड्स का तांडव
अगली पार्टनरशिप 45 रनों की बनी. यहां से भारतीय टीम को विव रिचर्ड्स के कोप का शिकार होना पड़ा. उनपर कुछ भी काम करता नहीं दिख रहा था. इन 45 रनों में ग्रीनिज ने मात्र 9 रन बनाये थे. मैदान में कैलिप्सो संगीत का शोर छाया हुआ था. बियर के गिलास और छोटे कनस्तर हाथ बदल रहे थे. विव रिचर्ड्स का जबड़ा चुइंग गम और उनका बल्ला भारतीय गेंदबाज़ों को चबा रहा था. कपिल देव के सामने 3 चुनौतियां थीं - विश्व कप जीतने की, विश्व कप जीतने के लिये रन रोकने की, और रन रोकने के लिये संदीप पाटिल को छुपाने की. कपिल हर गेंदबाज़ से एक ही बात कर रहे थे - "पाटिल को देखो वो कहां है. वो कहां खड़ा है, उसके हिसाब से ही बॉलिंग करो. गेंद उसके पास नहीं जानी चाहिये. उसके पास गेंद गयी तो वो मिस-फ़ील्ड करता रहेगा और हम हारते जायेंगे."
कपिल ने ख़ुद को अटैक पर लगाया और उनकी आउटस्विंग को विव रिचर्ड्स ने बाहर निकलकर, अपना अगला पैर सामने लाकर निष्क्रिय किया और सीधी कोहनी रखते हुए तेज़ शॉट मारा और 4 रन कमाए. इसी ओवर में एक चौका और आया. इस बार कपिल ने गुड लेंथ की गेंद को अंदर लाने की कोशिश की लेकिन विव के पास उसका भी जवाब था.
थोड़ी ही देर में मदन लाल को एक ओवर में तीन चौके पड़े. तीनों विव के बल्ले से. एक चौका मिडविकेट की दिशा में, दूसरा एक्स्ट्रा कवर और तीसरा पॉइंट की दिशा में. ओवर के बीच में, जब गेंद बाउंड्री से मदन लाल के पास लाई जा रही थी, पम्मी (सुनील गावस्कर की पत्नी, मार्शनील) ने आवाज़ देकर डीप स्क्वायर लेग पर फ़ील्डिंग कर रहे संदीप पाटिल को बाउंड्री पर बुलाया. पम्मी ने कहा कि वो, अन्नू लाल (मदन लाल की पत्नी) और रोनी (कपिल देव की पत्नी), तीनों शॉपिंग के लिये जा रही थीं. पम्मी ने सुनील गावस्कर को संदेसा भिजवाया कि मैच ख़तम होने के बाद सुनील उन्हें सेंट जॉन वुड्स में मिलें. तीनों महिलाएं हार तय मान चुकी थीं और आगे का प्लान बनाकर उसपर अमल करने निकल पड़ीं. इतने में ही डेसमंड हेन्स चलते बने. उन्हें मदन लाल ने ही आउट किया. पार्टनरशिप तो टूट चुकी थी लेकिन कसाई अब भी मौजूद था.
कपिल को स्कोरबोर्ड पर बढ़ते हुए रन दिख रहे थे और उन्हें ये भी दिख रहा था कि विव रिचर्ड्स मदन लाल को कूट रहे थे. वो गेंदबाज़ी में चेंज करने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन मदन लाल ने उनसे एक और ओवर देने को कहा. कपिल ने साफ़ इन्कार कर दिया लेकिन मदन नहीं माने. लम्बी बहस के बाद, झुंझलाहट के साथ कपिल ने मदन लाल को गेंद दे दी. और उस एक ओवर ने पलड़ा फिर भारत की ओर झुका दिया. भारतीय क्रिकेट के इतिहास का सबसे कीमती कैच, इसी ओवर में लिया गया. पीछे की ओर बीस कदम दौड़कर कपिल देव ने वो कैच पकड़ा. दौड़ते वक़्त उनकी नज़रें पूरे दौरान गेंद पर ही थीं लेकिन उन्हें एक कोने से यशपाल शर्मा भी आते दिख रहे थे. उन्होंने दौड़ते हुए ही चीख कर कहा "इट्स माइन!!" और वाकई, वो कैच कपिल का ही था. दर्शक मैदान में घुस आ चुके थे. कपिल देव को चूमा जा रहा था. वो किसी तरह से उनसे बचकर बीच में आये और टीम एक बार फिर जागृत हो चुकी थी. कैलिप्सो संगीत की जगह अब ढोल सुनाई दे रहे थे.

कपिल का दांव, लॉयड भी ढेर
लेकिन क्लाइव लॉयड अभी बाक़ी थे. जब लॉयड आये थे, दर्शकों ने ज़ोरदार शोर के साथ उनका स्वागत किया था. असल में, क्लाइव ने मैच से पहले ही ये ऐलान कर दिया था कि फ़ाइनल मैच बतौर कप्तान उनका आख़िरी मैच होने वाला था. 2 बार विश्व विजेता रह चुकी टीम का कप्तान आख़िरी बार उस ओहदे के साथ मैदान पर उतर रहा था. इसी दौरान कपिल देव को ये समझ में आया कि क्लाइव हल्का सा लंगड़ाकर आ रहे थे. बल्लेबाज़ी के स्टांस और विकेट के बीच दौड़ने के अंदाज़ से कपिल को समझ में आ गया था कि उनकी जांघ की मांसपेशियों में खिंचाव था. कुछ देर के खेल में ही क्लाइव लॉयड ने एक रनर की मांग कर ली. इसी बीच मदन लाल ने लैरी गोम्स को भी आउट कर दिया.
लेकिन लॉयड तो लॉयड थे. वो 1975 के फ़ाइनल में 102 रन बनाकर वेस्ट इंडीज़ को जितवा चुके थे. कपिल भारत की तरफ़ से सबसे ज़्यादा विकेट लेने वाले रॉजर बिन्नी को लेकर आये और उन्हें मन्त्र दिया- 'लॉयड के पैर में दिक्कत है. उसी पीछे मत खिलाओ. आगे आकर खेलने दो. वो बहुत मूव नहीं कर पा रहा है.' और ये दांव भी काम कर गया. लम्बी फेंकी गयी गेंद पर ऑफ़ ड्राइव खेलने के लिये गए और पैर पूरा खिंच नहीं पाया. बल्ले पर गेंद नहीं आयी और हवा में उठ गयी. कपिल ने कैच पकड़ा और अपनी चिरपरिचित चौड़ी मुस्कान के साथ रॉजर बिन्नी की ओर देखा. वेस्ट इंडीज़ के किले में सेंध लग चुकी थी. 66 रनों पर आधी टीम अंदर जा चुकी थी. वेस्ट इंडीज़ के खेमे में पहली बार डर के भाव वाली सुगबुगाहट शुरू हुई.

संधू को फ़ॉद बच्चूज़ के रूप में अपना दूसरा विकेट मिला. क्लाइव लॉयड के जाने के ठीक 10 रन बाद. और यहां एक मज़ेदार वाकया हुआ. भारतीय टीम में ख़ुशी फैली हुई थी. हर कोई उछल-कूद रहा था. और इसी दौरान बच्चूज़ का कैच पकड़ने वाले सैयद किरमानी को बधाई देने के लिये दौड़कर आये श्रीकांत इतनी ज़ोर से कूदे कि किरमानी के पैर पर लैंड हुए. श्रीकांत स्पाइक्स वाले जूते पहनकर फ़ील्डिंग कर रहे थे. उनके जूतों में निकली कीलें जाकर किरमानी के पैर के अंगूठे में जा घुसीं और किरमानी के पैर से खून निकलने लगा.

जब ढीली पड़ने लगी पकड़
भारत को जीतने के लिये 4 विकेट और चाहिये थे. वेस्ट इंडीज़ को 108 रन. ढोलों पर थाप और ज़ोर से दी जाने लगी थी. लॉर्ड्स का मैदान धीरे-धीरे साउथहॉल में तब्दील होता दिख रहा था. बीसीसीआई के कई अधिकारी और पूर्व खिलाड़ी भारतीय ड्रेसिंग रूम में आ घुसे थे. माना जा रहा था कि अब दिल्ली दूर नहीं थी. लेकिन वेस्ट इंडीज़ की बैटिंग लाइन-अप काफ़ी गहरे तक थी. जेफ़ डुजों ने मैल्कम मार्शल के साथ गाड़ी पटरी पर लानी शुरू की. उन्होंने गेंदों को छोड़ना शुरू किया और लाइन में आ रही गेंद पर रन बना रहे थे. चूंकि टार्गेट छोटा था, लिहाज़ा समय अभी भी उनके ही पक्ष में था. डॉट हो रही गेंदों से उन्हें फ़र्क नहीं पड़ रहा था. डुजों ने संधू की एक पटकी हुई गेंद को स्क्वायर लेग बाउंड्री के बाहर भेजा और टीम के 100 रन पूरे हुए. कपिल देव की चिंताओं का अंत नहीं दिख रहा था. अपनी टूटी-फूटी अंग्रेज़ी में निर्देश देने वाले कपिल देव अप विशुद्ध पंजाबी में अपनी बातें रख रहे थे. संधू ने जिमी अमरनाथ से इसकी शिकायत की. शांतचित रहने वाले अमरनाथ आये, कपिल को चुप कराया, उन्हें मिडविकेट पर भेजा और ख़ुद उनकी जगह पर खड़े हो गए. लेकिन 7वें विकेट की पार्टनरशिप अर्धसशतक की ओर बढ़ती दिख रही थी.
ड्रेसिंग रूम में बैठे वेंगसरकर, सुनील वाल्सन और रवि शास्त्री अब कुलबुला रहे थे. एक वक़्त पर उन्हें जीत इतनी क़रीब दिख रही थी, लेकिन अब वेस्ट इंडीज़ उन्हें दूर धकेलती हुई मालूम देने लगी. सुनील वाल्सन उठकर मैनेजर पीआर मानसिंह के पास गए और साफ़ शब्दों में कह दिया - "जबसे इतने सारे लोग ड्रेसिंग रूम में आये हैं. विकेट गिरने बंद नहीं हुए हैं. इन्हें बाहर निकालो." पीआर मानसिंह ने ज़िम्बाब्वे की कपिल देव की पारी के दौरान श्रीकांत और उनकी पत्नी को सवा घंटे तक ठंड में ड्रेसिंग रूम के बाहर एक पेड़ के नीचे खड़े रखा था. लेकिन वो श्रीकांत थे. यहां उनपर बोर्ड के अधिकारियों को बाहर निकालने का जिम्मा दे दिया गया था. वो भी चाहते थे कि सभी चले जायें लेकिन संकोच में कुछ कह नहीं पा रहे थे. इतने में एक शख्स आया और उसने कहा कि बोर्ड के अधिकारीयों के लिये एक फ़ोन कॉल आया है. सभी बाहर निकले और लॉबी की ओर बढ़े.

फिर जो हुआ, इतिहास में दर्ज है
114 गेंदों में मात्र 65 रन बनने थे. सुनील गावस्कर, अमरनाथ और कपिल देव मंत्रणा में व्यस्त थे. गावस्कर ने सुझाया कि बल्लेबाज़ तेज़ गेंदबाज़ी खेल ले रहे हैं. उन्हें गति रोकनी चाहिये और धीमा गेंदबाज़ लगाना चाहिये. अमरनाथ को गेंद पकड़ाई गयी. वो धीमी गति के साथ लगभग टहलते हुए क्रीज़ पर पहुंचे और एक आम सी दिखने वाली गेंद फेंकी. डुजों ने एक पैर आगे निकाला, फिर उन्हें समझ में आया कि उन्हें शायद अपना वजन पीछे धकेलना चाहिये था. मगर वो शॉट के लिये कमिट कर चुके थे. ये देखते हुए उन्होंने ऑफ़ स्टम्प के बाहर रखी गयी गेंद को छोड़ने का मन बना लिया और बल्ला हटाने लगे. गेंद भले ही धीमी गति की थी लेकिन इस पूरे कैल्कुलेशन में डुजों ने कुछ ज़्यादा ही समय लगा दिया. गेंद के रास्ते से बल्ला हटाने के क्रम में गेंद अंदरूनी किनारा लेकर रास्ता बदल चुकी थी. वो सीधे लेग स्टम्प पर जा टकराई. एक बेहद साधारण सी गेंद पर हल्की सी हिचक के चलते आउट हो जाने पर डुजों इस कदर हताश हुए कि उन्होंने ज़ोर से अपना दाहिना हाथ पिच पर दे मारा.
कपिल देव को इसी मौके का इंतज़ार था. 5 रन के अंतर पर ही अमरनाथ ने मैल्कम मार्शल को भी चलता किया. गावस्कर ने कैच पकड़ा. अब सिर्फ़ दो विकेट बचे हुए थे. भारत को जीतने के लिये दो अच्छी गेंदों की दरकार थी. वेस्ट इंडीज़ को 60 रनों की.
शॉपिंग कर रही पम्मी, रोनी देव और अन्नू लाल को एक दुकान पर चल रही टीवी से मालूम पड़ा कि भारत इतिहास रचने जा रहा था. वो लॉर्ड्स की तरफ़ बढ़ीं. लेकिन उनके पहुंचने से पहले ही जिमी अमरनाथ ने माइकल होल्डिंग को एलबीडब्लू आउट किया. अम्पायर की उंगली उठते ही अमरनाथ पवेलियन की ओर भागे. असल में, पूरे ग्यारह भारतीय खिलाड़ी एक ही दिशा में भाग रहे थे. उनके पीछे भारतीय दर्शक भाग रहे थे. खिलाड़ियों समेत दौड़ रही उस पूरी भीड़ ने एक सपने को साकार होते हुए देखा था. अब वो भीड़ अपना प्यार लुटा देना चाहती थी. जिमी अमरनाथ माइकल होल्डिंग तक पहुंचे तो भागते हुए स्टम्प उखाड़ने की कोशिश की. लेकिन वो इतनी मज़बूती से गड़ा हुआ था कि हाथ में नहीं आया. जिमी पीछे नहीं मुड़ सकते थे. दूर वाले छोर पर खड़े डिकी बर्ड ने एक स्टम्प उखाड़ा. हालांकि वो इसे यादगार के लिये नहीं बल्कि ख़ुद को भीड़ से बचाने के लिये इस्तेमाल करने वाले थे. सुनील गावस्कर स्लिप में खड़े थे. गेंद होल्डिंग के पैड से छिटककर उन तक पहुंची थी. उन्होंने गेंद उठाकर जेब में भरी और वो भी पवेलियन की दिशा में दौड़ पड़े.
प्रेस बॉक्स में विज्डन के एडिटर डेविड फ्रिथ अपनी कुर्सी से उठे और सभी को बधाई दी. उन्होंने अयाज़ मेमन को भी बधाई दी. डेविड का ज़िक्र ज़रूरी इसलिये है क्यूंकि उन्होंने विज्डन में अपने कॉलम में लिखा था कि भारत को टूर्नामेंट में जगह मिलने से इतने बड़े आयोजन की साख पर बट्टा लगा था. पीआर मानसिंह ने उन्हें ख़त लिखकर अपने शब्द वापस लेने को कहा था. डेविड फ्रिथ ने उस ख़त को भी अगली विज्डन में जगह दी थी. फ़ाइनल के बाद आये अगले संस्करण में डेविड फ्रिथ ने अपनी तस्वीर छापी. उस तस्वीर में फ्रिथ के एक हाथ में वाइन का ग्लास था और उनके मुंह में कागज़ के कुछ टुकड़े थे जो असल में उनका वही आर्टिकल था जिसमें उन्होंने भारतीय टीम को दोयम दर्जे की टीम बताते हुए उसकी आलोचना की थी. पीआर मान सिंह और डेविड फ्रिथ उस दिन के बाद से काफ़ी अच्छे दोस्त बन गए.
लॉर्ड्स के ड्रेसिंग रूम में जश्न चल रहा था. बालकनी के नीचे लोगों का हुजूम खड़ा हुआ था. कपिल देव, श्रीकांत, अमरनाथ, संदीप पाटिल, किरमानी का नाम पुकारा जा रहा था. श्रीकांत एक के बाद एक सिगरेट के कश लगा रहे थे. शैम्पेन की एक ही बोतल थी जो कपिल देव न जाने क्या सोचकर सुबह ही चोरी-छिपे अपने साथ लेकर आये थे. आधे-आधे घूंट में ही वो ख़तम हो गयी. कपिल और अमरनाथ वेस्ट इंडीज़ के कमरे में गए. क्लाइव लॉयड और बाकियों से शिष्टाचार भेंट के बाद वहां रखी शैम्पेन लेकर अपने ड्रेसिंग रूम में ले आये. शराब का इंतज़ाम तो हो गया लेकिन वहां लोग इतने मौजूद थे कि सभी को स्वाद चखने से ही काम चलाना पड़ा. जीत का जश्न देर रात तक चला. पम्मी, रोनी और अन्नू को स्टेडियम में वापस एंट्री नहीं मिली. सुनील गावस्कर उन्हें सेंट जॉन वुड्स पर मिलने नहीं पहुंच सके. क्यूंकि वो क्रिकेट खेलने वाली सबसे ताक़तवर टीम को हराकर दुनिया जीत चुके थे.