scorecardresearch
 

ईशा योग सेंटर में एक दिन... जहां योग, सिर्फ आसन नहीं, आत्मा की खोज है!

कोयंबटूर में वेलियांगिरी पहाड़ों के बीचोंबीच बसा ईशा योग केंद्र, योग के साथ-साथ आध्यात्मिकता का भी मेल है. यहां दिन की शुरुआत सुबह साढ़े पांच बजे गुरु पूजा से होती है, जिसके बाद साधक योग और मेडिटेशन से लेकर सेवा भी कर सकते हैं. इस सेंटर में इन तमाम गतिविधियों के बीच बीता एक दिन योग के बारे में मेरी तमाम पुरानी सोच को तोड़ने वाला साबित हुआ.

Advertisement
X
ईशा योग सेंटर में योग और आध्यात्म का मेल दिखता है. (Photo- Isha Foundation)
ईशा योग सेंटर में योग और आध्यात्म का मेल दिखता है. (Photo- Isha Foundation)

इंटरनेशनल योगा डे के मौके पर हम कोयंबटूर के ईशा योग केंद्र में हैं. पहाड़ों के बीचोंबीच सद्गुरु का ये आश्रम योग और आध्यात्मिकता की एक नई दुनिया खोलता है. वो दुनिया, जिसमें शांति तो ही है, साथ ही अलग किस्म की उठापटक है. खुद को खोजने की-पाने की. घने पेड़ों और पहाड़ों से तिरते-गिरते बादलों के बीच बसे आश्रम में हमने एक पूरा दिन बिताया और महसूस किया कि योग सिर्फ शारीरिक कसरत नहीं, बल्कि आत्मा की गांठ खोजने का एक जरिया है. 

वैसे तो यहां साधकों के लिए दिन की शुरुआत सुबह के तीन बजे ही हो जाती हैं, लेकिन वो उनका निजी समय है. इसमें बाहरियों का दखल नहीं. मेहमानों के लिए सुबह साढ़े पांच बजे का समय तय है. सूर्यकुंड मंडपम में गुरु पूजा से गतिविधि शुरू होती है. सुबह सवा पांच बजे कॉटेज से निकलकर बमुश्किल दस मिनट में मैं सूर्यकुंड पहुंच गई. 

Advertisement

यहां कुछ भी बनावटी नहीं लगता. पत्थर के ही ठंडे फर्श पर लोग आसन लगाए बैठे हैं. हर उम्र, हर जेंडर और दुनिया के अलग-अलग कोनों से आए हुए लोग. तभी मंत्रोच्चार शुरू होता है. आवाजें और लहजे अलग हैं, लेकिन उच्चारण एक जैसा- ट्रेंड. बैठे हुए ज्यादातर लोग शायद हिंदी न जानते हों, फिर भी संस्कृत का उच्चारण शुद्ध. इसके बाद ओम नमः शिवाय का जाप शुरू होता है, जो चलता रहता है, आप चाहे जितनी देर बैठकर जाप कर लें. 

इसी बीच कुछ लोग पीछे की तरफ जाकर योग करने लगे. ये पुराने लोग हैं, जो ईशा योग सेंटर में पहले भी आ चुके, या किसी और शहर में ईशा योग की ट्रेनिंग ले चुके. कुछ लोग ध्यान में मग्न हैं. 

guru puja and yoga isha yoga center coimbatore

यहीं सटा हुआ सूर्यकुंड है. वो सरोवर, जहां लोग स्नान करते हैं. ये जगह पुरुषों के लिए रिर्जव्ड है. कुछ दूरी पर महिलाओं के लिए चंद्रकुंड बना हुआ है. दोनों ही कुंडों में शिवलिंग हैं. सॉलिडिफाइड मर्करी से बने शिवलिंग से एक खास किस्म की ऊर्जा निकलती है. यहां स्नान किसी पूल में नहाने की तरह छोटे पल की खुशी नहीं देता, बल्कि कोई भाव देर तक ठहरा रहता है. 

Advertisement

लगभग 150 एकड़ में फैले आश्रम में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर श्राइन्स बने हुए हैं. कह सकते हैं कि बेहद छोटे आकार के मंदिर, जहां वही ऊर्जा है. साधकों और आश्रम आने वालों को हर वक्त ईश्वर से जोड़े रखने की ये कोशिश वाकई अलग है. लोग आते-जाते यहां रुकते और भस्म माथे पर लगाकर निकल जाते हैं. कुछ ही दूरी पर लिंग भैरवी मंदिर है.

सुबह लगभग साढ़े सात बजे यहां आरती होती है. किसी भी मंदिर की तरह यहां भी देवी पूजा के लिए सामान मिलेगा लेकिन काफी शांति से. आप पर्ची कटाइए और अपनी टोकरी लेकर चले जाइए. जगह-जगह प्लीज मेंटेन साइलेंस का बोर्ड लेकर खड़े वॉलंटियर्स. फुसफुसाहट भी हो तो वॉलंटियर आप पास आ जाएंगे और मुस्कुराते हुए चुप रहने का इशारा करेंगे. आश्रम के हर कोने में भारी भीड़ के बाद भी कोई हो-हल्ला नहीं सुनाई देता. 

bhairavi puja isha yoga center coimbatore

लिंग भैरवी पूजा के बाद मैं रेस्त्रां की तरफ जाती हूं. आश्रम की मुख्य कैंटीन, जिसे भिक्षा हॉल कहते हैं, में केवल दो बार खाना मिलता है, वो भी बगैर चाय-कॉफी के. चाय के शौकीनों के लिए रेस्त्रां ही सहारा है. यहां मैं सुक्कु कॉफी ट्राय करती हूं. रोस्टेड धनिया, गुड़ और अदरक से बनी इस कॉफी में कॉफी नहीं है, लेकिन स्वाद ऐसा कि कोई भी कैफीन प्रेमी चाय-कॉफी भूल जाए. 

इसके बाद उप-योगा और ओंकार मेडिटेशन होता है. उप-योगा क्या? इसे वार्मिंग-अप एक्टिविटी ही मान लीजिए. इसमें हल्की-फुल्की कसरत से शरीर को योग के लिए तैयार किया जाता है. वहीं ओंकार मेडिटेशन के बारे में सद्गुरु खुद वीडियो में बताते हैं. इसके बाद आश्रम की ही एक वॉलंटियर सिखाती हैं कि ओंकार का सही उच्चारण कैसे किया जाए. 

अब ब्रंच का वक्त हो चला था. नाश्ते और लंच के मेलजोल वाले इस भोजन के तीन राउंड्स होते हैं. हर राउंड के लिए समय तय है. एक मिनट भी आगे-पीछे हुए तो खाना मिस हो जाएगा. बड़े हॉल में पंगतों में लोग बैठे हुए. साफ-सुथरी थालियां पहले से बिछी हुईं. वॉलंटियर्स आते और खाना परोसते हैं. आप बिना बोले हाथ जोड़कर और मांग सकते या मना कर सकते हैं. पूरी तरह से सात्विक खाने में कच्ची सब्जियां भी हैं, फल भी और उबली दालें भी. मिलेट्स का इसमें खूब इस्तेमाल होता है. रोटियों की बजाए चावल की अलग-अलग किस्में ज्यादा दी जाती हैं.

Advertisement

akshaya kitchan isha yoga center coimbatore

इस हॉल में नया सबक मिला. खाने से पहले परोसी हुई थाली को कुछ मिनट देख लें. इससे टूट पड़ने और भूख से ज्यादा खा लेने की इच्छा आप-ही-आप खत्म हो जाएगी. आजमाने पर बात सही भी लगी. 


भिक्षा हॉल से होते हुए हम ध्यानलिंगा जाते हैं. पूरे आश्रम में जितना मैं देख सकी, उसमें यही जगह लगभग पूरी तरह से बंद है, सिवाय एक दरवाजे के. वॉलंटियर्स बताते हैं कि ध्यानलिंगा को सद्गुरु ने स्थापित किया है जिसमें सातों चक्र पूरी तरह से ऊर्जा से भरे हुए हैं. लिंग के चारों तरफ कमल के फूल और दीप सजे हुए. भीतर उतनी ही रोशनी जो संभलकर चलने के लिए काफी हो. हम बैठ जाते हैं.

यहां लोग अपने लीडर खुद हैं. मेडिटेशन के लिए कोई गाइड नहीं मिलेगा, न ही कोई रिकॉर्डिंग चलेगी. आप आंखें मूंदकर बैठिए और ध्यान कीजिए. हर थोड़ी देर में यहां एक घंटी बजती है. कोई चाहे तो उठकर बाहर जा सकता है, या चाहे तो सुबह से शाम तक ध्यान में रह सकता है. कोई उसे नहीं उठाएगा. कहना न होगा कि ध्यानलिंगा के भीतर ऐसे ढेरों लोग होते हैं, जो कई-कई घंटों मेडिटेशन में बैठे रह जाते हैं. 

dhyanalinga isha yoga center coimbatore

ध्यानलिंगा के ठीक सामने बाहर की तरह एक विशाल नंदी है. गौर से देखें तो पाएंगे कि नंदी का एक पांव कुछ ऐसे रखा हुआ है जैसे वो अलर्ट हो. महादेव बुलाएं और वो भागने को तैयार. वहीं नंदी के चेहरे पर गहरी शांति है. ये दो विरोधाभास हैं, जो एक तरह की सीख हैं. अलर्ट रहते हुए भी शांत रहा जा सकता है, या गहन शांति में भी सजगता जरूरी है. 

हमारा आखिरी पड़ाव था- आदियोगी. ये आश्रम आने वालों के लिए पहला और सबसे बड़ा आकर्षण माना जाता है. 100 फीट से ज्यादा ऊंची आदियोगी की प्रतिमा के बारे में एक इंटरव्यू में खुद सद्गुरु कहते हैं कि मैं चाहता था कि आध्यात्मिकता पहाड़ों से सड़कों तक पहुंच सके. अभी स्ट्रीट का मतलब तमाम दुख-दर्द लिए हुए है, जबकि इसके मायनों में वेल-बीइंग और आध्यात्मिकता आनी चाहिए. 

इसी भाव को जगाने-बढ़ाने के लिए आदियोगी की मूर्ति डिजाइन की गई. इसके पास ही योगेश्वर लिंग है. यहां अर्चना के बाद शाम को लगभग 15 मिनट का लाइट एंड साउंड शो होता है. दिव्य दर्शनम नाम के इस शो में आदियोगी और प्राचीन योग और सप्तर्षियों के बारे में बताया जाता है. जैसे ही शो शुरू हुआ, हजारों की भीड़ देखते-देखते एकदम शांत हो गई. शो खत्म होने के बाद भी काफी देर तक ये चुप बनी रही. लोग अपनी-अपनी जगहों पर बने रहे. 

इस जगह की एक खूबी ये भी है कि यहां दिमाग पर कोई ढक्कन लगाकर अपनी आवाज को चुप नहीं कराना है. बस, संकेत मिलेंगे और आप खुद ही नए रास्ते की तरफ बढ़ चलेंगे- योग की ओर, आध्यात्मिकता की ओर.

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement