महाराष्ट्र में दो भाइयों की सियासी राहें जब से जुदा हुईं, इन्हें एक गठबंधन में रहना तक गंवारा नहीं रहा. एक भाई की पार्टी जिस गठबंधन में रही, दूसरे भाई की पार्टी उसके विरोधी गठबंधन में. लेकिन अब वक्त की नजाकत कहें या सियासी सर्वाइवल का सवाल, दोनों ही भाई एक साथ आने को तैयार नजर आ रहे हैं.
संकेतों और संबोधनों के जरिये एकजुटता की स्क्रिप्ट लिखी जा रही है और चर्चा है कि महाराष्ट्र के आगामी निकाय चुनाव से पहले दोनों भाइयों के साथ आने का आधिकारिक ऐलान हो सकता है. यहां बात हो रही है महाराष्ट्र के सबसे प्रभावी सियासी परिवारों में से एक ठाकरे परिवार से आने वाले राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे की.
ठाकरे ब्रदर्स की एकजुटता के चर्चे क्यों
ठाकरे ब्रदर्स की एकजुटता के चर्चे शुरू हुए राज ठाकरे के एक इंटरव्यू से. फिल्म अभिनेता और निर्देशक महेश मांजरेकर को दिए एक इंटरव्यू में राज ठाकरे ने उद्धव ठाकरे के साथ जाने को लेकर सवाल पर कहा था कि मुझे नहीं लगता कि साथ आना और रहना मुश्किल है. महाराष्ट्र के, मराठी लोगों के अस्तित्व के लिए हमारे विवाद और झगड़े बहुत छोटे हैं. राज के इस बयान पर उद्धव ठाकरे ने सकारात्मक प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि छोटे-मोटे झगड़े किनारे रखने को तैयार हूं. उद्धव ने पिछले दिनों यह भी कहा था कि संकेत नहीं, खबर देंगे. महाराष्ट्र की जनता जो चाहती है, वही होगा.
एकजुट हुए तो महाराष्ट्र में क्या बदलेगा
उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की एकजुटता के चर्चों के बीच बात इसे लेकर भी हो रही है कि दोनों साथ आ भी गए तो महाराष्ट्र की राजनीति में क्या बदलेगा? जानकार दोनों की एकजुटता को सूबे की सियासत में बड़े बदलाव से जोड़कर देख रहे हैं. दरअसल, उद्धव ठाकरे की इमेज कुशल संगठन शिल्पी, शांत और संयमित नेता की है.
इसके उलट, राज ठाकरे फायरब्रांड राजनीति के लिए पहचान रखते हैं. राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के साथ आने से बड़ा बदलाव यह होगा कि बालासाहब ठाकरे की सियासी विरासत को लेकर चल रही त्रिकोणीय (शिवसेना, शिवसेना यूबीटी और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना) लड़ाई सीधी फाइट में बदल जाएगी. हिंदुत्व के साथ राज की फायरब्रांड मराठी पॉलिटिक्स का तड़का सत्ताधारी गठबंधन की राह में रोड़े भी उत्पन्न कर सकता है.
साथ आए तो कितने पावरफुल होंगे
राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे अगर साथ आते हैं, तो इससे ब्रांड ठाकरे मजबूत होगा. उद्धव ठाकरे की संयमित सियासत वाली शैली पसंद करने वाले वोटबैंक के साथ राज के आने से युवा वर्ग का समर्थन भी पार्टी को मिल सकता है. शिवसेना की सियासत में उद्धव के अचानक उभार से पहले तक शिवसेना के नेताओं और कार्यकर्ताओं का एक बड़ा वर्ग राज ठाकरे में बाल ठाकरे की छवि देखता था. कभी बाल ठाकरे की सियासी विरासत के नैसर्गिक वारिस माने जाने वाले राज और उद्धव ठाकरे साथ आ जाते हैं तो यह शिवसेना (शिंदे) के साथ ही बीजेपी के लिए भी चुनौतीपूर्ण होगा.
चुनावी आंकड़े क्या कहते हैं
ठाकरे ब्रदर्स की सियासी ताकत चुनावी आंकड़ों के आइने में देखें तो तस्वीर उतनी मजबूत नहीं दिखती. पिछले साल हुए महाराष्ट्र चुनाव में उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना (यूबीटी) ने 95 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और 10 फीसदी वोट शेयर के साथ 20 सीटें ही जीत सकी थी. राज ठाकरे की पार्टी ने 125 सीटों पर चुनाव लड़ा और 1.6 फीसदी वोट शेयर के साथ शून्य पर सिमट गई. दो गठबंधनों की सीधी फाइट में मनसे भले ही दो फीसदी के आंकड़े तक भी नहीं पहुंच सकी, लेकिन करीबी मुकाबले वाली कई सीटों पर पार्टी को जीत-हार के अंतर से अधिक वोट मिले थे.
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राज ठाकरे की पार्टी ने 2009 के महाराष्ट्र चुनाव से अपना चुनावी डेब्यू किया था. तब पार्टी को 5.7 फीसदी वोट शेयर के साथ 13 सीटों पर जीत मिली थी. शिवसेना को तब 16.3 फीसदी वोट शेयर के साथ 44 विधानसभा सीटों पर जीत मिली थी. हालांकि, इसके बाद राज ठाकरे की पार्टी के प्रदर्शन में गिरावट आती गई. 2014 के महाराष्ट्र चुनाव में एमएनएस ने 219 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और केवल एक ही जीत सकी. तब पार्टी का वोट शेयर भी पिछले चुनाव के 5.7 से गिरकर 3.2 फीसदी पर आ गया. 2019 में पार्टी 2.3 फीसदी वोट शेयर के साथ केवल एक सीट ही जीत सकी थी.
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दोनों को एक-दूसरे की जरूरत
महाराष्ट्र के 2024 चुनाव में एनडीए की दो तिहाई बहुमत से जीत, असली-नकली शिवसेना की जंग में शिंदे की पार्टी के भारी पड़ने के बाद उद्धव ठाकरे के सामने भी सर्वाइवल का सवाल है. राज के साथ आने से उनकी बाल ठाकरे की सियासी विरासत पर दावेदारी मजबूत हो सकती है. वहीं, राज का ब्रांड ठाकरे भी शिवसेना छोड़ अपनी पार्टी बनाने के बाद लगातार कमजोर पड़ता गया है, जैसा चुनाव दर चुनाव आंकड़े बता रहे हैं. राज ठाकरे को भी ब्रांड ठाकरे की जरूरत है.