पंजाब, गुजरात और पश्चिम बंगाल समेत चार राज्यों की पांच विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे आ चुके हैं. गुजरात की दो सीटों के उपचुनाव में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और आम आदमी पार्टी को एक-एक सीट पर जीत मिली है. वहीं, पंजाब की लुधियाना वेस्ट विधानसभा सीट भी आम आदमी पार्टी के खाते में गई है. इन दोनों ही राज्यों में विधानसभा चुनाव में जीत के साथ सत्ता में वापसी के दावे करती आ रही कांग्रेस पार्टी के लिए उपचुनाव नतीजे बड़ा झटका माने जा रहे हैं.
दो राज्यों की तीन विधानसभा सीटों के उपचुनाव में शून्य पर सिमटी कांग्रेस में नतीजों के बाद अब गुटबाजी भी खुलकर सामने आ गई है. गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष शक्ति सिंह गोहिल ने उपचुनाव में हार के बाद इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए पद से इस्तीफा दे दिया है. एक इस्तीफा पंजाब से भी हुआ है. लुधियाना वेस्ट विधानसभा सीट के उपचुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार रहे भारत भूषण आशु ने नतीजे आने के बाद कुछ घंटों के भीतर ही पंजाब कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष पद से इस्तीफे का ऐलान कर दिया.
सामने आई गुटबाजी
भारत भूषण आशु ने लुधियाना वेस्ट सीट पर अपनी हार की जिम्मेदारी लेते हुए पंजाब कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने यह भी कहा कि अपने चुनाव प्रचार के लिए पार्टी नेतृत्व से अपनी चुनी हुई टीम मांगी थी. आशु ने कहा कि हमने और हमारी टीम ने अपनी पूरी क्षमता से चुनाव लड़ा, लेकिन हार हुई. भारत भूषण आशु ने लुधियाना वेस्ट विधानसभा सीट के उपचुनाव में कांग्रेस की हार की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दिया है, लेकिन क्या वजह बस हार ही है?
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भारत भूषण आशु के इस्तीफे के पीछे गुटबाजी और हार के बाद पार्टी पर कमजोर पड़ी पकड़ को भी वजह बताया जा रहा है. भारत भूषण आशु पंजाब कांग्रेस के पुराने चेहरों में से एक हैं. आशु की पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वडिंग के साथ बिल्कुल भी नहीं बनती. पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा के साथ भी उनकी ट्यूनिंग ठीक नहीं है.
कहा तो यह भी जा रहा है कि भारत भूषण आशु ने खुद कांग्रेस नेतृत्व से यह साफ कह दिया था कि प्रदेश अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वडिंग और विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा उनके चुनाव प्रचार से दूर रहने चाहिए. भारत भूषण आशु ने पार्टी नेतृत्व से जो भी कहा, वह सब हुआ. हर चीज उनके मनमुताबिक हुई, लेकिन वह चुनावी बाजी नहीं जीत पाए. ऐसे में शायद उन्हें भी इस बात का अहसास हो गया था कि हार का नकारात्मक असर पार्टी में उनके कद पर भी पड़ सकता है.
गुजरात में भी गुटबाजी हावी
गुजरात कांग्रेस भी गुटबाजी हावी है. प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने वाले शक्ति सिंह गोहिल के समर्थक नेताओं-कार्यकर्ताओं का अपना गुट है. पूर्व मुख्यमंत्री माधव सिंह सोलंकी के समर्थकों का अपना और स्वर्गीय अहमद पटेल के समर्थक नेताओं का अपना धड़ा है. इन तीन प्रमुख गुटों के अलावा भी पार्टी कई छोटे-छोटे गुटों में बंटी हुई है. बीजेपी को गुजरात में हराने की बात संसद में कहने वाले लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी आम चुनाव के बाद तीन बार गुजरात का दौरा कर चुके हैं, लेकिन नेताओं के आपसी झगड़े सुलझाने में पार्टी को उतनी सफलता नहीं मिल सकी है. विसावदर और कडी विधानसभा सीट के उपचुनाव में पार्टी के प्रचार पर भी इसका असर दिखा.