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जातिगत जनगणना का मुद्दा संसद में उठाने की बात क्यों करने लगीं केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल?

केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने कहा है कि अपना दल (सोनेलाल) जातिगत जनगणना की पक्षधर है. हम ये मुद्दा संसद में उठाएंगे. अनुप्रिया सरकार में भागीदार हैं, फिर जातिगत जनगणना का मुद्दा संसद में उठाने की बात क्यों करने लगीं?

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केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल (फाइल फोटोः पीटीआई)
केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल (फाइल फोटोः पीटीआई)

मौसम चुनावी है और इसमें जातिगत जनगणना हावी है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव जातिगत सर्वे करा आंकड़े जारी करने के लिए अपनी पीठ थप-थपा रहे हैं तो वहीं कांग्रेस लगभग हर चुनावी राज्य में जातिगत जनगणना के वादे कर रही है. कांग्रेस सीडब्ल्यूसी से प्रस्ताव पारित कर ये भी कह चुकी है कि हम जातिगत जनगणना कराने के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पर भी दबाव डालेंगे.

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कांग्रेस और विपक्षी पार्टियों की कौन कहे, अब बीजेपी के गठबंधन सहयोगी ही चुनावी मौसम में पार्टी की मुश्किलें बढ़ाते नजर आ रहे हैं. उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) की प्रमुख और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने भी जातिगत जनगणना का मुद्दा संसद में उठाने की कह दी है. अनुप्रिया पटेल उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में अपने पिता सोनेलाल पटेल की पुण्यतिथि पर आयोजित संकल्प सभा के बाद पत्रकारों से बात कर रही थीं. उन्होंने कहा कि अपना दल जातिगत जनगणना कराने के पक्ष में है. हम संसद में ये मुद्दा उठाएंगे.

केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया ने साथ ही ये भी कहा कि अपना दल, बीजेपी के साथ गठबंधन में चार चुनाव (2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव, 2017 और 2022 का यूपी चुनाव) लड़ चुकी है. हम पांचवां चुनाव भी मिलकर लड़ेंगे. अनुप्रिया पटेल केंद्र सरकार में मंत्री हैं. सवाल ये उठ रहा है कि मंत्री होकर भी अनुप्रिया जातिगत जनगणना का मुद्दा संसद में उठाने की बात क्यों कर रही हैं? इसके पीछे खास रणनीति है या कोई वजह?

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दरअसल, जातिगत जनगणना को लेकर उत्तर प्रदेश में जिस तरह से विपक्षी समाजवादी पार्टी (सपा) आक्रामक है, कांग्रेस संसद में मुखर है, अपना दल जैसी पार्टियों को अपनी जमीन खिसकने का डर है. सपा जातिगत जनगणना के मुद्दे पर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को अपने साथ गोलबंद करने की कोशिश में है. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, सोनिया गांधी जैसे बड़े चेहरों ने संसद में जातिगत जनगणना कराने और ओबीसी आरक्षण की मांग को लेकर आवाज उठाकर भी इन दलों की टेंशन और बढ़ा दी.

वरिष्ठ पत्रकार और पूर्वांचल की राजनीति को करीब से समझने वाले डॉक्टर राजन ने कहा कि अनुप्रिया का बयान ही उनकी रणनीति बता रहा है. अनुप्रिया नहीं चाहतीं कि जातिगत जनगणना को लेकर ओबीसी वर्ग का कुर्मी वोटर उनसे छिटक जाए. कुर्मी ही अनुप्रिया की पार्टी का बेस वोटर भी है. दूसरी तरफ, अनुप्रिया ये भी जानती हैं कि केवल कुर्मी वोट के भरोसे उनके लिए अपनी सीट निकाल पाना भी संभव नहीं है. संसद में पहुंचना है तो किसी दूसरे दल का सहयोग जरूरी है और उनके लिए बीजेपी सबसे मुफीद पार्टी है. इसीलिए वह ये भी साफ कर रही हैं कि हम बीजेपी से गठबंधन में ही चुनाव लड़ेंगे.

कहा तो ये भी जा रहा है कि अनुप्रिया पटेल मंत्री हैं. अगर वह जातिगत जनगणना का सही में समर्थन करती ही हैं तो मंत्रिमंडल की बैठक में या प्रधानमंत्री से मुलाकात का समय लेकर उनके सामने ये मुद्दा उठाना चाहिए. अपना दल विपक्ष में होता तो ये मुद्दा उठाने की बात समझ भी आती. अनुप्रिया सरकार के स्तर पर कुछ भी करने से परहेज कर रही हैं. उनका बयान अपने मतदाताओं को मैसेज देने की कोशिश भर है.

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वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर विनय कुमार ने कहा कि बीजेपी से गठबंधन अनुप्रिया की पार्टी के लिए जरूरी भी है, मजबूरी भी है. 2019 चुनाव के बाद मंत्रिमंडल में जगह के लिए अनुप्रिया को लंबा इंतजार करना पड़ा था. अनुप्रिया अब ये मुद्दा प्रधानमंत्री के सामने उठाकर सरकार बनने की स्थिति में मंत्री पद का इंतजार 2027 तक ले जाना नहीं चाहेंगी.

एक पहलू ये भी है कि अनुप्रिया पटेल की पार्टी के साथ गठबंधन कर कुर्मी मतदाताओं को खुद से कनेक्ट करने के बाद से ही बीजेपी ने कुर्मी लीडरशिप तैयार करने पर फोकस कर दिया था. स्वतंत्रदेव सिंह को योगी सरकार में ताकतवर मंत्री बनाने से लेकर यूपी बीजेपी का अध्यक्ष बनाए जाने तक, पार्टी की इसी रणनीति का हिस्सा बताए जा रहे हैं. स्वतंत्रदेव भी उसी मिर्जापुर से आते हैं जहां से अनुप्रिया पटेल सांसद हैं.

कहा तो ये भी जा रहा है कि अनुप्रिया पटेल की बारगेनिंग पावर तो घटी ही है, वह इस स्थिति में नहीं हैं कि बीजेपी पर या केंद्र सरकार पर किसी मुद्दे को लेकर दबाव बना पाएं. अब एनडीए में उनका रहना अपनी राजनीति बचाए रखने के लिए जरूरी है. इसीलिए अनुप्रिया ने जातिगत जनगणना के मुद्दे को लेकर परसेप्शन की लड़ाई में बस संदेश देने का रास्ता चुना, दबाव बनाने का नहीं. अनुप्रिया ने इसके लिए अपने पिता की पुण्यतिथि को चुना.

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