सुप्रीम कोर्ट में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर मंगलवार को करीब पौने चार घंटे तक सुनवाई चली. इस दौरान याचिकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, चंद्र उदय सिंह और हुजैफा अहमदी ने अपनी दलीलें शीर्ष अदालत के समक्ष रखीं. इन्होंने वक्फ संशोधन कानून को नागरिक और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला बताया और इसके सेक्शन 3डी पर पूर्ण रूप से रोक लगाने की मांग की. अब कल फिर से इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता केंद्र सरकार का पक्ष रखेंगे.
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ इस बात पर विचार करेगी कि मामले पर अंतिम निर्णय आने तक संशोधित कानून के क्रियान्वयन पर रोक लगाई जानी चाहिए या नहीं. सीजेआई के साथ जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह दूसरे जज हैं. दोनों पक्षों को अपनी दलीलें अदालत के किसी अंतरिम निर्णय पर पहुंचने से पहले समाप्त करना है. मुस्लिम पक्ष ने पांच वकीलों के नाम तय किए हैं- कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, राजीव धवन, सलमान खुर्शीद और हुजैफा अहमदी. वक्फ कानून को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं के नोडल वकील एजाज मकबूल होंगे. कानून का समर्थन करने वाले याचिकाकर्ताओं की ओर से संभावित वकीलों में राकेश द्विवेदी, मनिंदर सिंह, रंजीत कुमार, रविंद्र श्रीवास्तव और गोपाल शंकर नारायण शामिल हो सकते हैं. नोडल वकील के रूप में विष्णु शंकर जैन की सेवाएं ली जा रही हैं.
हुजैफा अहमदी ने कहा कि 1954 के वक्फ अधिनियम ने वक्फ प्रॉपर्टी के रजिस्ट्रेशन को अनिवार्य बनाया था. अब सेक्शन 3D के कारण सभी वक्फ एक झटके में खत्म हो जाते हैं. यह अधिनियम एक खास समुदाय को भी निशाना बनाता है. इसी कोर्ट ने प्राचीन स्मारकों आदि से संबंधित आगे के मुकदमों पर रोक लगा दी है. लेकिन यह सब इस अधिनियम के साथ फिर से शुरू हो जाएगा. ये धारा 3D के कारण ऐसा होता है और इस प्रकार यह प्रावधान अतिक्रमणकारी है. अहमदी के बाद अधिवक्ता निजाम पाशा ने अपनी दलीलें पेश करने की मांग की. इस पर सीजेआई बीआर गवई ने कहा- हमने आपको तीन घंटे से ज्यादा का समय दिया है. हम देखेंगे. इस तरह याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकीलों की दलीलें पौने चार घंटे तक चलीं. अब कोर्ट बुधवार को आगे की सुनवाई करेगा. कल की सुनवाई की शुरुआत एसजी तुषार मेहता के दलीलों से होगी और वह वक्फ संशोधन विधेयक पर सरकार का पक्ष सुप्रीम कोर्ट में रखेंगे.
सिंघवी के बाद एडवोकेट चंद्र उदय सिंह ने दलीलें दीं और इसके बाद हुजैफा अहमदी ने दलील रखते हुए वक्फ संशोधन अधिनियम की धारा 3(d) पर जोर डाला. इस प्रावधान के वक्फ संपत्तियों पर भविष्य में पड़ने वाले असर का उन्होंने जिक्र किया. अहमदी ने कहा कि क्या कोई यह पूछ सकता है कि आप दिन में पांच बार नमाज पढ़ते हैं या नहीं, क्या किसी से यह पूछा जा सकता है कि वह आप शराब पीता है या नहीं? क्या इन बातों के आधार पर यह तय किया जा सकता है कि कोई व्यक्ति धार्मिक रीति से मुसलमान है या नहीं? जहां तक संशोधित कानून के सेक्शन 3डी का सवाल है, इसका प्रभाव बहुत बड़ा है. इसका असर सदियों पुरानी संपत्तियों और मस्जिदों पर पड़ेगा. सेक्शन 3D पर पूरी तरह से रोक लगाने की जरूरत है.
अभिषेक मनु सिंघवी की अगली दलील थी कि प्रॉपर्टी पर विवाद कभी भी शुरू हो सकता है. संशोधित कानून में ऐसा प्रावधान है कि एक बार विवाद शुरू हुआ तो फैसला होने तक उस प्रॉपर्टी का वक्फ दर्जा समाप्त हो जाता है. यह कहा जा रहा है कि कानून में संशोधन के बाद वक्फ प्रॉपर्टी के रजिस्ट्रेशन में भारी उछाल आया है, जबकि सच्चाई ये है कि पोर्टल 2013 में खोला गया था. पोर्टल पर पुराने दस्तावेज अपलोड करने की प्रक्रिया चल रही है, इसको वक्फ प्रॉपर्टी के रजिस्ट्रेशन में वृद्धि के रूप में बताया जा रहा है. सिंघवी ने जेपीसी रिपोर्ट पर सवाल उठाते हुए कहा कि 28 में से 5 राज्यों का सर्वेक्षण किया गया, 9.3 प्रतिशत क्षेत्र का सर्वेक्षण किया गया. फिर कहते हैं कि कोई रजिस्टर्ड वक्फ नहीं था.
वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ याचिका दायर करने वालों का पक्ष रखते हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह संशोधन इसलिए किया गया है ताकि वक्फ रजिस्ट्रेशन के लिए हमेशा दफ्तर के चक्कर काटने को मजबूर होना पड़े. यह सिर्फ लोगों में डर पैदा करने के लिए है और इस तरह कोई भी युक्ति साबित नहीं हो सकती. हर धर्म में धर्माथ व्यवस्था होती है. कौन सा धर्म आपसे यह साबित करने के लिए कहता है कि आप पिछले 5 सालों से इसका पालन कर रहे हैं? इस तरह से धर्म का सबूत कौन मांगता है?
सिब्बल ने कहा कि अगर आप 14 राज्यों के वक्फ बोर्ड को देखें तो सभी सदस्य मनोनीत हैं, कोई चुनाव नहीं होता. कोर्ट ने डेटा देखने के बाद कहा- यहां केवल एक ही पदेन सदस्य है. कपिल सिब्बल ने कहा- जिस तरह शैक्षणिक संस्थानों को प्रबंधन का अधिकार है, उसी तरह धार्मिक संस्थानों को भी अपने मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार है. वक्फ काउंसिल्स में गैर मुस्लिमों को सदस्य बनाना धर्मनिरपेक्षता नहीं है, क्योंकि वक्फ का निर्माण ही धर्मनिरपेक्ष कार्य नहीं है. यह मुसलमानों की संपत्ति है जिसे वे ईश्वर को समर्पित कर देते हैं.'
चीफ जस्टिस गवई ने कहा- लेकिन पिछले कानून और इसमें एकमात्र अंतर यह है कि दो पदेन और दो गैर मुस्लिम सदस्य हो सकते हैं. सिब्बल ने कहा- नहीं, सांसदों को यह कहने की जरूरत नहीं है कि वे मुसलमान होंगे. यदि न्यायालय जो कह रहा है वह सही है, इसमें 4 लोग गैर मुस्लिम हो सकते हैं तो यह पहले की व्यवस्था से अलग है. जहां सभी का मुस्लिम होना आवश्यक था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपका तर्क मुख्य रूप से यह था कि बोर्ड या परिषद में बहुसंख्यक गैर मुस्लिम होंगे. सिब्बल ने कहा कि हो सकता है. ये तो अब भी सच है. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि अगर यह कहा जाए तो कम से कम आपकी दलील सही होगी. हम इसकी व्याख्या इस तरह कर सकते हैं कि पदेन के अलावा दो और भी गैर मुस्लिम सदस्य हो सकते हैं. सिब्बल ने कहा कि हमारी आपत्ति भी यही है कि किसी भी हिंदू धर्मस्थान की बंदोबस्ती में एक भी व्यक्ति गैर हिंदू नहीं है. यदि आप अन्य धार्मिक समुदाय को विशेषाधिकार दे रहे हैं तो यहां क्यों नहीं?
कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट को वक्फ काउंसिल के गठन के बारे में बताया कि पहले इसमें केवल मुसलमान सदस्य थे और अब इसमें बहुसंख्यक गैर-मुस्लिम हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि ये सभी आपस में जुड़े हुए प्रावधान हैं, संपत्तियों पर कब्जा करने के लिए. कानून की प्रक्रिया के बिना लेकिन कानून के माध्यम से. सिब्बल ने कहा कि हम यह मानकर चल रहे हैं कि बोर्ड में ऐसे गैर मुस्लिम भी हो सकते हैं जिनकी नियुक्ति पर रोक नहीं है. अधिकतम हम एक बार में 8 की गारंटी दे सकते हैं.
कपिल सिब्बल ने कहा कि मैं क्यों बताऊं कि मैं प्रैक्टिसिंग मुस्लिम हूं. मुझे पांच साल का इंतजार क्यों करना चाहिए? यह संविधान के आर्टिकल 14, 25 और 26 का उल्लंघन है. अगर कोई अतिक्रमणकारी विवाद पैदा करता है, तो यह वक्फ नहीं होगा. इस पर सीजेआई ने कहा कि आपके मुताबिक धारा 3 के प्रावधान के तहत अगर कोई विवाद उठाया जाता है, तो आपकी संपत्ति वक्फ होना बंद हो जाएगी. इस पर सिब्बल ने कहा कि हां, वो भी किसी भी स्थानीय अथॉरिटी के द्वारा. सीजेआई ने कहा किमहाराष्ट्र के औरंगाबाद में भी वक्फ संपत्तियों को लेकर कई विवाद हैं. इस पर सिब्बल ने कहा कि हां, अडंगा लगाना हमारे डीएनए में है. कोई भी ग्राम पंचायत या निजी व्यक्ति भी शिकायत दर्ज करा सकते है और संपत्ति वक्फ नहीं रह जाती क्योंकि विवाद पर सरकारी अधिकारी ही इसका फैसला करेगा और अपने मामले में खुद ही जज होगा. इस कानून की यह धारा अधिकारों का हनन करती है. यह अन्यायपूर्ण और मनमाना है. नागरिक अधिकारों का उल्लंघन है.
कपिल सिब्बल की दलीलें सुनने के बाद सीजेआई बीआर गवई ने कहा- खजुराहो में एक मंदिर पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है, फिर भी लोग वहां जाकर पूजा-प्रार्थना कर सकते हैं. सिब्बल ने कहा- नया कानून कहता है कि अगर कोई संपत्ति एएसआई संरक्षित है तो यह वक्फ नहीं हो सकती. सीजेआई ने पूछा- क्या इससे आपका अपने धर्म का पालन करने का अधिकार छिन जाता है? क्या आप वहां जाकर प्रार्थना नहीं कर सकते? सिब्बल ने कहा- हां, इस कानून में कहा गया है कि वक्फ संपत्ति को रद्द माना जाता है. कोर्ट ने उनसे फिर पूछा- क्या इससे आपका धर्म पालन का अधिकार भी छिन जाता है? सिब्बल ने कहा- अगर किसी प्रॉपर्टी की वक्फ मान्यता ही खत्म हो जाती है, तो मैं वहां कैसे जा सकता हूं? सीजेआई ने कहा- मैंने एक एएसआई संरक्षित मंदिर का दौरा किया; मैंने देखा कि भक्त वहां जाकर प्रार्थना कर सकते हैं. तो क्या इस तरह की घोषणा से आपका प्रार्थना करने का अधिकार छिन जाता है? सिब्बल- अगर आप कहते हैं कि वक्फ मान्यता रद्द की जाती है तो इसका मतलब अब वह प्रॉपर्टी वक्फ नहीं है. मेरा कहना है कि यह प्रावधान अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है. न्यायालय के रिकॉर्ड पर लिया कि याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन करता है और नागरिकों से उनकी धार्मिक प्रथाओं को जारी रखने का अधिकार छीन लिया जाएगा.
कपिल सिब्बल ने कहा कि 1954 के बाद वक्फ कानून में जितने भी संशोधन हुए, उनमें वक्फ प्रॉपर्टी का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य था. अदालत ने पूछा- क्या वक्फ बाय यूजर में भी पंजीकरण अनिवार्य था. सिब्बल ने हां में जवाब दिया. अदालत ने कहा- तो आप कह रहे 1954 से पहले उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ का पंजीकरण आवश्यक नहीं था और 1954 के बाद यह आवश्यक हो गया. सिब्बल- इस बारे में कुछ भ्रम है, यह 1923 हो सकता है. मुख्य न्यायाधीश ने कहा- बहुत दबाव है, सिर्फ हम पर ही नहीं बल्कि आप पर भी.
कपिल सिब्बल ने कहा- पुराने एक्ट में सिर्फ इतना कहा गया है कि जो मुत्तवल्ली ऐसा नहीं करता, वह अपना अधिकार खो देता है. बस इतना ही है. सुप्रीम कोर्ट ने यह रिकॉर्ड पर रखा कि याचिकाकर्ताओं ने प्रस्तुत किया है कि 1913 से 2013 के अधिनियम में यद्यपि वक्फ के पंजीकरण का प्रावधान था, लेकिन मुतवल्ली को हटाने के अलावा गैर-अनुपालन के लिए कोई परिणाम प्रदान नहीं किया गया था. यह प्रस्तुत किया गया है कि 2025 से पहले उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ पंजीकृत होना आवश्यक नहीं था. हम यह पूछ रहे हैं कि क्या प्रासंगिक समय के अधिनियमों के तहत वक्फ के रूप में पंजीकृत होना अनिवार्य या आवश्यक था? अदालत ने कहा- हम सिर्फ यह पूछ रहे हैं कि क्या प्रासंगिक समय के अधिनियमों के तहत वक्फ संपत्ति का पंजीकृत होना अनिवार्य या आवश्यक था?
सिब्बल- 2025 का कानून पुराने कानून से बिल्कुल अलग है. इसमें दो अवधारणाएं हैं- उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ बनाई गईं संपत्तियां और इनका समर्पण. बाबरी मस्जिद मामले में भी इसे मान्यता दी गई थी. उपयोगकर्ता द्वारा बनाए गए कई वक्फ सैकड़ों साल पहले बनाए गए थे. वे कहां जाएंगे? सीजेआई- क्या पहले के कानून में पंजीकरण की आवश्यकता थी? सिब्बल- हां.. इसमें कहा गया था कि इसे पंजीकृत किया जाएगा. सीजेआई- सूचना के तौर पर हम पूछ रहे हैं कि क्या पुराने कानून के तहत वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण का प्रावधान अनिवार्य था या सिर्फ ऐसा करने का निर्देश था? सिब्बल- ने कहा 'Shall' शब्द का इस्तेमाल किया गया था. CJI- केवल 'Shall' शब्द के प्रयोग से पंजीकरण कराना अनिवार्य नहीं हो सकता, क्या ऐसा नहीं करने पर कोई प्रावधान था? यदि ऐसा था तो क्या पंजीकरण अनिवार्य हो सकता है? तो हम आपकी इस दलील को दर्ज करेंगे कि पुराने अधिनियम के तहत पंजीकरण की आवश्यकता थी, लेकिन ऐसा नहीं करने पर क्या होगा इसका कोई प्रावधान नहीं था, इसलिए पंजीकरण न कराने पर कुछ नहीं होने वाला था.
कपिल सिब्बल ने अपनी दलीलें दीं. उन्होंने कहा कि संशोधन को वक्फ को एक ऐसी प्रक्रिया के माध्यम से नियंत्रित करने के लिए तैयार किया गया है जो कार्यकारी है. वक्फ को दान दी गईं निजी संपत्तियों को केवल इसलिए छीना जा रहा है क्योंकि कोई विवाद है. इस कानून को वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करने के लिए डिजाइन किया गया है. स्टेट धार्मिक संस्थाओं की फंडिंग नहीं कर सकता. यदि कोई मस्जिद या कब्रिस्तान है तो स्टेट उसकी फंडिंग नहीं कर सकता, यह सब निजी संपत्ति के माध्यम से ही होना चाहिए. अगर आप मस्जिद में जाते हैं तो वहां मंदिरों की तरह चढवा नहीं होता, उनके पास 1000 करोड़, 2000 करोड़ नहीं होते. सीजेआई बीआर गवई ने कपिल सिब्बल की दलील पर कहा- मैं दरगाह भी गया, चर्च भी गया... हर किसी के पास यह (चढ़ावे का पैसा) है. सिब्बल ने कहा- दरगाह दूसरी बात है, मैं मस्जिदों की बात कर रहा.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने दोनों पक्षों को दो-दो घंटे का समय दिया है. वे जैसे चाहें बहस करें. सीजेआई बीआर गवई ने कहा- मुझे खुशी हो रही है कि मेरे पास यहां केवल छह महीने बचे हैं. हाई कोर्ट में जज के रूप में मेरा कार्यकाल कहीं बेहतर था.
एसजी तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट के पहले के आदेश से प्रासंगिक अंश पढ़े. पीठ ने कहा कि हम जाकर पूछ नहीं सकते... आदेश रिकॉर्ड में है. एसजी ने- मैंने हलफनामे में कहा है कि मेरा जवाब तीन मुद्दों तक सीमित है. याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल ने कहा- इन तीन मुद्दों पर जवाब दीजिए, फिर मामले को अंतरिम आदेश के लिए सूचीबद्ध किया जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि दरगाहों में तो चढ़ावा होता है. इस पर सिब्बल ने कहा कि मैं मस्जिदों की बात कर रहा हूं. दरगाह अलग है. सिब्बल ने कहा कि मंदिरों में चढ़ावा आता है लेकिन मस्जिदों में नहीं. यही वक्फ बाय यूजर है. बाबरी मस्जिद भी ऐसी ही थी. 1923 से लेकर 1954 तक अलग अलग प्रावधान हुए, लेकिन बुनियादी सिद्धांत यही रहे.
कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि इस मामले में अंतरिम आदेश जारी करने पर सुनवाई होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि ये कानून असंवैधानिक और वक्फ संपत्ति को कंट्रोल करने वाला और छीनने वाला है. संशोधित कानून में प्रावधान किया गया है कि वक्फ की जाने वाली संपत्ति पर किसी विवाद की आशंका से जांच होगी. कलेक्टर जांच करेंगे. जांच की कोई समय सीमा नहीं है. जब तक जांच रिपोर्ट नहीं आएगी तब तक संपत्ति वक्फ नहीं मानी जाएगी. जबकि अल्लाह के नाम पर वक्फ संपत्ति दी जाती है. एक बार वक्फ हो गया तो हमेशा के लिए हो गया. सरकार उसमें आर्थिक मदद नहीं दे सकती. मस्जिदों में चढ़ावा नहीं होता, वक्फ संस्थाएं दान से चलती हैं.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि शुरुआत में तीन बिंदु तय किए गए. हमने तीन पर जवाब दिए. लेकिन पक्षकारों ने इन तीन मुद्दों से भी अलग मुद्दों का जिक्र किया है. सुप्रीम कोर्ट सिर्फ तीन ही मुद्दों पर फोकस रखे. मुस्लिम पक्ष के वकील कपिल सिब्बल ने सॉलिसिटर जनरल की मांग का विरोध करते हुए कहा कि हम तो सभी मुद्दों पर दलील रखेंगे. यह सम्पूर्ण वक्फ सम्पत्ति पर कब्जा करने का मामला है.
केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने 25 अप्रैल को, संशोधित वक्फ अधिनियम 2025 का बचाव करते हुए 1332 पन्नों का एक प्रारंभिक हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में दायर किया और संसद द्वारा पारित कानून पर अदालत द्वारा किसी भी रोक का विरोध किया था. केंद्र ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को 5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिलने के बाद पिछले महीने अधिसूचित किया था. वक्फ संशोधन विधेयक को लोकसभा में 288 सदस्यों के समर्थन से पारित किया गया, जबकि 232 सांसद इसके विरोध में थे. राज्यसभा में इसके पक्ष में 128 और विपक्ष में 95 सदस्यों ने मतदान किया.
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने 15 मई को सुनवाई 20 मई तक स्थगित कर दी थी और कहा था कि वह तीन मुद्दों पर अंतरिम निर्देश पारित करने के लिए दलीलें सुनेगी, जिनमें कोर्ट, यूजर और डीड द्वारा वक्फ घोषित की गईं संपत्तियों को डि-नोटिफाई करने का मामला शामिल है. याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाया गया दूसरा मुद्दा राज्य वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना से संबंधित है, जहां उनका तर्क है कि पदेन सदस्यों को छोड़कर इन संस्थाओं में सिर्फ मुस्लिम सदस्य ही होने चाहिए. तीसरा मुद्दा उस प्रावधान से संबंधित है, जिसके अनुसार, जब कलेक्टर यह पता लगाने के लिए जांच करेगा कि संपत्ति सरकारी भूमि है या नहीं, तो इस पूरी प्रक्रिया के दौरान वक्फ संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा.
मुस्लिम पक्ष ने पांच वकीलों के नाम तय कर लिए हैं जो उनकी तरफ से दलीलें रखेंगे. ये नाम हैं कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, राजीव धवन, सलमान खुर्शीद और हुजैफा अहमदी. वक्फ कानून को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं के नोडल वकील एजाज मकबूल होंगे. कानून का समर्थन करने वाले याचिकाकर्ताओं की ओर से संभावित वकीलों में वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी, मनिंदर सिंह, रंजीत कुमार, रविंद्र श्रीवास्तव और गोपाल शंकर नारायण हो सकते हैं. नोडल वकील के रूप में विष्णु शंकर जैन की सेवाएं ली जा रही हैं.
वक्फ कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी. दोनों पक्षों को मुद्दे पर बहस के लिए दो-दो घंटे का समय दिया जाएगा. चीफ जस्टिस बी.आर गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ सुनवाई करेगी. पिछली सुनवाई में तय हुआ था कि दाखिल याचिकाओं में से पांच लीडिंग याचिकाएं ही होंगी जिन पर विचार होगा.