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सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन कैदियों को वोट का अधिकार मामले की सुनवाई, EC और केंद्र से जवाब मांगा

सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है जिसमें विचाराधीन कैदियों को वोट देने का अधिकार देने की मांग की गई है. पटियाला की रहने वाली सुनीता शर्मा ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को पक्षकार बनाकर यह याचिका दाखिल की है, जो देश के लगभग 4.5 लाख विचाराधीन कैदियों को प्रभावित करेगी.

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सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन कैदियों को वोट देने का अधिकार देने पर सुनवाई की (File Photo: ITG)
सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन कैदियों को वोट देने का अधिकार देने पर सुनवाई की (File Photo: ITG)

सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण मामला आया है जिसमें जेल में बंद उन लोगों को वोट देने का अधिकार देने की मांग की गई है जिन पर अभी तक केवल आरोप लगे हैं लेकिन कोर्ट ने उन्हें दोषी नहीं ठहराया है. 

पंजाब के पटियाला की रहने वाली सुनीता शर्मा ने यह जनहित याचिका दायर की है. उन्होंने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को इसमें पक्षकार बनाया है. इस मामले से देश भर के लगभग साढ़े चार लाख विचाराधीन कैदी प्रभावित हैं. हालांकि इस मांग में वे कैदी शामिल नहीं हैं जो चुनाव से जुड़े भ्रष्टाचार या धोखाधड़ी के मामलों में जेल में बंद हैं. 

याचिकाकर्ता का कहना है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहां हर नागरिक को अपनी सरकार चुनने का बराबर का अधिकार है. संविधान के अनुच्छेद 326 में साफ लिखा है कि हर वयस्क नागरिक को वोट देने का अधिकार है.

लेकिन जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 62(5) सभी जेल में बंद लोगों को वोट देने से रोकती है - चाहे वे दोषी साबित हुए हों या न हुए हों. यह पूरी तरह से प्रतिबंध संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के खिलाफ है.

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मुख्य सवाल

याचिका में एक अहम सवाल उठाया गया है: क्या हत्या, बलात्कार जैसे गंभीर मामलों से लेकर छोटे-मोटे अपराधों में फंसे लोगों को वोट देने के अधिकार से वंचित करना सही है?

याचिका में कानून के एक बुनियादी सिद्धांत का हवाला दिया गया है - "निर्दोष होने की अवधारणा". इसके अनुसार कोई भी व्यक्ति तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक कि कोर्ट उसे दोषी न ठहरा दे. 

यह भी पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की कफ सिरप से बच्चों की मौत पर जनहित याचिका, नहीं की कोई टिप्पणी

प्रभावित लोगों की संख्या

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 62(5) की वजह से लगभग 5 लाख विचाराधीन कैदी अपने वोट देने के अधिकार से वंचित हैं. यह एक बड़ी संख्या है और लोकतंत्र में इनकी आवाज का महत्व है.

कानूनी जटिलता

यह मामला विचाराधीन कैदियों के अधिकारों और कानून के शासन के बीच संतुलन बनाने की जटिलता को दिखाता है. एक तरफ न्याय की प्रक्रिया है, दूसरी तरफ लोकतांत्रिक अधिकार हैं.

कोर्ट की प्रतिक्रिया

मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायाधीश के विनोद चंद्रन की पीठ ने वकील प्रशांत भूषण की दलीलें सुनने के बाद केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से इस मामले में जवाब मांगा है.

आगे की राह

अब देखना यह है कि सरकार और चुनाव आयोग इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाते हैं. यदि कोर्ट इस याचिका को मान लेता है तो यह भारतीय चुनावी व्यवस्था में एक बड़ा बदलाव होगा. यह मामला न केवल कानूनी बल्कि सामाजिक न्याय का भी मुद्दा है, जिसका फैसला भारतीय लोकतंत्र की दिशा तय कर सकता है.

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