सुप्रीम कोर्ट ने स्कूलों में ट्रांसजेंडर-समावेशी यौन शिक्षा (CSE) लागू करने की मांग वाली एक याचिका पर केंद्र सरकार, एनसीईआरटी और छह राज्यों को नोटिस जारी किया है. यह याचिका एक 12वीं कक्षा के छात्र ने दायर की है, जिसमें कहा गया है कि संवैधानिक और कानूनी निर्देशों के बावजूद, पाठ्यपुस्तकों में ट्रांसजेंडर-समावेशी सामग्री को शामिल नहीं किया गया है. यह याचिका अनुच्छेद 32 के तहत दायर की गई है.
याचिकाकर्ता के लिए सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन ने अदालत को बताया कि आरटीआई के जवाब में, एनसीईआरटी ने कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट के पिछले आदेशों से अनजान है.
याचिका 2014 के नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी बनाम भारत संघ और 2024 के सोसाइटी फॉर एनलाइटनमेंट एंड वॉलंटरी एक्शन बनाम भारत संघ जैसे मामलों में दिए गए निर्देशों पर आधारित है. इसमें ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 का भी उल्लेख है, जो समावेशी शिक्षा की मांग करता है.
पाठ्यक्रम में कमियां और संवैधानिक उल्लंघन...
याचिका में महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे कई राज्यों में पाठ्यक्रम में मौजूद कमियों की ओर इशारा किया गया है. याचिकाकर्ता के मुताबिक, लिंग पहचान और लिंग विविधता जैसी सामग्री की कमी संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19(1)(a), 21 और 21A का उल्लंघन करती है. इसमें अनुच्छेद 39(e)-(f), 46 और 51(c) जैसे निर्देशक सिद्धांतों की भी अवहेलना की गई है.
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साक्षरता दर और याचिका की मांग
कोर्ट में दायर की गई याचिका में कहा गया है कि भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय की साक्षरता दर केवल 57.06% है, जो राष्ट्रीय औसत से काफी कम है. इसका कारण बहिष्कार और नीतिगत निष्क्रियता है. याचिका में एनसीईआरटी, राज्य शिक्षा परिषदों और अन्य संबंधित अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की गई है कि वे वैज्ञानिक रूप से सटीक, आयु-उपयुक्त और ट्रांसजेंडर-समावेशी यौन शिक्षा को मुख्य पाठ्यक्रम में शामिल करें.