पाकिस्तान की सत्ता और सियासत में सैन्य तानाशाहों का अपना इतिहास और दखल रहा है. इन्होंने पाकिस्तानी मिजाज का फायदा उठाया और लौह इच्छा शक्ति के दम पर मुल्क पर सालों तक शासन किया. अयूब खान, याह्या खान, जनरल जिया उल हक और परवेज मुशर्रफ ने सत्ता हथियाकर पाकिस्तान में जम्हूरियत को फौजी बूटों के तले रौंद डाला.
लेकिन अगर सिर्फ अयूब खान को छोड़ दें तो इन तानाशाह जनरलों के आखिरी दिन विवादों, रहस्यों और त्रासदियों से भरे रहे. इन तानाशाहों ने सैन्य बूटों तले देश को रौंदा, पर अंत में उनकी अपनी कहानियां नियति के हाथों लिखी गईं.
अयूब खान: इस्लामाबाद में तन्हाइयों में गुजरे आखिरी दिन
अयूब खान के नाम पाकिस्तान का पहला सैन्य शासन बनने का रिकॉर्ड है.उनके शासन में आर्थिक विकास तो हुआ, लेकिन भ्रष्टाचार और असमानता के खिलाफ जनता का गुस्सा भड़क उठा. अयूब खान पाकिस्तानी फौज में सबसे कम आयु के जनरल थे जो पाकिस्तान के सैन्य इतिहास में स्वयंभू फील्ड मार्शल बने. वे पाकिस्तान के इतिहास में पहले सैन्य कमाण्डर थे, जिन्होंने सरकार के विरुद्ध सैन्य विद्रोह कर सत्ता पर कब्जा किया.
1969 तक जनआंदोलनों और सियासी अस्थिरता ने उन्हें घेर लिया. बीमार और थके अयूब ने 25 मार्च 1969 को इस्तीफा दे दिया. उन्होंने पाकिस्तान की सत्ता याह्या खान को सौंप दी.
अयूब खान की जिंदगी के आखिरी दिन इस्लामाबाद में एकांत में बीते, उनका अंतिम समय गुमनामी और अपमानजनक अवस्था में गुजरा. क्योंकि जनता ने उन्हें तानाशाह के रूप में ही याद रखा. 1974 में जब रावलपिंडी में उनकी मृत्यु हुई तब तक पाकिस्तान दो टुकड़ों में बंट चुका था. और इस जनरल को याद करने वाला कोई नहीं था.
याह्या खान:बांग्लादेश को गंवाने का दाग
जनरल याह्या खान ने अयूब से सत्ता हथियाई, लेकिन उनका शासन बांग्लादेश संकट और 1971 के भारत-पाक युद्ध के कारण बदनाम हुआ. जब बांग्लादेश के लिए आंदोलन शुरू हुआ तो इसका तीव्र प्रसार और प्रचंड सरकारी विरोध को देखते हुए जनरल याह्या खान को कहीं न कहीं ये एहसास हो गया था कि वो लड़ाई जीतने की स्थिति में नहीं हैं.
बांग्लादेश जब अपनी मुक्ति के लिए छटपटा रहा था उस दौरान याह्या खान को अमेरिका पर बड़ा भरोसा था. एक बार जंग के दौरान रात को अमेरिकी राष्ट्रपित निक्सन ने याह्या खान को फोन किया और पूर्वी पाकिस्तान की सुरक्षा के लिए चिंता जताई. निक्सन ने अमेरिकी नौसेना का सातवां बेड़ा भेजने का वादा किया.
लेकिन पाकिस्तान अमेरिकी बेड़े का इंतज़ार करते रहे. पाकिस्तानियों को लग रहा था कि अमेरिकी बेड़ा कछुए की चाल से चल रहा था. बंगाल की खाड़ी में उसका दूर दूर तक कोई निशान नहीं था, यहां तक कि ढाका के पतन के बाद भी.
बांग्लादेश गंवाने, भारत से हार के बाद याह्या खान जनता और सेना का भरोसा खो चुके थे. उन पर इस्तीफे का दबाव बढ़ा.
20 दिसंबर 1971 को उन्होंने सत्ता जुल्फिकार अली भुट्टो को सौंप दी. इसके बाद याह्या खान के बुरे दिन शुरू हो गए. याह्या खान को खारियां के पास बन्नी के एक रेस्ट हाउस में नजरबंद कर दिया गया. उन्हें किसी दोस्त या रिश्तेदार से मिलने की इजाजत नहीं थी. इस रेस्ट हाउस में मक्खियों, मच्छरों और सांपों का बसेरा था. वहां कुछ समय के लिए ही पानी आता था और बिजली अक्सर आंख मिचौली करती थी. भुट्टो के सत्ता से हटने के बाद जनरल जिआउल हक ने उन्हे नजरबंदी से मुक्त किया. 10 अगस्त, 1980 को जनरल याह्या खान का देहावसान हो गया. याह्या का अंत अपमान और गुमनामी में डूबा रहा.
जनरल जिया उल हक: मुल्क का इस्लामिक तानाशाह
जिया-उल-हक ने 1977 में जुल्फिकार अली भुट्टो को अपदस्थ कर सत्ता हथियाई थी. जिया-उल-हक लोकतंत्र और सरकार को दोयम दर्जे की चीज समझते थे. गौरतलब है कि जुल्फिकार अली भुट्टो ने जनरल जिया को प्रमोट कर पाकिस्तान की सत्ता दी थी. लेकिन जिया ने उन्हीं का तख्तापलट कर दिया.
जनरल जिया-उल-हक ने 1977-1988 के अपने शासन में पाकिस्तान में इस्लामीकरण को बढ़ावा दिया. उन्होंने शरिया कानून लागू किए, मदरसों को प्रोत्साहन दिया और कट्टरपंथी विचारधारा को सेना और समाज में फैलाया.
अपने जीवन के अंतिम दिन में जनरल जिया-उल-हक काफी डरे हुए थे. अपनी मौत से 3 दिन पहले यानी 14 अगस्त को पाकिस्तान की आजादी के जश्न का प्रोग्राम भी जिया उल हक आर्मी हाउस कैंपस में करना चाहते थे. जिया को प्रेसिडेंट हाउस के लॉन में पेड़ों से डर लगने लगा था. उन्होंने 30 से 40 पेड़ों को काटने का ऑर्डर दे दिया था.
1988 की बात है, अमेरिका पाकिस्तान की सेना को MI अब्राम्स टैंक बेचने की कोशिश कर रहा था. 17 अगस्त को बहावलपुर मिलिट्री बेस पर इसका ट्रायल होना था. ट्रायल देखने जनरल जिया-उल-हक पहुंचे. ट्रायल होने के बाद राष्ट्रपति जिया उल हक, अमेरिकी राजदूत अर्नोल्ड राफेल, पाकिस्तान में अमेरिकी आर्मी मिशन के प्रमुख इस्लामाबाद की ओर निकल गए.
इस विमान की कमान संभाली हुई थी विंग कमांडर माशूद हसन ने. जैसे ही विमान पूरी तरह से हवा में आया बहावलपुर के कंट्रोल टावर से इसका संपर्क कट गया. टेक ऑफ करने के कुछ मिनटों के अंदर पाकिस्तान का सबसे महत्वपूर्ण विमान लापता था.
इस विमान हादसे में जनरल जिया, कई वरिष्ठ सैन्य अधिकारी और अमेरिकी राजदूत की भी मृत्यु हुई. विमान क्रैश की जांच में गड़बड़ी की आशंका जताई गई, लेकिन रहस्य आज तक अनसुलझा है. जिया का अंत नाटकीय और रहस्यमयी था, जो उनके तानाशाही शासन के विवादों से मेल खाता था.
परवेज मुशर्रफ: करगिल घुससैठ का सूत्रधार
भारत में परवेज मुशर्रफ को करगिल के खलनायक के रूप में याद किया जाता है. मुशर्रफ 1998 में पाकिस्तानी सेना के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बने. 12 अक्तूबर, 1999 को पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने घोषणा की कि वो अपने सेनाध्यक्ष जनरल परवेज मुशर्रफ को रिटायर कर रहे हैं लेकिन शाम होते-होते परिस्थितियां तेजी से बदली और शरीफ खुद सत्ता से बेदखल हो गए.
1999 में करगिल में पाकिस्तान की हार के बाद मुशर्रफ ने नवाज शरीफ की सरकार का तख्तापलट कर दिया और 2008 तक शासन किया. 12 अक्टूबर 1999 को कोलंबो से कराची आने वाले पीआईए के विमान पर बैठे परवेज मुशर्रफ को ये अंदाजा नहीं था कि जमीन पर क्या सियासी और सैन्य ड्रामा हो रहा है. लेकिन जमीन पर लैंड करने के बाद मुशर्रश ने चालाक लोमड़ी सी रणनीति बनाई और चीते की फुर्ती से इस पर अमल किया. उन्होंने नवाज शरीफ को सत्ता से हटा दिया और कुछ ही घंटों के अंदर पाकिस्तान के मुख्य कार्यकारी का पद संभाल लिया.
परवेज मुशर्रफ के शासन में आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका के साथ पाकिस्तान का गठजोड़ और आंतरिक सियासी अस्थिरता प्रमुख घटनाएं रहीं. परवेज मुशर्रफ ही भारत के तत्कालीन पीएम वाजपेयी के बुलावे पर आगरा शिखर सम्मेलन में शिरकत करने दिल्ली आए थे. लेकिन इस सैन्य शासक की हठधर्मिता की वजह से ये हाई प्रोफाइल मीटिंग नाकाम रही.
मुशर्रफ के आदेश पर ही बलूच नेता अकबर बुग्ती की की पाक आर्मी ने हत्या कर दी. इसे मुशर्रफ के करियर के पतन की शुरुआत माना जाता है.
2008 में जनता और विपक्ष के दबाव में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद वे दुबई और लंदन में निर्वासित जीवन जीने लगे. पाकिस्तान में उनपर कई केस दर्ज कर दिए गए. 2013 में वे चुनाव लड़ने दुबई से पाकिस्तान लौटे. यहां पर उन पर देशद्रोह के मुकदमे चले. 2023 में दुबई में एक दुर्लभ बीमारी एमाइलॉयडोसिस ने उन्हें घेर लिया. इसी बीमारी ने उनकी जिंदगी खत्म कर दी. जिंदगी के अंतिम समय उन्होंने अपमान, अवसाद और बीमारी में गुजारे. दुबई में समय काट रहे मुशर्रफ के पास पाकिस्तान की हलचल से दूर रहे.
पाकिस्तान के इन तानाशाहों ने सत्ता में रहते हुए देश को अपने ढंग से चलाया, लेकिन उनके आखिरी दिन त्रासदी, गुमनामी और रहस्यों से भरे रहे.