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दिल्ली के लाल किले पर जिस विक्रमादित्य नाटक का होगा मंचन, उसमें कभी मुख्यमंत्री भी निभाते थे किरदार

Delhi Red Fort: महानाट्य के मंचन के समय किसी ने सोचा भी नहीं था कि रंगमंच पर उतरने वाला यह युवक भविष्य में वास्तविक रूप में मध्यप्रदेश के विक्रमादित्य की तरह एक नेतृत्वकर्ता, एक सांस्कृतिक अभिभावक और जनमानस का प्रतिनिधि के रूप में प्रतिष्ठित होगा.

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'सम्राट विक्रमादित्य' नाटक में CM निभा चुके किरदार.
'सम्राट विक्रमादित्य' नाटक में CM निभा चुके किरदार.

दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले पर आज से शुरू होने वाले तीन दिवसीय 'विक्रमोत्सव' में सम्राट विक्रमादित्य की गौरव गाथा को महानाट्य के रूप में प्रस्तुत किया जाएगा. इस महानाट्य का मंचन खास इसलिए भी है, क्योंकि इसमें मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने 2000 के दशक की शुरुआत में अभिनय किया था. उस समय यादव ने 'सम्राट विक्रमादित्य महामंचन' में सम्राट विक्रमादित्य के पिता महेन्द्रादित्य की भूमिका निभाकर दर्शकों का दिल जीत लिया था. आज वही मोहन यादव मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में इस सांस्कृतिक पहल को राष्ट्रीय मंच पर ले जा रहे हैं.

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उज्जैन की पवित्र धरती पर 2000 के दशक की शुरुआत में 'सम्राट विक्रमादित्य महामंचन' के रूप में एक अनोखी सांस्कृतिक पहल की शुरुआत हुई थी. यह महानाट्य केवल एक ऐतिहासिक पात्र का स्मरण नहीं था, बल्कि भारतीय संस्कृति, न्याय और नीति के प्रतीक माने जाने वाले युग की पुनर्प्रतिष्ठा थी.

उस समय किसी ने नहीं सोचा था कि रंगमंच पर सम्राट महेन्द्रादित्य की भूमिका निभाने वाला यह युवक भविष्य में मध्य प्रदेश का नेतृत्वकर्ता, सांस्कृतिक अभिभावक और जनमानस का प्रतिनिधि बनकर उभरेगा. डॉ. यादव का सांस्कृतिक और साहित्यिक प्रेम ही उन्हें सत्ता के शीर्ष तक ले गया. सत्ता में आने के बाद भी उनका यह रुझान मंचन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने महानाट्य को सामाजिक चेतना और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का माध्यम बनाया.

विक्रमादित्य के पिता महेन्द्रादित्य की भूमिका निभा चुके CM मोहन यादव.

प्राधिकरण से शुरू हुई विक्रमदर्शिता
जब डॉ. मोहन यादव उज्जैन विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष बने, तब उन्होंने विकास को केवल अधोसंरचनात्मक निर्माण तक सीमित नहीं रखा. उन्होंने सम्राट विक्रमादित्य की दृष्टि से उज्जैन को एक ऐसे नगर के रूप में देखा, जो इतिहास, आस्था और आधुनिकता का संगम बने. उनकी पहल पर शहर में चार दिशाओं में भव्य प्रवेश द्वार बनाए गए, जो चार युगों के प्रतीक हैं. यह कार्य न केवल स्थापत्य की दृष्टि से अभिनव था, बल्कि सांस्कृतिक चेतना को जागृत करने वाला भी था. उज्जैन देश का पहला ऐसा शहर बना, जिसमें दिशा-प्रेरित प्रवेश द्वारों के माध्यम से संस्कृति का स्वागत हुआ.

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विक्रम विश्वविद्यालय को नई पहचान
मुख्यमंत्री  यादव ने सम्राट विक्रमादित्य के नाम से स्थापित विक्रम विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने का बीड़ा उठाया. उनके नेतृत्व में विश्वविद्यालय में शोध और शैक्षणिक गुणवत्ता को बढ़ावा देने की योजना बनाई गई. साथ ही, सम्राट विक्रमादित्य के साहित्य, न्याय दर्शन और सांस्कृतिक मूल्यों को नई पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए विशेष प्रयास शुरू किए गए.

लाल किले से देशव्यापी मंचन की ओर
अब जब डॉ. यादव सत्ता और संस्कृति के बीच सेतु बन चुके हैं, उन्होंने अपने पुराने सांस्कृतिक अभियान को नए सोपान पर ले जाने का संकल्प लिया है. उनके नेतृत्व में उनकी टीम अब 'सम्राट विक्रमादित्य महानाट्य' का मंचन देशभर में करने के लिए तत्पर है. लाल किले जैसे ऐतिहासिक स्थल पर यह मंचन राष्ट्रीय गौरव और सांस्कृतिक धरोहर को पुनर्स्थापित कर सांस्कृतिक उत्थान का नया आयाम स्थापित करेगा.

डॉ. मोहन यादव के मार्गदर्शन में यह महानाट्य सम्राट विक्रमादित्य को केवल एक ऐतिहासिक पात्र के रूप में नहीं, बल्कि भारतीय मानस के आदर्श पुरुष के रूप में प्रस्तुत करता है. उन्होंने सम्राट विक्रमादित्य को सुशासन की प्रेरणा में बदल दिया है. उनका यह अभियान केवल उज्जैन या मध्य प्रदेश तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे भारत में सांस्कृतिक चेतना की लौ जलाने वाला है. जब लाल किले की प्राचीर पर विक्रमादित्य की गाथा गूंजेगी, तब यह केवल एक नाट्य मंचन नहीं होगा, बल्कि भारतीय अस्मिता का उत्सव होगा.

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