scorecardresearch
 

वक्फ बिल का समर्थन करने से जेडीयू को होगा मुस्लिम वोटों का नुकसान? जानिए क्या कहते हैं आंकड़े

वक्फ बिल के समर्थन के बाद जेडीयू नेताओं को मुख्य तौर पर बिहार विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोट बैंक खोने का डर है. हालांकि यह डर पहली नजर में जायज लग सकता है, लेकिन डेटा एक अलग ही तस्वीर पेश करता है.

Advertisement
X
मुस्लिमों के बीच जेडीयू का कितना असर?
मुस्लिमों के बीच जेडीयू का कितना असर?

बिहार विधानसभा चुनावों से कुछ महीने पहले जेडीयू में खलबली मच गई जब पांच मुस्लिम नेताओं ने वक्फ संशोधन बिल के समर्थन की वजह से नीतीश कुमार की अगुवाई वाली पार्टी छोड़ दी. संसद के दोनों सदनों में जेडीयू ने वक्फ बिल का समर्थन किया. यह बिल मुसलमानों की ओर से दान की गई संपत्तियों के मैनेजमेंट पर सरकार की निगरानी को बढ़ाता है.

Advertisement

जेडीयू के साथ था मुस्लिम वोट

जेडीयू नेताओं को मुख्य तौर पर बिहार चुनावों से पहले मुस्लिम वोट बैंक खोने का डर है. हालांकि यह डर पहली नजर में जायज लग सकता है, लेकिन डेटा एक अलग ही तस्वीर पेश करता है. जब नीतीश कुमार ने एनडीए से नाता तोड़ा तो 2014 के लोकसभा चुनावों में उन्हें मुस्लिम वोटों का एक बड़ा हिस्सा मिला, जिसने आरजेडी के कोर वोट बैंक में सेंध लगाई. लेकिन 2015 के बाद की स्थिति का डेटा एक अलग ही तस्वीर दिखाता है.

ये भी पढ़ें: वक्फ पर डैमेज कंट्रोल में जेडीयू... मुस्लिम नेताओं ने बुलाई PC, सवालों के जवाब दिए बिना चले गए

साल 2014 के लोकसभा चुनाव और 2015 के विधानसभा चुनावों में जब नीतीश, नरेंद्र मोदी विरोधी खेमे में थे, तब मुस्लिम मतदाताओं के बीच उनकी काफी लोकप्रियता थी. 2014 में जब जेडीयू ने लेफ्ट पार्टियों के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा, तो उसे 23.5% मुस्लिम वोट मिले, जैसा कि सीएसडीएस लोकनीति सर्वे में बताया गया. 2015 के विधानसभा चुनावों में जब नीतीश महागठबंधन का हिस्सा थे, तो गठबंधन ने 80% मुस्लिम वोट हासिल किए, जैसा कि रिपोर्ट्स में अनुमान लगाया गया.

Advertisement

2015 के बाद बदली सियासी तस्वीर    

हालांकि, 2015 के बाद जब उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन में शामिल होने का फैसला किया, तो चीजें बदल गईं. 2020 के विधानसभा चुनावों में जेडीयू गठबंधन सिर्फ 5 फीसदी मुस्लिम वोट हासिल कर सका. 2019 के लोकसभा चुनावों में सिर्फ 6 फीसदी मुसलमानों ने जेडीयू गठबंधन को वोट दिया, जबकि 80 फीसदी ने आरजेडी को समर्थन दिया.
  
यह रुझान थोड़ा-बहुत 2024 के लोकसभा चुनावों तक जारी रहा, जहां बिहार में सिर्फ 12% मुसलमानों ने जेडीयू गठबंधन को वोट दिया, जो 2014 की स्थिति से 50 फीसदी की गिरावट है. 2011 की जनगणना के अनुसार, बिहार की मुस्लिम आबादी 1,75,57,809 (1.75 करोड़) थी, जो राज्य की कुल आबादी का 17 फीसदी है.

मुस्लिमों को टिकट देने का दांव भी फेल  

2024 के लोकसभा डेटा के अनुसार, बिहार में 7,64,33,329 (7.64 करोड़) मतदाता हैं. अगर हम 2011 की जनगणना के 17% मुस्लिम आबादी के डेटा को आगे बढ़ाएं तो बिहार में मुस्लिम मतदाताओं की अनुमानित संख्या लगभग 1,29,93,667 (1.29 करोड़) होगी. बिहार के चार मुस्लिम बाहुल जिलों का विश्लेषण जो 24 विधानसभा क्षेत्रों में फैले हैं, दिखाता है कि जेडीयू ने 2015 के चुनावों में यहां 7 सीटें जीती थीं. हालांकि, 2020 में जब जेडीयू एनडीए के साथ था, तो उसने सिर्फ तीन सीटें जीतीं. इन जिलों में 30 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम आबादी है.

Advertisement

ये भी पढ़ें: वक्फ बिल पर JDU में तनाव, समर्थन से पहले रखी शर्त, नेताओं के बयान भी अलग-अलग

इसलिए, यह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि जेडीयू जैसे ही मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए के साथ जुड़ी, मुसलमानों का समर्थन खो बैठी. मुस्लिम उम्मीदवारों के प्रदर्शन को देखें तो भी यही तस्वीर उभरती है. 2015 में जेडीयू ने 7 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे और उनमें से 5 जीते. हालांकि, 2020 में 11 मुस्लिम उम्मीदवार उतारने के बावजूद जेडीयू का कोई भी उम्मीदवार जीत नहीं सका.

बीजेपी के साथ आने से छिटका वोट

यह साफ रूप से दिखाता है कि 2015 के बाद बीजेपी के साथ गठबंधन करने से जेडीयू को अपने मुस्लिम वोट बैंक की कीमत चुकानी पड़ी. इतनी कि ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवार उतारने के बावजूद नीतीश कुमार की पार्टी के लिए यह दांव काम नहीं आया. इसलिए यह सिद्धांत कि वक्फ बिल का समर्थन करने से जेडीयू मुस्लिम वोट खो देगा, ज्यादा मजबूत नहीं है, क्योंकि 2015 के बाद पार्टी को वास्तव में मुसलमानों का भरोसा कभी मिला ही नहीं है.  

Live TV

Advertisement
Advertisement