
जयपुर में 3 नवंबर को एक लापरवाही से चलाए जा रहे डंपर ट्रक ने कई वाहनों को कुचल दिया, जिसमें 14 लोगों की मौत हो गई. इससे ठीक एक दिन पहले फलोदी में एक टेम्पो ट्रैवलर ट्रक से टकरा गया, जिसमें 15 यात्रियों की मौके पर ही मौत हो गई. जैसे-जैसे भारत बढ़ रहा है, वाहनों का उपयोग भी उतनी ही तेजी से बढ़ रहा है. हर साल सड़कों पर नई कारें, बाइक और ट्रक आ रहे हैं. भारत की बढ़ती गतिशीलता के साथ जोखिम भी बढ़ रहे हैं.

सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, सड़क दुर्घटनाएं मुख्य रूप से 18 से 45 वर्ष की आयु के लोगों को प्रभावित करती हैं. 2023 में 68 प्रतिशत पुरुष और 58 प्रतिशत महिलाएं सड़क हादसों का शिकार बने. चिंताजनक बात ये है कि भारतीय सड़कों पर होने वाली हर तीन मौतों में से दो मौतें ऐसे लोगों की होती हैं जो अपनी सबसे उत्पादक उम्र में होते हैं.
5 सालों में 8 लाख मौतें
पिछले पांच सालों के सड़क दुर्घटनाओं का डेटा परेशान करने वाले हैं. 2019 में भारत में 4.56 लाख दुर्घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें लगभग 1.59 लाख मौतें हुईं. महामारी काल वर्ष 2020 में सख्त लॉकडाउन के कारण 3.7 लाख दुर्घटनाएं हुईं. लेकिन उसके बाद 2021 में भारत में लगभग 4.2 लाख सड़क दुर्घटनाएं हुईं, जो 2022 में बढ़कर 4.61 लाख और 2023 में 4.80 लाख हो गईं. कुल मिलाकर केवल पांच सालों में 21 लाख से ज़्यादा दुर्घटनाएं हुईं हैं और लगभग 8 लाख मौतें हुईं हैं. सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि हर तीन में से एक हादसा जानलेवा साबित हुआ है.

तमिलनाडु में सबसे ज्यादा हादसे
वहीं, अगर राज्य स्तर की बात करें तो तमिलनाडु में सड़क दुर्घटनाओं की संख्या सबसे ज़्यादा रही, जहां 2023 तक 67,000 से ज़्यादा मामले दर्ज किए गए जो देश भर में होने वाली दुर्घटनाओं का 14 प्रतिशत है. मध्य प्रदेश 55,327 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर रहा. इसके बाद केरल 48,091 मामलों के साथ तीसरे स्थान पर रहा. उत्तर प्रदेश में 44,534 और कर्नाटक में 43,440 मामले दर्ज किए गए. 2023 में भारत में होने वाली कुल सड़क दुर्घटनाओं में आधे से ज़्यादा इन पांच राज्यों में हुईं.