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'500 साल से सेवा कर रहे, सरकार ने हमें सुना ही नहीं,' वृंदावन कॉरिडोर मामले में सेवायत की सुप्रीम कोर्ट में याचिका

याचिका में कोर्ट से इस मुकदमे में दिए गए अपने पिछले निर्णय में संशोधन करने का आग्रह किया गया है, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार को श्री बांके बिहारी मंदिर (वृंदावन) के आसपास की 5 एकड़ भूमि अधिग्रहण करने में मंदिर की जमा धनराशि का उपयोग करने की अनुमति दी गई थी.

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बांके बिहारी मंदिर के कॉरिडोर का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है.
बांके बिहारी मंदिर के कॉरिडोर का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है.

वृंदावन के प्रसिद्ध श्री बांके बिहारी मंदिर के प्रस्तावित कॉरिडोर मामले में एक श्रद्धालु ने याचिका दायर की है और सुप्रीम कोर्ट से उत्तर प्रदेश सरकार की पुनर्विकास योजना को अनुमति देने वाले आदेश में संशोधन करने की गुहार लगाई है. चीफ जस्टिस की बेंच ने अगले सप्ताह इस मामले को सुनवाई का भरोसा दिया है.

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याचिका में कोर्ट से इस मुकदमे में दिए गए अपने पिछले निर्णय में संशोधन करने का आग्रह किया गया है, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार को श्री बांके बिहारी मंदिर (वृंदावन) के आसपास की 5 एकड़ भूमि अधिग्रहण करने में मंदिर की जमा धनराशि का उपयोग करने की अनुमति दी गई थी. अधिग्रहण के लिए दिए आदेश में ये स्पष्ट किया गया था कि अधिग्रहित भूमि देवता यानी श्री बांके बिहारी जी के नाम पर ही दर्ज रहेगी.

चीफ जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता अमित आनंद तिवारी ने याचिकाकर्ता की ओर से कहा कि यह निर्णय एकतरफा पारित किया गया था. इसमें हितधारक यानी याचिकाकर्ता को पक्ष ही नहीं बनाया गया. याचिकाकर्ता देवेंद्र नाथ गोस्वामी मंदिर के सेवा कार्यों के संचालन में शामिल हैं. वो देवता श्री बांके बिहारी जी महाराज के राजभोग सर्वाधिकारी यानी सेवायत हैं.

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उन्होंने कोर्ट से कहा कि वे मंदिर के मूल संस्थापक स्वामी श्री हरिदास जी गोस्वामी के वंशज हैं और उनका परिवार 500 वर्षों से भी अधिक समय से मंदिर का संचालन प्राचीन परंपराओं के अनुसार करता आ रहा है.

उन्होंने कहा कि अब राज्य सरकार को मंदिर की संचित निधि तक पहुंच मिल गई है. जबकि मंदिर के प्रबंधन और प्रशासन से संबंधित मामला अभी इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित है. याचिका में कहा गया है कि यह Miscellaneous Application है जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका पर फैसला सुनाया गया. जबकि हमें पक्षकार बना कर हमारी भी बात सुनी जानी चाहिए थी. ये ऐसे समय हुआ जब मूल मुकदमा इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित था, लेकिन उसी फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर की संचित निधि का उपयोग करने की इजाजत सरकार को दी है.

सीजेआई की पीठ ने अगले सप्ताह इस मामले की सुनवाई के लिए सहमति दी. यह संशोधन 15 मई को दिए गए उस आदेश में मांगा गया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने ठाकुर श्री बांके बिहारी जी महाराज मंदिर परिसर के पुनर्विकास योजना हेतु भूमि खरीद के लिए मंदिर की निधियों के उपयोग की अनुमति दी थी.
जस्टिस बेला माधुर्य त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को संशोधित कर दिया था जिसमें मंदिर की संचित निधि का उपयोग कर भूमि खरीद पर रोक लगाई गई थी.

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पीठ ने राज्य सरकार की 500 करोड़ रुपये की लागत वाली पुनर्विकास योजना के तहत मंदिर के चारों ओर कॉरिडोर विकसित करने पर सुनवाई करने के बाद बांके बिहारी मंदिर की फिक्स्ड डिपॉजिट के उपयोग की अनुमति दी थी.

याचिकाकर्ता ने अपनी अर्जी में कहा है कि इस आदेश के पारित होते समय उन्हें पक्षकार नहीं बनाया गया जो इलाहाबाद हाईकोर्ट में ऐसे ही मामले 1509/2022 में पहले से पक्षकार थे. मंदिर में श्री बिहारी जी के सेवा कार्य में संलग्न लोगों को अपनी बात रखने का कोई अवसर ही नहीं मिला.

याचिका में यह भी कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट में आया मुख्य मामला पुनर्विकास योजना से संबंधित ही नहीं था. वह तो मथुरा जिले में स्थित गिरिराज मंदिर, गोवर्धन में रिसीवर की नियुक्ति के मुद्दे तक सीमित था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दायर हस्तक्षेप याचिका के आधार पर निर्णय पारित कर दिया. उसमें एक व्यापक पुनर्विकास योजना का प्रस्ताव किया गया था.

उत्तर प्रदेश सरकार ने हस्तक्षेप याचिका दाखिल कर उस मामले में राहत मांगी जो कि पहले से ही इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लंबित था। उसमें सुनवाई पूरी हो चुकी थी. यह सरासर अदालती प्रक्रिया का दुरुपयोग है. यह कदम न्यायिक प्रणाली की श्रेणीबद्धता को कमजोर करता है और वंशानुगत मंदिर प्रबंधकों जैसे असली हितधारकों को अपनी बात रखने से वंचित करता है.

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याचिका में यह राहत मांगी गई हैं...

अदालत 15 मई 2025 को पारित विशेष अनुमति याचिका (सिविल) संख्या 29702/2024 के निर्णय में संशोधन करे. खास तौर पर निर्णय के अनुच्छेद 19, 20 और 24 में. क्योंकि उसमें ही उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तावित श्री बांके बिहारी जी महाराज मंदिर की पुनर्विकास योजना को मंजूरी देते हुए भूमि अधिग्रहण में मंदिर की निधियों के उपयोग की अनुमति दी गई है.

श्री बांके बिहारी मंदिर तथा इसके आस-पास के क्षेत्रों से जुड़ी ऐतिहासिक, आध्यात्मिक, विधिक व सांस्कृतिक संवेदनाओं पर विचार नहीं किया गया.

याचिका में कहा गया है कि इस निर्णय के आधार पर पुनर्विकास योजना, अधिग्रहण, विध्वंस या निर्माण कार्यों की प्रक्रिया पर रोक लगाई जाए, जब तक यह याचिका अंतिम रूप से निपट न जाए.

किसी भी प्रस्तावित पुनर्विकास योजना की निष्पक्ष, पारदर्शी व समावेशी समीक्षा हेतु एक विरासत एवं हितधारक परामर्श समिति का गठन किया जाए. ऐसे अन्य आदेश पारित किए जाएं जो न्याय, समानता और धार्मिक-सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और हित में उपयुक्त हों.

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