भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बी.आर. गवई ने यूके (यूनाइटेड किंगडम) में आयोजित एक राउंडटेबल सम्मेलन में यूके के शीर्ष न्यायाधीशों के साथ भारतीय न्यायपालिका की स्वतंत्रता, वैधता और मूल्यों पर विस्तृत चर्चा की. इस सम्मेलन में उन्होंने न्यायपालिका की विश्वसनीयता, पारदर्शिता और जवाबदेही पर जोर देते हुए कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डाला. साथ ही उन्होंने न्यायाधीशों के रिटायरमेंट के तुरंत बाद सरकारी पद स्वीकार करने और चुनाव लड़ने पर चिंता जताई.
मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा कि विधायिका और कार्यपालिका की वैधता मतपत्र से प्राप्त होती है, जबकि न्यायपालिका अपनी स्वतंत्रता, निष्पक्षता और अखंडता के संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखकर अपनी वैधता अर्जित करती है.
उन्होंने भारतीय संविधान का हवाला देते हुए कहा कि ये स्पष्ट रूप से राज्य को सार्वजनिक सेवाओं में न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग करने का आदेश देता है.
कॉलेजियम सिस्टम का किया बचाव
न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका के हस्तक्षेप को कम करने और न्यायपालिका की स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए भारत में कॉलेजियम सिस्टम लागू किया गया है. सीजेआई गवई ने स्वीकार किया कि इस सिस्टम की आलोचनाएं होती हैं, लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि कोई भी समाधान न्यायपालिका की स्वतंत्रता की कीमत पर नहीं होना चाहिए.
उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों को बाहरी नियंत्रण से मुक्त होना चाहिए, ताकि वे निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से काम कर सकें.
तर्कसंगत हो अदालत के फैसले
मुख्य न्यायाधीश ने इस बात पर जोर दिया कि अदालती फैसलों के साथ तर्कपूर्ण और सुसंगत तर्क होना जरूरी है, यदि फैसलों में तर्क की कमी होती है तो ये वादियों, वकीलों और आम जनता में अदालत के निष्कर्षों के प्रति समझ की कमी पैदा कर सकता है.
उन्होंने कहा कि न्यायपालिका में विश्वास बढ़ाने के लिए अदालती आदेशों का पूरी तरह से तर्कसंगत होना जरूरी है.
रिटायरमेंट के स्वीकार नहीं करेंगे सरकारी पद
न्यायाधीशों की निष्पक्षता और रिटायरमेंट के बाद नियुक्तियां स्वीकार करने पर चिंताई जताई है. सीजेआई ने कहा कि भारत में न्यायाधीशों का स्वयं को मामले से अलग करना (रिक्यूजल) आम बात है.
उन्होंने कहा कि यदि कोई न्यायाधीश रिटायरमेंट के तुरंत बाद सरकारी नियुक्ति स्वीकार करता है या चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा देता है तो ये नैतिक सवाल उठाता है और जनता के बीच संदेह पैदा करता है. इससे न्यायपालिका की निष्पक्षता और स्वतंत्रता पर सवाल उठ सकते हैं.
सीजेआई गवई ने खुलासा किया कि उन्होंने और उनके कई सहयोगियों ने सार्वजनिक रूप से ये प्रतिज्ञा ली है कि वे रिटायरमेंट के बाद किसी भी सरकारी पद को स्वीकार नहीं करेंगे. ये कदम न्यायपालिका की विश्वसनीयता और स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए उठाया गया है.
लोगों का विश्वास कम करता है भ्रष्टाचार
न्यायपालिका में भ्रष्टाचार और कदाचार के कुछ मामलों का जिक्र करते हुए, सीजेआई ने कहा कि ऐसी घटनाएं जनता के विश्वास को कमजोर करती हैं. हालांकि, उन्होंने जोर दिया कि भारत में जब भी ऐसे मामले सामने आए हैं तो सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल और सख्त कदम उठाए हैं.
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों द्वारा संपत्ति का स्वैच्छिक खुलासा करने को पारदर्शिता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया जो ये मैसेज देता है कि न्यायाधीश, सार्वजनिक कार्यकर्ता के रूप में जनता के प्रति जवाबदेह हैं.
क्षेत्रीय भाषा में हो फैसले का अनुवाद
उन्होंने न्यायिक प्रक्रियाओं को पारदर्शी बनाने के लिए लाइव स्ट्रीमिंग को एक महत्वपूर्ण कदम बताया है. हालांकि, सीजेआई ने चेतावनी भी दी है. उन्होंने इसका इस्तेमाल सावधानी से करना की अपील की है. उन्होंने हाल के एक मामले का उदाहरण दिया, जहां एक न्यायाधीश की हल्के-फुल्के अंदाज में दी गई सलाह को मीडिया में गलत संदर्भ में पेश किया गया, जिससे गलत धारणा बनी.
उन्होंने कहा कि फर्जी खबरें और संदर्भ से हटकर रिपोर्टिंग जनता की धारणा को नेगेटिव रूप से प्रभावित कर सकती हैं. इसके साथ ही उन्होंने अदालत के फैसलों का क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद करने को कानूनी जानकारी को लोकतांत्रिक बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया.