
देश के 52वें चीफ जस्टिस और बौद्ध धर्म से ताल्लुक रखने वाले पहले जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने कई अहन फैसलों में अपनी भूमिका निभाई है. उन्होंने करीब 300 फैसले लिखे हैं, जिनमें संवैधानिक मुद्दों, स्वतंत्रता और शायद सबसे अहम कार्यपालिका के 'बुलडोजर जस्टिस' के खिलाफ ऐतिहासिक फैसला शामिल है.
अमरावती से सर्वोच्च अदालत तक
जस्टिस गवई, केजी बालाकृष्णन के बाद भारतीय न्यायपालिका का नेतृत्व करने वाले दूसरे दलित हैं, उन्हें बुधवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 23 नवंबर 2025 को खत्म होने वाले छह महीने के कार्यकाल के लिए CJI पद की शपथ दिलाई. साधारण बैकग्राउंड से उठकर देश के सर्वोच्च न्यायिक पद तक पहुंचने वाले जस्टिस गवई महाराष्ट्र के अमरावती जिले के एक गांव से आते हैं.
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राष्ट्रपति भवन में पद की शपथ लेने के बाद उन्होंने अपनी मां के पैर छुए. 24 नवंबर, 1960 को अमरावती में जन्मे जस्टिस गवई एक पेशेवर राजनीतिज्ञ आरएस गवई के बेटे हैं, जिन्होंने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (गवई) की शुरुआत की थी. 24 मई, 2019 को सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में प्रमोट हुए जस्टिस गवई उन संविधान बेंच का हिस्सा थे, जिन्होंने आर्टिकल 370, इलेक्टोरल बॉन्ड और नोटबंदी समेत कई अहम फैसले सुनाए.
रेप से जुड़े फैसले पर लगाई रोक
जस्टिस गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की उस टिप्पणी पर रोक लगा दी थी जिसमें कहा गया था कि किसी महिला के प्राइवेट पार्ट को पकड़ना और उसके पायजामे का नाड़ा खींचना रेप की कोशिश नहीं मानी जाएगी, और कहा था कि यह पूरी तरह से असंवेदनशील और अमानवीय नजरिए को दर्शाता है.
पिछले छह साल में सर्वोच्च अदालत के जज के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, जस्टिस गवई संवैधानिक और प्रशासनिक कानून, सिविल और आपराधिक कानून, कॉर्पोरेट विवाद, मध्यस्थता कानून और पर्यावरण कानून सहित कई विषयों से संबंधित मामलों से निपटने वाली करीब 700 बेंच का हिस्सा रहे. उन्होंने करीब 300 फैसले लिखे, जिनमें कानून के शासन को बनाए रखने और नागरिकों के मौलिक, मानवीय और कानूनी अधिकारों की रक्षा करने वाले विभिन्न मुद्दों पर संविधान बेंच के फैसले शामिल हैं.
चीफ जस्टिस के रूप में जस्टिस गवई को सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग 81 हजार से ज्यादा मामलों सहित अदालतों में खाली पदों जैसे मुद्दों से निपटना होगा. अगर ज्यूडिशियल साइड को देखें तो वह बहुचर्चित वक्फ (संशोधन) एक्ट 2025 की वैधता को चुनौती से जुड़े विवादित मुद्दे से भी अदालत में निपटेंगे. सीजेआई के रूप में शपथ लेने से कुछ दिन पहले जस्टिस गवई ने कहा कि संविधान सर्वोच्च है और वह रिटायरमेंट के बाद कोई कार्यभार नहीं लेंगे.
आर्टिकल 370 से जुड़े फैसले में शामिल
वह पांच जजों वाली संविधान बेंच का हिस्सा थे, जिसने दिसंबर 2023 में पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले आर्टिकल 370 के प्रावधानों को रद्द करने के केंद्र के फैसले को सर्वसम्मति से बरकरार रखा था. पांच जजों की एक अन्य संविधान बेंच, जिसमें जस्टिस गवई भी शामिल थे, ने राजनीतिक वित्तपोषण के लिए चुनावी बांड योजना को रद्द कर दिया था.
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वह पांच जजों वाली संविधान बेंच का भी हिस्सा थे, जिसने 4:1 के बहुमत से केंद्र के 2016 के 1,000 रुपये और 500 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को मंजूरी दी थी. जस्टिस गवई सात जजों वाली संविधान बेंच का हिस्सा थे, जिसने 6:1 के बहुमत से यह माना था कि राज्यों को अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है, ताकि उन जातियों के उत्थान के लिए आरक्षण दिया जा सके जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से ज्यादा पिछड़ी हैं.
बुलडोजर एक्शन पर लगाई रोक
जस्टिस गवई पांच जजों वाली संविधान बेंच का हिस्सा थे, जिसने जनवरी 2023 में फैसला दिया था कि उच्च सार्वजनिक पदाधिकारियों के भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर ज्यादा पाबंदी नहीं लगाई जा सकती क्योंकि उस अधिकार को रोकने के लिए संविधान के तहत पहले से ही व्यापक आधार मौजूद हैं.।
उन्होंने डिमोलिशन पर देशभर के लिए गाइडलाइंस जारी करते हुए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया और कहा कि बिना पूर्व कारण बताओ नोटिस के किसी भी संपत्ति को ध्वस्त नहीं किया जाना चाहिए और प्रभावितों को जवाब देने के लिए 15 दिन का समय दिया जाना चाहिए. उन्होंने वन, वन्यजीव, वृक्षों के संरक्षण से संबंधित मामलों को भी देखा है और पर्यावरण की रक्षा के लिए कई आदेश पारित किए हैं.
जस्टिस गवई ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी सहित विभिन्न विश्वविद्यालयों और संगठनों में विभिन्न संवैधानिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर लेक्चर दिए हैं. 14 नवंबर 2003 को उन्हें बॉम्बे हाई कोर्ट के एडिशनल जज के रूप में प्रमोट किया गया. 12 नवंबर 2005 को वे हाई कोर्ट के स्थायी जज बने.
जज के रूप में लंबा करियर
वह 16 मार्च 1985 को बार में शामिल हुए और नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती यूनिवर्सिटी के स्थायी वकील रहे. उन्होंने अगस्त 1992 से जुलाई 1993 तक बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त लोक अभियोजक के रूप में काम किया. जस्टिस गवई को 17 जनवरी 2000 को नागपुर बेंच के लिए सरकारी वकील और सरकारी अभियोजक नियुक्त किया गया था.
उनसे पहले सीजेआई रहे जस्टिस संजीव खन्ना ने 16 अप्रैल को केंद्र को अगले चीफ जस्टिस के रूप में जस्टिस गवई के नाम की सिफारिश की थी. कानून मंत्रालय ने 29 अप्रैल को एक नोटिफिकेशन जारी कर जस्टिस गवई की 52वें चीफ जस्टिस के रूप में नियुक्ति का ऐलान किया था. उन्होंने बुधवार को राष्ट्रपति भवन में प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष, कानून मंत्री समेत कई मंत्रियों और अपने परिवार के सदस्यों के बीच चीफ जस्टिस के तौर पर शपथ ली है.