महाराष्ट्र की राजनीति में इन दिनों राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के दोनों गुटों शरद पवार और अजित पवार के संभावित विलय की चर्चाएं जोरों पर हैं. लेकिन इन अटकलों के बीच एनसीपी (शरद पवार गुट) के प्रमुख शरद पवार ने स्पष्ट कर दिया है कि आगामी स्थानीय निकाय चुनावों, जिनमें मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) भी शामिल है, में उनकी पार्टी अजित पवार के साथ किसी भी तरह का गठबंधन नहीं करेगी.
पिंपरी-चिंचवड़ में पार्टी की एक सभा को संबोधित करते हुए शरद पवार ने कहा, “आगामी स्थानीय निकाय चुनावों में हम समान विचारधारा वाली पार्टियों के साथ गठबंधन के लिए तैयार हैं. लेकिन हमें समझना होगा कि समान विचारधारा का क्या मतलब होता है? अगर कोई गांधी, नेहरू, फुले, शाहू और आंबेडकर की विचारधारा को मानता है, तो हम उनके साथ बैठ सकते हैं. लेकिन जो केवल सत्ता के लिए भाजपा से हाथ मिला रहे हैं, वह अवसरवाद है और ऐसे अवसरवाद को बढ़ावा नहीं देना चाहिए.”
गठबंधन की चर्चाओं पर विराम
दरअसल, दो दिन पहले मीडिया से बातचीत में शरद पवार ने कहा था कि उनकी पार्टी आगामी चुनावों में गठबंधन के लिए खुली है. इसी बयान के बाद यह चर्चा शुरू हो गई कि क्या एनसीपी के दोनों गुट एक साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे. लेकिन आज उन्होंने पूरी स्पष्टता से कहा कि उनकी पार्टी उन लोगों के साथ नहीं बैठेगी, जो भाजपा के साथ सरकार में हैं और फिर भी खुद को फुले, शाहू और आंबेडकर की विचारधारा का अनुयायी बताते हैं.
एनसीपी में अंदरूनी खींचतान
शरद पवार ने यह भी स्वीकार किया कि उनकी पार्टी के कुछ विधायक अजित पवार के साथ जाने के पक्ष में हैं, जबकि दूसरी तरफ कुछ विधायक इसका विरोध कर रहे हैं. इस पर उन्होंने कहा, “अब पार्टी में निर्णय लेने का काम सुप्रिया (सुनील) को सौंपा गया है. मैं अब पार्टी के निर्णयों में सक्रिय भूमिका में नहीं हूं. लेकिन जब अजित पवार से गठबंधन की बात शुरू हुई, तो मैंने खुद सामने आकर स्थिति स्पष्ट की.”
'जो छोड़ गए उन्हें भूल जाओ, नए नेतृत्व को मौका दो'
अपने भाषण में शरद पवार ने कार्यकर्ताओं से भावुक अपील करते हुए कहा, “हमें उन लोगों की परवाह नहीं करनी चाहिए जो हमें छोड़कर चले गए. हमें युवा पीढ़ी को आगे लाने और महाराष्ट्र के भविष्य के लिए नया नेतृत्व तैयार करने पर ध्यान देना चाहिए.”
उन्होंने अपने राजनीतिक अनुभवों का हवाला देते हुए एक किस्सा भी साझा किया. पवार ने कहा, “1980 में जब मैं मुख्यमंत्री था, हमारे पास 70 विधायक थे. लेकिन एक जरूरी काम से मैं 10 दिनों के लिए लंदन गया और जब लौटकर आया तो देखा कि 70 में से 64 विधायक पार्टी छोड़ चुके थे. हम केवल 6-7 विधायक रह गए थे. लेकिन मैंने हार नहीं मानी और मेहनत से राजनीति में फिर से तस्वीर बदल दी.”