आर्थिक राजधानी मुंबई की कई इमारतें गुजरते वक्त के साथ कमजोर हो गई है. मुंबई के डोंगरी में मंगलवार को 100 साल पुरानी एक चार मंजिला केसरबाई इमारत ढह गई जिसमें 10 लोगों की मौत हो गई. बचाव कार्य जारी है, लेकिन मायानगरी कही जाने वाली मुंबई में अभी भी ऐसे हजारों जर्जर इमारतें हैं जिसके कभी भी ढहने का खतरा बना हुआ है.
मॉनसून आने और बारिश से पहले बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) के पास जर्जर इमारतों की पहचान करने और उनके संरक्षण करने का हर साल का चुनौती भरा काम है, लेकिन इनकी सही समय से पहचान कर पाने और उसे खाली कराने में बीएमसी नाकाम रहा है. अमूमन हर साल पुराने पड़ चुके इमारतों के गिरने की खबर आती है. महाडा के रिपेयर और रिकंस्ट्रक्शन बोर्ड के अनुसार मुंबई में करीब 16,000 ऐसी इमारतें हैं जो 100 साल से भी पुरानी हैं और उनकी मरम्मत की जरूरत है.
600 से ज्यादा इमारत बेहद जर्जर
हालांकि आंकड़े कहते हैं कि मुंबई में 4,299 जर्जर इमारतें हैं जिसमें से 633 इमारत तो C1 यानि बेहद जर्जर इमारतों की श्रेणी में शामिल किए गए हैं. लेकिन देश की सबसे धनी नगरपालिका इस साल मार्च तक महज 62 C1 यानि बेहद जर्जर इमारतों को खाली करा सकी जिसमें 43 को ध्वस्त करने में कामयाब रही.
शेष खस्ताहाल इमारतों को खाली करने का नोटिस दिए जाने के बाद भी बड़ी संख्या में लोग रहे हैं. आंकड़े कहते हैं कि 4,299 जर्जर इमारतों में 3,368 इमारतों का मालिकाना हक निजी हाथों में है, जबकि 187 इमारत सरकारी है और शेष 744 खुद बीएमसी के अधीन आते हैं.
जर्जर इमारतों को 3 श्रेणियां
इमारतों की अवस्था देखकर उन्हें 3 तरह की श्रेणियों (C1, C2, C3) में रखा जाता है. C1 श्रेणी में आने वाले इमारत को तुरंत खाली कराकर उन्हें नष्ट कर दिया जाना चाहिए. जबकि C2 और C3 श्रेणी के इमारतों को उन जर्जर इमारतों की श्रेणी में रखते हैं, जिन्हें फिलहाल नष्ट करने की जरूरत नहीं होती और इन्हें नए तरीके रिपेयर कर मजबूती दी जा सकती है.
इमारतों को उनके निर्माण अवधि के आधार पर यह श्रेणी दी जाती है. कैटेगरी A में उन इमारतों को रखा गया है जिनका निर्माण 1 सितंबर, 1940 से पहले हुआ हो. कैटेगरी B में ऐसे इमारतों को रखा गया है जो 1 सितंबर 1940 से 31 दिसंबर, 1950 के बीच बने हों. कैटेगरी C की श्रेणी में ऐसी इमारतें आती हैं जिनका निर्माण 1 जनवरी 1951 से 30 सितंबर 1959 के बीच हुआ है.
40 साल में 800 से ज्यादा मौतें
महाराष्ट्र आवास एवं विकास प्राधिकरण (महाडा) हर साल पुरानी पड़ चुकी इमारतों की रिपेयरिंग में 30 करोड़ रुपये खर्च करती है. महाडा के अनुसार मुंबई में करीब 16,000 से ज्यादा ऐसी इमारतें हैं जिनकी उम्र 100 साल से भी पुरानी है और इन्हें रिपेयरिंग की जरूरत है.
बीएमसी और महाडा हर साल मॉनसून आने से पहले ही कमजोर पड़ चुकी इमारतों को खाली कराने, पुनर्निर्माण या फिर ध्वस्त कराने का काम करती है, लेकिन इसकी गति बेहद धीमी होती है क्योंकि इमारतों में रहने वाले लोग इसे आसानी से खाली नहीं करते. फिर भारी बारिश के कारण कमजोर इमारतें ढहने लगती हैं. मुंबई पिछले 40 सालों में इमारतों के ढहने से 894 लोगों की मौत हुई है जबकि 1,183 लोग घायल हो गए, जबकि पिछले 5 सालों में 230 से ज्यादा जानें गईं.
5 सालों में 234 मारे गए
बीते 5 सालों (2013-2018) में मुंबई में 2,704 इमारतें अलग-अलग कारणों से गिर गई जिससे 234 लोग मारे गए और 850 से ज्यादा लोग घायल हो गए. महाडा के अनुसार अलग-अलग समय पर इमारत गिरने से 1971 से लेकर 2018 तक करीब 900 लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा वहीं 1,138 लोग घायल हुए.
महाडा की पूरी मुंबई में करीब 2.5 लाख मकान हैं. महाडा के रिपेयर और रिकंस्ट्रक्शन बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार 1971 से 2018 तक 3,528 इमारतें गिर चुकी हैं. रिपोर्ट यह भी कहता है कि इमारत गिरने से 1985-86 में सबसे अधिक मौत के मामले सामने आए. औसतन हर साल यहां पर 20-25 इमारते ढहती हैं.
देश के 4 बड़े महानगरों में शामिल मुंबई के अलावा नई दिल्ली और कोलकाता में आए दिन इमारतों के गिरने की खबरें आती हैं जिसमें बड़ी संख्या में लोग हताहत होते हैं. हादसा होने के बाद हर जिम्मेदार विभाग एक-दूसरे पर दोष मढ़ने लग जाते हैं, लेकिन इन्हें ऐसी आदत बदलनी चाहिए जिससे इन हादसों पर रोक लग सके और जीवन सुरक्षित रहे.