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2015 किनारा रेस्टोरेंट अग्निकांड: 'पीड़ित परिवारों को 50-50 लाख मुआवजा दे BMC', बॉम्बे HC का बड़ा फैसला

कोर्ट ने बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) को आदेश दिया कि वह हादसे में मारे गए आठ लोगों के परिजनों को 50-50 लाख रुपये का मुआवजा अदा करे. कोर्ट ने कहा कि यह मुआवजा आदेश के 12 हफ्तों के भीतर दिया जाना चाहिए. यदि तय समयसीमा में भुगतान नहीं होता है तो उस पर 9% वार्षिक ब्याज की दर से ब्याज लगाया जाएगा, जो आज से लागू माना जाएगा.

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बॉम्बे हाईकोर्ट (फाइल फोटो)
बॉम्बे हाईकोर्ट (फाइल फोटो)

बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार को 2015 में मुंबई के होटल सिटी किनारा में हुए भीषण अग्निकांड के मामले में बड़ा फैसला सुनाया. कोर्ट ने बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) को आदेश दिया कि वह हादसे में मारे गए आठ लोगों के परिजनों को 50-50 लाख रुपये का मुआवजा अदा करे.

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कोर्ट ने कहा कि यह मुआवजा आदेश के 12 हफ्तों के भीतर दिया जाना चाहिए. यदि तय समयसीमा में भुगतान नहीं होता है तो उस पर 9% वार्षिक ब्याज की दर से ब्याज लगाया जाएगा, जो आज से लागू माना जाएगा.

क्या था हादसा?

यह दर्दनाक हादसा 16 अक्टूबर 2015 को हुआ था. आठ युवक-युवतियां दोपहर 1 बजे होटल सिटी किनारा में लंच करने पहुंचे थे. वे होटल के मीजनाइन फ्लोर (बीच का छोटा फ्लोर) पर बैठे थे. करीब 1:20 बजे उसी फ्लोर पर आग लग गई, जिससे सभी आठों की मौत हो गई थी.

पहले लोकायुक्त में हुई थी शिकायत

सबसे पहले इस हादसे की शिकायत लोकायुक्त में की गई थी, जहां मुआवजा दिलाने और जांच की मांग की गई थी. तब प्रशासन ने लोकायुक्त को बताया था कि मृतकों के परिवारों को पहले ही मुआवजा देने का आदेश दिया जा चुका है और वह राशि तहसीलदार, कुर्ला के खाते में जमा कर दी गई है. इस आधार पर लोकायुक्त ने शिकायत को खारिज कर दिया था.

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इसके बाद पीड़ितों ने हाई कोर्ट का रुख किया. हाई कोर्ट की जस्टिस बी.पी. कोलाबावाला और जस्टिस फिरदौस पी. पूनावाला की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की.

BMC को ठहराया गया जिम्मेदार

सुनवाई के दौरान BMC ने दलील दी कि होटल के मालिक और संचालक ही इस हादसे के लिए जिम्मेदार हैं क्योंकि उन्होंने लापरवाही बरती. लेकिन कोर्ट ने कहा कि BMC ने भी अपनी जिम्मेदारियों का गंभीर उल्लंघन किया है. किनारा रेस्टोरेंट की ओर से लाइसेंस शर्तों का उल्लंघन किए जाने की शिकायतें पहले से थीं, इसके बावजूद BMC ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि BMC ने समय रहते कदम उठाए होते तो यह हादसा टाला जा सकता था.

दोषियों पर कार्रवाई, लेकिन जिम्मेदारी से इनकार नहीं

BMC ने यह भी कहा कि इस मामले में विभागीय जांच कर दो सैनिटरी इंस्पेक्टर्स को सजा दी गई है. लेकिन कोर्ट ने कहा कि कुछ अधिकारियों पर कार्रवाई कर देने से BMC अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकती. यह मामला सीधे-सीधे पीड़ितों और उनके परिजनों के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित है.

कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा दिए गए एक लाख रुपये का मुआवजा केवल अंतरिम (अस्थायी) राहत थी, न कि अंतिम मुआवजा. लोकायुक्त ने इस पहलू को नजरअंदाज कर दिया था. इसी वजह से कोर्ट ने लोकायुक्त का आदेश भी रद्द कर दिया.

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