बिहार में कैमूर जिले के रहने वाले शिक्षक पियूष मोहन ने लॉकडाउन के खाली समय में सही इस्तेमाल करते हुए रामचरितमानस को भोजपुरी में लिख डाला. उनका कहना है कि रामचरितमानस को भोजपुरी में लिखने का मकसद है कि रामचरितमानस को आसानी से और सरल तरीके लोग पढ़ सकें. इसके पहले भी उनके दो उपन्यास छप चुके हैं.
दरअसल, शिक्षक पीयूष मोहन कैमूर जिले के दुर्गावती प्रखंड के कर्मनाशा के रहने वाले हैं. शिक्षक पीयूष मोहन का कहना है कि जब लॉकडाउन लगा तो पूरी तरह खाली बैठे थे. मैंने सोचा क्यों न रामचरितमानस को भोजपुरी में लिखा जाए, क्योंकि वह जिस अवधी भाषा में लिखा गया है उस भाषा को समझना सभी के लिए संभव नहीं है या मुश्किल हो सकता है. इसलिए मैंने अपने खाली समय में रामचरितमानस को भोजपुरी में लिखना शुरू किया और अब वे अंतिम दौर में हैं.
साथ ही शिक्षक पीयूष मोहन कहना है कि भोजपुरी को बहुत ही हेय दृष्टि से देखा जाता है क्योंकि कुछ फिल्म जगत के लोगों ने भोजपुरी में अश्लील गाने गाकर उसको लोगों की नजरों में गिरा दिया है. इसलिए लोगों को भोजपुरी के प्रति मान सम्मान दिलाने के लिए मैंने रामचरितमानस को भोजपुरी में लिख डाला.
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यही नहीं, कई क्षेत्रीय भाषा में लोगों को काम करने पर अवार्ड मिलता है लेकिन भोजपुरी को लेकर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया. इसलिए मैंने सोचा कि रामचरितमानस को अपनी भाषा में लिखकर भोजपुरी का मान सम्मान बढ़ाया जाए. जानकारी के मुताबिक, लगभग 6 महीने से रामचरितमानस लिख रहे हैं. अभी कुछ अध्याय बाकी हैं जिसे कुछ दिनों में पूरा कर लिया जाएगा.
पीयूष मोहन का कहना है कि मैं लोगों से अपील करता हूं कि भोजपुरी में लोग रामचरितमानस जैसे भोजपुरी में लिखी गई किताबों को पढ़ें जिससे कि समाज में भोजपुरी का मान सम्मान बढ़ सके और स्वच्छ छवि बन सके. भोजपुरी के प्रति लोगों की सकारात्मक सोच बन सके. मेरे भोजपुरी में दो उपन्यास छप चुके हैं और एक और उपन्यास भोजपुरी में लिख रहा हूं. सीता जी का भी एक खंडकाव्य मैं लिख रहा हूं जो अधूरा है उसे भी मैं जल्द पूरा कर लूंगा.
कर्मनाशा के गांव के रहने वाले वेद प्रकाश चौबे बताते हैं कि हमारे गुरुजी पीयूष मोहन के अंदर शुरू से ही एक जुनून था कि रामायण जैसे कई साहित्य कई अलग-अलग भाषाओं में लिखे गये हैं तो क्यों न इसे भोजपुरी में भी लिखा जाए. इससे भोजपुरी जानने वाले उसको आसानी से पढ़े समझ सकें. लॉकडाउन के समय से ही उन्होंने इसे लिखना शुरू किया था. यह लिखने के बाद हम लोगों को इसके बारे में पढ़ाते भी थे. हम लोगों को बहुत अच्छा लगता था. उनकी सोच थी कि भोजपुरी को अश्लीलता के कारण ही न जाना जाए इसलिए रामचरितमानस को भोजपुरी में लिखना शुरू किया जिससे लोगों को ये मैसेज मिल सके कि भोजपुरी भी एक समृद्ध भाषा है.
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