शुक्रवार को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) की ओर से मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक का ब्यौरा जारी किया गया. नवगठित मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की यह बैठक 7 से 9 अक्तूबर के बीच हुई थी. ब्यौरे में आरबीआइ के डिप्टी गवर्नर माइकल देबव्रत पात्रा ने यह आकांशा जाहिर की कि कोरोना महामारी के कारण उत्पादन का जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई करने में कई साल लग सकते हैं. वहीं, आरबीआइ गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि कोविड-19 महामारी अगर दोबारा से फैलती है तो उससे अर्थव्यवस्था में जो सुधार की शुरुआत दिख रही है उस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. समिति में नवनियुक्त स्वतंत्र सदस्य शशांक भिडे ने कहा कि कोविड-19 महामारी से संबंधित अनिश्चितताओं का अगले दो से तीन तिमाहियों में वृद्धि दर और मुद्रास्फीति परिदृश्य पर प्रभाव बना रहेगा.
ब्याज दरों में कटौती की गुंजाइश
दास ने यह भी कहा कि नीतिगत दर में कटौती की गुंजाइश है, लेकिन इस दिशा में आगे कदम मुद्रास्फीति के मोर्चे पर उभरती स्थिति पर निर्भर करेगा जो फिलहाल केंद्रीय बैंक के संतोषजनक स्तर से ऊपर चल रही है. उन्होंने कहा, ‘‘मेरा यह मानना है कि अगर मुद्रास्फीति हमारी उम्मीदों के अनुरूप रहती हैं, तो भविष्य में नीतिगत दर में कटौती की गुंजाइश होगी. इस गुंजाइश का उपयोग आर्थिक वृद्धि में सुधार को संबल देने के लिये सोच-समझकर करने की जरूरत है.’’
गौरतलब है कि रिजर्व बैंक के अनुसार सकल मुद्रास्फीति चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में नरम पड़ेगी. अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में इसमें और कमी आने का अनुमान है. मुद्रास्फीति जून 2020 से 6 प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है. सरकार ने आरबीआइ को महंगाई दर 2 प्रतिशत घट-बढ़ के साथ 4 प्रतिशत के स्तर पर रखने की जिम्मेदारी दी हुई है.
आर्थिक विकास दर के बारे में दास ने कहा, ‘‘हालांकि, कुछ अनिश्चितताएं भी हैं, जो शुरूआती पुनरूद्धार के पहिये को रोक सकती हैं. उसमें मुख्य रूप से कोविड-19 के मामलों में फिर से बढ़ोतरी की आशंका है. घरेलू वित्तीय स्थिति में सुधार के बावजूद निजी निवेश गतिविधियां नरम रह सकती हैं. हालांकि, घरेलू वित्तीय स्थिति बेहतर हुई है.’’
चालू वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में देश के जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में 23.9 प्रतिशत की गिरावट आई है. डिप्टी गवर्नर पात्रा ने कहा कि भारत इस साल की पहली तिमाही में तकनीकी रूप से मंदी की स्थिति में पहुंचा है. यह देश के इतिहास में पहली बार हुआ है. उन्होंने कहा, ‘‘...अगर अनुमान सही बैठता है, जीडीपी में 2020-21 में कोविड- पूर्व स्तर के मुकाबले करीब 6 प्रतिशत की कमी आएगी और उत्पादन के स्तर पर जो नुकसान हुआ है, उसे हासिल करने में कई वर्ष लग सकते हैं।’’
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