वर्ष 2021 की शुरुआत “राज्य नगरीय विकास अभिकरण” यानी सूडा के लिए इससे अच्छी नहीं हो सकती थी. साल का पहला दिन था और प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी एक वर्चुअल समारोह में सूडा की निगरानी में संचालित प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के क्रियान्वयवन में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पुरस्कृत कर रहे थे. उत्तर प्रदेश को केंद्रीय आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय की ओर से संचालित प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के क्रियान्वयन में लगातार दूसरी बार उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए देश में पहला स्थान मिला है. यह उपलब्धि इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि तीन साल पहले इसी योजना में यूपी की गिनती देश के सबसे पिछलग्गू राज्य के तौर पर हो रही थी. उस समय यूपी प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के क्रियान्वयन में देश में 17वें पायदान पर था.
प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) योजना को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 जून 2015 को नई दिल्ली के विज्ञान भवन से लॉन्च किया था. नौ महीने बाद 21 मार्च, 2016 को यह योजना यूपी में लागू की गई. प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) योजना के क्रियान्वयन के लिए यूपी में “राज्य नगरीय विकास अभिकरण” यानी सूडा को नोडल एजेंसी बनाया गया था. सूडा और इसकी जिला इकाई “जिला नगरीय विकास अभिकरण" सोसायटी ऐक्ट में पंजीकृत एक संस्था की तरह काम करता है. असल में प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के चार घटक हैं. इसमें से एक है बेनिफीशियरी लेड कंस्ट्रक्शन यानी बीएलसी, योजना. इसी योजना में यूपी ने देश में सबसे अच्छा प्रदर्शन किया है. यूपी में वर्ष 2016-17 के दौरान बीएलसी के केवल 9,401 मकानों को ही मंजूरी मिली थी और यूपी शहरी गरीबों को मकान दिलाने के मामले में देश के सबसे खराब प्रदेशों की सूची में शुमार था.
मार्च 2017 में यूपी की सत्ता संभालने वाले योगी आदित्यनाथ ने प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) की ओर ध्यान देना शुरू किया. इसका असर हुआ. अगले ही साल 2017-18 में जारी मकानों की संख्या 3 लाख, 20 हजार 158 पर पहुंच गई. इसके बाद मुख्यमंत्री योगी ने प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) की नोडल एजेंसी सूडा की कमान वरिष्ठ पीसीएस अफसर (अब 2012 बैच के आइएएस अफसर के रूप में प्रोन्नत हो चुके) उमेश प्रताप सिंह को सौंप दी. उमेश ने 3 जुलाई 2018 को सूडा के निदेशक का पद संभाला. इसके बाद बीएलसी मकानों के निर्माण को मंजूरी मिलने में रिकॉर्ड उछाल आया. वर्ष 2018-19 में 6 लाख 45 हजार 544 मकानों को मंजूरी मिली. 2019-20 में 3 लाख 40 हजार, 612 मकानों को मंजूरी मिली. वर्ष 2020-21 में कोरोना महामारी के दौरान भी यूपी में 1 लाख 55 हजार मकानों को मंजूरी दी गई है जो बीएलसी मकानों के निर्माण में करीब-करीब निर्धारित लक्ष्य के संतृप्त होने की स्थिति तक पहुंच गया है. यह भी तब जबकि पिछले आठ महीने से केंद्र सरकार में इस संदर्भ में कोई बैठक नहीं हुई है. इस तरह उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के बीएलसी घटक के तहत 14 लाख 70 हजार मकानों को मंजूरी मिली है जो देश में सबसे अधिक है.
प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के घटक बीएलसी यानी लाभार्थी आधारित व्यक्तिगत आवास निर्माण के लिए सब्सिडी में सरकार पात्र लाभार्थी को मकान बनाने के लिए ढाई लाख रुपए सब्सिडी देती है जिसका 60 फीसद केंद्र सरकार और 40 फीसद राज्य सरकार वहन करती है. लाभार्थी अपनी 30 वर्ग मीटर जमीन पर मकान बनवाता है. निदेशक सूडा की जिम्मेदारी संभालते ही उमेश ने इस बात का अध्ययन शुरू किया कि आखिर प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) का लाभ लेने के लिए लोग आगे क्यों नहीं आ रहे हैं. यह पता चला कि गरीब लोग अपने मकान की नींव उन मानक पर नहीं खुदवाते हैं जैसा कि प्रधानमंत्री आवास योजना में तय किया गया है. उमेश यह बात मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और शासन के संज्ञान में लाए और प्रदेश में इस योजना के तहत मिलने वाली ढाई लाख रुपए की सब्सिडी को लचीला बनाने का सुझाव भी दिया. मुख्यमंत्री से निर्देश मिलते ही शासन ने एक आदेश करके यह व्यवस्था की कि प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) का लाभार्थी अपने मकान के नींव की खुदाई शुरू करेगा योजना के तहत मिलने वाली सब्सिडी की पहली किश्त के रूप में 50 हजार रुपए उसके खाते में भेज दिए जाएंगे. जैसे ही लाभार्थी नींव तक निर्माण पूरा कर लेता है उसके खाते में सब्सिडी की दूसरी किश्त के रूप में डेढ़ लाख रुपए भेज दिए जाएंगे. सब्सिडी के साथ लाभार्थी अपना पैसा भी मिलाकर मकान का निर्माण कराता है. मकान की छत पड़ने, शौचालय बनवाने के बाद लाभार्थी के खाते में सब्सिडी की अंतिम किश्त के रूप में 50 हजार रुपए टीपाई-बुनाई या अन्य ‘फिनिशिंग वर्क’ के लिए सब्सिडी के अंतिम किश्त के रूप में दिए जाते हैं.
प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के लाभार्थियों को खोजने के लिए उमेश ने पूरे प्रदेश में एक अभियान चलाया. नगर पालिका, नगर पंचायत और सीएलटीसी के जरिए पात्र लाभार्थियों का सर्वे कराया. हर जिले में प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) में सहयोग के लिए लगाई गईं आधा दर्जन से अधिक एजेंसियों को सक्रिय किया गया. लाभार्थियों का फार्म भरवाया गया. फार्म की तीन स्तर पर जांच की गई. नगर पालिका के एक्जिक्यूटिव आफिसर, उपजिलाधिकारी (एसडीएम) और ‘सिटी लेवल टेक्निकल कमेटी’ (सीलटीसी) ने अपने- अपने स्तर पर लाभार्थियों की जांच की. जिलाधिकारी अपने जिले में प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के तहत बनने वाले मकानों की एक डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट सूडा को भेजते हैं. सूडा सभी रिपोर्ट को कंपाइल करके इसे मुख्य सचिव की बैठक में पेश करता हैं. मुख्य सचिव की अनुमति मिलने के बाद प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के लाभार्थियों का ब्योरा केंद्र सरकार को भेज दिया जाता है. इस योजना के तहत लाभार्थियों को खोजने में एक सबसे बड़ी बाधा यह आई कि गरीब जिस जमीन पर रह रहा था या वो अपनी जिस जमीन पर मकान बनवाना चाहता था उसका स्वामित्व उसके पास नहीं था. इसके लिए सूडा की पहल पर शासन ने यह व्यवस्था की कि अगर गरीब की जमीन पर स्वामित्व संबंधी कोई विवाद नहीं है तो एक शपथपत्र लेकर उसे लाभार्थी की सूची में शामिल कर लिया जाए.
नियमों को लचीला और व्यावहारिक बनाते ही प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के बीएलसी घटक को पंख लग गए. वर्ष 2018-19 में रिकॉर्ड 6 लाख 45 हजार 544 मकानों को मंजूरी मिली. इस योजना में गड़बड़ियों को रोकने के लिए तकनीकी का भी बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया है. इस योजना में जैसे ही कोई लाभार्थी अपने मकान की नींव खोदता है वैसे ही नींव को जियोटैग कर दिया जाता है. इस काम के लिए केंद्र सरकार ने हर जिले में एक एजेंसी को तैनात कर रखा है. इस एजेंसी का भुगतान उत्तर प्रदेश सरकार करती है. नींव के जियोटैग होते ही लाभार्थी के खाते में सब्सिडी की पहली किश्त के रूप में 50 हजार रुपए भेज दिए जाते हैं. प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत हर जिले में तैनात ‘सिटी लेवल टेक्निकल कमेटी’ (सीलटीसी) के इंजीनियर लाभार्थी को मकान बनाने के लिए तकनीकी सलाह देते हैं. जुलाई, 2018 में जब उमेश ने सूडा के निदेशक की कमान संभाली थी उस वक्त तक प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के बीएलसी घटक के तहत केवल 532 करोड़ रुपए ही लाथार्थियों के खाते में डीबीटी (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) के जरिए भेजे गए थे. उमेश के आते ही मकानों के निर्माण ने गति पकड़ी और अबतक सब्सिडी के साढ़े 14 हजार करोड़ रुपए लाभार्थियों के खाते में भेजे जा चुके हैं. डीबीटी के माध्यम से इतनी बड़ी राशि को लाभार्थियों के खाते में भेजने में भी उत्तर प्रदेश देश में अव्वल है.
कभी विवादों में रहने वाली संस्था सूडा को नई पहचान दिलाने वाले उमेश प्रताप सिंह का जन्म प्रतापगढ़ की लालगंज तहसील के गांव डढ़लया में हुआ था. इंटरमीडियट तक की पढ़ाई प्रतापगढ़ में करने के बाद उमेश ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए पाठ्यक्रम में प्रवेश लिया. वर्ष 1992 में बीए करने के बाद उमेश ने सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी शुरू की. वर्ष 1994 में पहले ही प्रयास में इनका चयन उत्तर प्रदेश राज्य प्रांतीय सेवा में हो गया. ये एसडीएम नैनीताल से नौकरी शुरू कर गाजियाबाद, रामपुर, बुलंदशहर में उपजिलाधिकारी पद पर रहे. वर्ष 2012 से 2017 के दौरान उमेश बरेली, कानपुर, मेरठ के नगर आयुक्त रहे. जुलाई 2018 में उमेश प्रताप सिंह सूडा के निदेशक पद पर तैनात किए गए. अब सूडा के निदेशक रूप में उमेश के सामने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना “लाइट हाउस प्रोजेक्ट” को अगले वर्ष जनवरी तक पूरा करने का चुनौतीपूर्ण लक्ष्य है.
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