देश के 80 करोड़ मोबाइल उपभोक्ता की जिम्मेदारी देश की तीन निजी कंपनियों के हाथ में हैं. वोडाफोन आइडिया, भारतीय एयरटेल और रिलायंस जियो. तीनों ही कंपनियों ने 24 घंटे के भीतर एक सुर में मोबाइल टैरिफ बढ़ाने की घोषणा की है. यानी फ्री कॉल और सस्ते डाटा के दिन लदने वाले हैं. बात करने या इंटरनेट डेटा इस्तेमाल करने के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने होंगे.
क्या टेलिकॉम कंपनियों ने कार्टल बनाकर पैसे बढ़ाए गए? यह सवाल किसी भी उपभोक्ता के मन में आ सकता है. क्योंकि रिलायंस जियो की तो एंट्री ही बाजार में सबसे सस्ती और फ्री सेवा जैसी मार्केटिंग कैपेन के सहारे हुई थी. रिलायंस जियो के ऊपर तो सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का भी असर नहीं पड़ा जिसने वोडाफोन आइडिया के अस्तित्व पर ही संकट ला दिया. शायद एयरटेल और आइडिया के सहारे रिलायंस जियो ने बहती गंगा में हाथ धो लिए.
जियो के अलावा दोनों बड़ी कंपनियां एजीआर की मार पड़ने के बाद कराह रही हैं. उनके पास उपभोक्ताओं से पैसा वसूलने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा. कंपनियों को जिंदा रखना है तो उपभोक्ताओं की जेब से पैसा ही निकालना होगा क्योंकि 10804.50 करोड़ रुपए का रेवेन्यु कमाने वाली वोडाफोन आइडिया को 49727 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है. देर सवेर सरकार की इन कंपनियों को राहत देगी और उबारने की कोशिश करेगी.
लेकिन इस पूरी कहानी के बीच गौर करने वाली बात यह है कि जिन कंपनियों को सहारा देने की कोशिश की जा रही है दरअसल डिजिटल इंडिया का दारोमदार इन्हीं के कंधे पर है. स्मार्ट सिटीज, इंटरनेट ऑफ थिंग्स का तो अभी केवल नाम ही सुना है इनका आगमन इन्हीं कंपनियों के कंधे पर बैठकर होना है. कंपनियां अगर अपने अस्तित्व की ही लड़ाई लड़ रही हैं तो नई तकनीक को अपनाने के लिए नए निवेश कहां से लाएंगी? 5 जी का रास्ता कठिन है.
डिजिटल क्रांति के सपने देख रहे भारतीय तो अभी कॉल ड्रॉप न हो और इंटरनेट तेज चले इसी जुगत में लगे हैं और कंपनियां बदल बदल पर प्रयोग कर रहे हैं. भारती एयरटेल ने सितंबर में 23.8 लाख ग्राहक खो दिए, आइडिया ने सितंबर में 25.8 लाख खो दिए जबकि रिलायंस जियो को 69.8 लाख नए ग्राहक मिले.
उपभोक्ताओं के आंकड़े बाजार में एकाधिकार का इशारा कर रहे हैं, जहां केवल एक या दो कंपनियां का ही राज होगा. मोबाइल सेवाएं महंगी हुईं तो निश्चित तौर पर खपत भी सिकुड़ेगी. यानी ग्राहक सोच समझकर इस्तेमाल शुरू कर देंगे. लेकिन पैर पसारती अर्थव्यवस्था के लिए यह संकुचन भी गंभीर है. फिलहाल डिजिटल इंडिया के दूत ही दिक्कत में नजर आ रहे हैं.