डॉ. नरेंद्र कोहली का 81वां जन्मदिन उनके पाठकों के लिए सौगात लेकर आया था. उस रोज इस डिजिटल गोष्ठी में नरेन्द्र कोहली के नवीनतम उपन्यास 'सुभद्रा' का लोकार्पण किया गया.
स्त्री मन की पीड़ा और उसके अंदर के असमंजस को पेश करने वाली कहानियों का संग्रह है, भूमिका द्विवेदी अश्क का कथा संग्रह, खाली तमंचा तथा अन्य कहानियां
लॉकडाउन के बाद के दौर में राजकमल प्रकाशन समूह पाठकों के साथ जुड़े रहने की हरसंभव कोशिश कर रहा है. इसने नई किताबों के प्रकाशन की शुरुआत कर दी है और सबसे पहले पेरियार की दो किताबों को पाठकों के बीच पेश किया है.
अनिल उन कवियों में से हैं जो बहुत ही विनम्र ढंग से काव्य कर्म को बहुत ही गंभीरता से लेते हैं. उन्हें पता है कि कवि को कहां से खड़ा होकर इस संसार और जीवन को देखना है. वह प्रचलितब अर्थों में प्रतिरोध के कवि नहीं है लेकिन गंभीर हाथों में उनकी पक्षधरता हर कविता में दिखाई पड़ती है.
सितारा देवी ने शंभु महाराज और पंडित बिरजू महाराज के पिता अच्छन महाराज से भी नृत्य की शिक्षा ग्रहण की. 10 वर्ष की उम्र होने तक वह एकल नृत्य का प्रदर्शन करने लगीं.
प्रत्यक्षा की किताब 'ग्लोब के बाहर लड़की' को विधाओं के खांचे में नहीं बांधा जा सकता है. पर इसको पढ़कर आप प्रत्यक्षा के रचना संसार में विचर सकते हैं जहां की दीवारें पारदर्शी हैं. यह किताब रचनात्मकता के एक नए अंदाज का आगाज है, जिसको आने वाले वक्त में कई लेखक आगे बढ़ा सकते हैं.
यह उपन्यास चीन के केंटन , चांदपुर और पटना के त्रिभुज में फैला है. कथा की शुरुआत फतेह अली खान के रोजनामचे से शुरू होती है. फिर ली ना के भारत आने की कथा और अंत उसे चीन लौटने की घटना से होता है. बीच मे 1857 के विद्रोह की घटना का भी जिक्र है और इसमे बहादुर शाह जफर बेगम हजरत महल और बाबू वेरा कुंवर सिंह की भी चर्चा है।कोलकाता जरनल की कतरने भी बीच बीच मे हैं.
जिस तेजी के साथ हम पर्यावरण की अनदेखी कर रहे हैं और समझने को तैयार नहीं है उसे देखते हुए हम अपना भविष्य लगभग तय कर चुके हैं. इसी भविष्य की कहानी है माटी, मानुष, चून. 2074 की कहानी कहता ये उपन्यास फरक्का बांध के टूटने से आई प्रलय के साथ शुरू होता है. और फिर गंगा पथ पर विकास दिखाते विनाश को खोल कर रख देता है.
विहांग नाइक की कविताएं ज़मीनी स्तर पर सरल और सहज भाव से भरी-पूरी हैं. उनकी रचनाओं में मार्मिकता केंद्रीय विषय है और पाठक को अपनी ओर खींचती है