तानाजी जैसे किरदार को जीवंत करने के लिए जब आपने इतिहास के पन्नों को देखा तो क्या महसूस किया?
अफसोस होता है कि देश के लिए कुर्बानी देने वाले ऐसे वीर योद्धाओं के बारे में इतिहास के पन्नों में बहुत ही कम जगह है. अगर लोगों को तानाजी के बारे में पता होता तो देश का नक्शा ही बदल जाता. आज भी बच्चों को ब्रिटिश और मुगलों का इतिहास पढ़ाया जाता है.
आपको लगता है कि स्कूली किताबों में इतिहास को नए सिरे से लिखा जाना चाहिए?
उन वीर योद्धाओं के बारे में जरूर लिखा जाना चाहिए जो अब भी गुमनाम हैं या जिनके शौर्य गाथा को कमतर लिखा गया है. देश के हरेक प्रदेश में ऐसे वीर योद्धा हैं जिनके बारे में बताना जरूरी है. बच्चों को इनके बारे में इतिहास में पढ़ाया जाना चाहिए.
एक फिल्ममेकर के रूप में आप क्या कर रहे हैं?
तानाजी के बाद हमने उन गुमनाम वीर योद्धाओं पर सीरीज में फिल्में बनाने का फैसला किया है. इस पर हमारी टीम रिसर्च कर रही है. इस सीरीज के तहत हर दो-तीन साल पर एक फिल्म आएगी.
मोहम्मद गजनी को हराने वाले राजा सुहेलदेव पर भी आप फिल्म कर रहे हैं?
यह फिल्म मैं कर रहा हूं. लेकिन अभी इसके बारे में कुछ नहीं बता सकता.
अक्सर फिल्मकार कहते हैं कि इतिहास के इस चरित्र के बारे में जानकारी नहीं है तो ऐसे में फिल्म बनाना चुनौतीपूर्ण होता है?
इसके लिए रिसर्च के लेवल पर काफी संघर्ष करना पड़ता है. तानाजी के लिए भी किया है. क्योंकि दर्शकों को एक अच्छी कहानी दिखानी होती है. नाटकीयता न हो तो दर्शकों को पसंद कैसे आएगी.
क्या कमजोर रिसर्च के कारण विवाद खड़ा होता है. तानाजी को लेकर भी विवाद है?
झंडे को लेकर एतराज जताया है. ऐसे एतराज तो आते रहते हैं. मुख्य चरित्र को लेकर भी लोग बोलते हैं कि यह हमारा आदमी था. लेकिन कोई यह नहीं कहता कि यह देश का आदमी था. तानाजी और सूर्याजी की तेरहवीं पीढ़ी के लोगों ने हमें सहयोग किया है. वे लोग शूटिंग के दौरान सेट पर भी आए थे.
उदयभान राठौड़ की भूमिका में सैफ अली खान ने कैसा काम किया है?
उदयभान राठौड़ के किरदार में जो एक पागलपन चाहिए था वो सैफ अली खान ने बखूबी पेश किया है. उन्होंने गजब का अभिनय किया है.
लंबे समय के बाद अपनी पत्नी काजोल के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
बस, घऱ से फिल्म के सेट पर चले आए काजोल के साथ. पति-पत्नी होने से अभिनय में काफी सहजता रहती है.
आज के दर्शकों के बारे में क्या कहेंगे?
दर्शक बदल गए हैं. फिल्में वही बनती हैं जो दर्शक देखना चाहते हैं. सोसायटी बदलती है तो फिल्में भी बदलती हैं. समय के साथ दर्शकों की सोच बदलती है. 60 के दशक में सास-बहू पर तो 80 के दशक में राजनीतिक भ्रष्टाचार पर फिल्में बनी. आज के दर्शकों को कंटेंट वाली फिल्में पसंद हैं.
आप अपने तीन दशक के करियर को किस तरह से आंकते हैं?
मेरे करियर का ट्रेंड बहुत अच्छा रहा है. मैंने लगभग हर जोनर की फिल्में की. महेश भट्ट की जख्म और गोविंद निहलानी की तक्षक भी की. मैं खुश हूं कि मुझे अपने करियर में हर तरह की फिल्में करने को मौका मिला.
आपके लिए सफलता का पैमाना क्या है?
मेरे लिए सफलता का पैमाना कुछ नहीं है. बस, काम करते रहो और खुश रहो.
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