विशेष विवाह अधिनियम, 1954
यह कानून धर्म-निरपेक्ष है और किसी भी धर्म का कोई भी व्यक्ति इसके तहत विवाह कर सकता है. कानून का उद्देश्य अंतर-धार्मिक और अंतरजातीय विवाहों को कानूनी सहारा देना था. इसमें धार्मिक औपचारिकताओं की जरूरत नहीं है.
विवाह के समय लड़का 21 वर्ष का और लड़की 18 वर्ष की होनी चाहिए. दोनों में रक्त संबंध नहीं हो सकता. कानून तलाक के 10 आधार निर्धारित करता है, जो पति-पत्नी में से किसी पर भी लागू होते हैं. धारा 27(1ए) में दो और आधार हैं जिन पर पत्नी विवाह खत्म करने की मांग कर सकती है. केवल पत्नी ही स्थायी गुजारे भत्ते का दावा कर सकती है
विदेश विवाह अधिनियम, 1969
यह कानून भारतीय नागरिक और विदेशी नागरिक के विवाह पर लागू होता है. यह विवाह अधिकारी के सामने तीन गवाहों की मौजूदगी में उस भाषा में होना चाहिए जो दोनों सहभागियों के साथ-साथ विवाह अधिकारी भी समझता हो
भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925
यह कानून उत्तराधिकार का नियमन करता है और मुसलमानों पर लागू नहीं होता. हालांकि, किसी भी व्यक्ति को, उसका धर्म चाहे जो हो, मुस्लिम सहित, जिसने विशेष विवाह अधिनियम 1954 के तहत विवाह किया हो, इस कानून का पालन करना होगा. अगर दोनों पति-पत्नी हिंदू, जैन, सिख या बौद्ध हों, तो यह कानून उन पर लागू नहीं होता
बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006
यह कानून 21 वर्ष से कम उम्र के लड़के और 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की के विवाह के विधिपूर्वक निष्पादन का निषेध करता है. सुप्रीम कोर्ट ने अक्तूबर 2021 में ऐतिहासिक फैसला देते हुए बाल दुल्हन के साथ यौन संबंध को आपराधिक बना दिया. तब तक नाबालिग पत्नी के साथ विवाह का निष्पादन कानूनी था. यह कानून सभी पर्सनल लॉ से ऊपर उठकर लागू होता है.