फिल्म दंगल की फोगाट बहनों के उलट पूजा ढांडा को कठोर से कठोर रियाज की तरफ धकेलने के लिए सक्चत पिता की जरूरत नहीं थी. वे खुद इसके लिए बहुत इच्छुक और तैयार थीं, क्योंकि वे अपनी आइडल, अपने ही गृहनगर हिसार की राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों की पदक विजेता गीतिका जाखड़ के नक्शेकदम पर चलना चाहती थीं. शुरुआत में वे भी लड़कों के साथ कुश्ती लड़ती थीं. पूजा कहती हैं, "लड़कों के साथ रियाज करना अच्छा होता है क्योंकि उनमें ज्यादा ताकत, दमखम और गति होती है, जो मदद करती है.''
16 साल की होने तक पूजा जूडो या कुश्ती के बीच चुनाव में उलझी रहीं. एशियाई चैंपियनशिप विजेता कृपा शंकर बिश्नोई की सिफारिश पर उन्होंने कुश्ती का दामन थामा. उन्हें सबसे बड़ा समर्थन पिता अजमेर सिंह में मिला, जो हरियाणा पशुपालन केंद्र में काम करते हैं. पूजा कहती हैं, "वे अब भी तड़के रियाज के लिए मेरे साथ आते हैं और 8.30 बजे सीधे काम पर चले जाते हैं. मुझे नहीं लगता कि एक भी मुकाबला ऐसा रहा होगा जिसमें वे मेरे साथ न गए हों.''
मगर नवंबर 2015 में यह सब लगभग व्यर्थ होता दिखा. एक चोट ने उन्हें बिस्तर पर लिटा दिया और घुटने के दो ऑपरेशनों और फिर सेहत दुरुस्त करने की लंबी प्रक्रिया ने उन्हें खेल से एक साल से ज्यादा वक्त के लिए दूर कर दिया. वापसी पर उन्होंने प्रो रेसलिंग लीग (पीडब्ल्यूएल) में खासा ध्यान खींचा. इस साल की शुरुआत में इसके तीसरे संस्करण में उन्होंने दो बार की विश्व चैंपियन हेलेन मैरोलिस पर दो जीत दर्ज कीं और पंजाब रॉयल्स को उसका लगातार दूसरा खिताब जिताने में बेहद अहम भूमिका अदा की.
2018 में अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में जोरदार प्रदर्शन के बाद—उन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक जीता और विश्व चैंपियनशिप में पदक (कांस्य) जीतने वाली वे चौथी भारतीय महिला हैं—पूजा मात्र तीन पहलवानों (बाकी दो हैं बजरंग पूनिया और विनेश फोगाट) में से एक बन गईं, जिसे भारतीय कुश्ती संघ से ग्रेड ए करार मिला है. उन्हें प्रशिक्षण के लिए 30 लाख रु. सालाना मिलेंगे. पूजा कहती हैं,
"कुश्ती में कड़ी मेहनत करनी होती है, पर इसमें प्रसिद्धि और पैसा नहीं है. टाटा मोटर्स और डब्ल्यूएफआइ की मदद से फिजियो और विदेश कोच हासिल कर पाना मुमकिन हुआ है.''
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