आयुष्मान खुराना, 36 वर्ष
तीन 100 करोड़ रु. की हिट फिल्मों, एक राष्ट्रीय पुरस्कार और बधाई हो, अंधाधुंध तथा आर्टिकल 15 जैसी फिल्मों की बदौलत इस अभिनेता के जीवन का शुरुआती फैसला सही साबित हुआ
पढ़ाई के दौरान खुराना नंबरों से काफी बिदकते थे. उनकी दिलचस्पी संगीत और नाटक वगैरह में ज्यादा थी. उनके मां-बाप ने मंचीय कला में उनकी रुचि को इस शर्त पर बढ़ावा देना कबूल किया कि वे इम्तिहान में नंबर कम नहीं होने देंगे. लेकिन खुराना ने इस दौरान यह भी जाना कि थिएटर में उनकी दिलचस्पी ने उन्हें कुछ की नजर में ‘बेकार’ बना दिया था.
उन्हें आठवीं कक्षा का वह दिन भी खूब याद है, जब चंडीगढ़ में सेंट जॉन्स हाइस्कूल में बतौर सह-पाठ्यक्रम कप्तान के नाते उन्होंने गणित के अध्यापक से आग्रह किया कि कक्षा के तीन छात्रों को स्कूल फंक्शन की तैयारी के लिए जाने दें तो उन्हें झिड़की खानी पड़ी, ‘‘आयुष्मान, तुम सिर्फ नाच-गा ही सकते हो, जिंदगी में कुछ नहीं कर सकते.’’ वह बात उनके दिल पर लग गई. ‘‘लगा कि मैं रो दूंगा, लेकिन उस घटना ने मेरी खाल मोटी कर दी.’’
कला में गहरी दिलचस्पी के बावजूद खुराना ने 11वीं में साइंस ली ताकि अपने दोस्तों की ही तरह मेडिसिन की पढ़ाई कर सकें. उन्होंने कर्नाटक के एक कॉलेज में डेंटिस्ट्री की पढ़ाई के लिए सीट हासिल कर ली, लेकिन वे कहते हैं, ‘‘अचानक दिमाग की कोई बत्ती जली. मुझे अपनी धुन में आगे बढऩा था, कला में दाखिला लेकर थिएटर करना था.’’ डीएवी कॉलेज में उन्होंने अंग्रेजी ऑनर्स में दाखिला लिया और दो थिएटर ग्रुप ‘आगाज’ और ‘मंच तंत्र’ की स्थापना में सहयोगी बने.
पहले ग्रुप में खुराना नुक्कड़ नाटक लिखते, अभिनय करते और ट्रूप में यात्राओं पर जाते. वे कहते हैं, ‘‘हमने समसामयिक विषयों पर चुटीले व्यंग्य और तुकबंदियां लिखीं. इससे मुझे अपने देश को बेहतर ढंग से जानने में मदद मिली. आज जो फिल्में मैं करता हूं, वे थिएटर के दिनों में बनी संवेदनाओं का ही विस्तार हैं.’’ चंडीगढ़ में पंजाब यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ कम्युनिकेशन स्टडीज से पत्रकारिता में एमए के अंतिम वर्ष में खुराना को स्टारडम का पहला मौका हासिल हुआ.
वे एमटीवी के लोकप्रिय शो रोडीज के सीजन दो (2004) में जीत गए थे. चार साल बाद वे ऐक्टर बनने के अपने सपने को साकार करने के लिए मुंबई पहुंच गए. लेकिन सफर आसान नहीं रहा. वे बताते हैं, ''मैं रोजाना के धरावाहिक एक थी राजकुमारी (जी नेक्स्ट) में था और लीड रोल में भी नहीं था. मैं परेशान था कि अगर दिखूंगा नहीं तो अपना करियर कैसे बनाऊंगा?’’ खुराना ने ऐंकरिंग करने की सोची और एमटीवी में एक मौका मिल गया.
वे कहते हैं, ‘‘आप किसी पात्र से नहीं, अपने नाम से जाने जाते हो.’’ उससे उन्हें अभिनेताओं का इंटरव्यू लेने और उनके अनुभव से सीखने का मौका मिला. वे बताते हैं, ‘‘मैंने सीखा कि अगर आप बाहरी हैं तो अपनी पहली फिल्म का सही चयन करें. नाकाम होने की आपके पास कोई गुंजाइश ही नहीं क्योंकि दूसरा मौका नहीं होता.’’ खुराना ने पांच फिल्में खारिज करके विक्की डोनर चुनी.
पहली फिल्म की कामयाबी से पेशेवर सुरक्षा की गारंटी नहीं मिली. कुछेक फ्लॉप के बाद एक फिल्मकार ने तो खुराना से यह तक कह दिया कि ''तुम नहीं बिकते हो.’’ ऐसे फिकरों के आदी हो चुके खुराना ने नई दिशा चुनी. उन्होंने दूसरों के ढांचे के बदले अपनी ''खास शैली’’ विकसित करने की सोची. उन्होंने कर भी दिखाया.
अब, दम लगा के हइसा, बधाई हो, अंधाधुन और आर्टिकल 15 जैसी सराही गई फिल्मों में दमदार अभिनय, तीन 100 करोड़ रु. की हिट और एक राष्ट्रीय पुरस्कार की बदौलत खुराना ने साबित किया कि नाच-गाने वाला लड़का इतना भी बुरा नहीं.
''फिल्म इंडस्ट्री में अगर आप बाहरी हैं तो पहली फिल्म आपको सतर्कता के साथ चुननी होगी. आप नाकाम होने का जोखिम नहीं उठा सकते क्योंकि दोबारा आपको मौका नहीं मिलने वाला’’