
पश्चिम बंगाल में इस साल अप्रैल मंऔ अन्य चार राज्यों के साथ चुनाव होने हैं. बंगाल की लड़ाई में महिलाओं को कुछ अतिरिक्ति तवज्जो मिल रही है, तो इसके कारण भी हैं. हालांकि, इसके साथ-साथ हमले और तुष्टिकरण के एजेंडे को भी आगे बढ़ाया जा रहा है. केवल महिलाओं की संख्या ही वह कारक नहीं है जो सभी राजनीतिक दलों को उनके आगे हाथ जोड़ने को विवश कर रहा है. ऐसा देखा गया है कि अब महिलाएं ज्यादा संख्या में मतदान के लिए निकल रही हैं जो खेल बदलने वाला साबित हो रहा है.
मिसाल के तौर पर बिहार में जहां पिछले अक्तूबर-नवंबर में चुनाव हुए थे और वहां पुरुषों (54.7 फीसद) की तुलना में महिलाएं (59.7 फीसद) ज्यादा संख्या में मतदान के लिए निकलीं. यही वजह है कि बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), इसकी प्रबल प्रतिद्वंद्वी भाजपा, और यहां तक कि कांग्रेस ने भी अपने-अपने महिला मोर्चे को सक्रिय कर दिया है. ये सभी महिला सुरक्षा के मुद्दे पर दूसरे दल के खराब रिकॉर्ड को प्रस्तुत कर रहे हैं और महिलाओं के कल्याण के लिए उनकी पार्टी ने जो कुछ किया है, उसे जोर-शोर से लोगों को बता रहे हैं.
राज्य में 3.59 करोड़ महिला मतदाता हैं जो कुल मतदाताओं की लगभग आधे के बराबर हैं. वह दौर बीत चुका जब वामपंथियों की सरकार हुआ करती थी और महिलाओं को चुनाव के दिन अपने परिवार के पुरुषों को घर में ही रखने के लिए धमकाया जाता था. वे अब अन्याय के खिलाफ और अपने अधिकारों की मांग करने के लिए अधिक मुखर हैं. उन्हें ममता की रैलियों में अपनी असहमति दर्ज करते हुए देखा जा सकता है. नाम न छापने की शर्त पर एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी कहते हैं, ''पहले वाली बात होती तो ममता उन्हें गिरफ्तार करा देतीं, जैसा कि उन्होंने 2013 में किया था जब एक किसान ने उनसे राजनीतिक रैली के बीच बढ़ती उर्वरक कीमतों के बारे में पूछने की कोशिश की थी. समय बदल चुका है और अब ममता को उनकी बातें धैर्य से सुननी पड़ रही हैं.''
दरअसल, 2019 का लोकसभा चुनाव ममता के लिए समय रहते नींद से जगाने वाला अवसर बना. आम चुनाव में जब भाजपा ने 18 सीटें जीतीं जो टीएमसी की 22 सीटों की तुलना में सिर्फ चार कम थी और उसे 40 फीसद वोट मिले जो टीएससी से सिर्फ तीन फीसद कम थे. ममता केवल भाजपा से मिल रही जोरदार चुनौती से चिंतित नहीं हैं बल्कि उन्हें सत्ता-विरोधी लहर के साथ-साथ कांग्रेस-वाम गठबंधन से भी जूझने की चुनौती है. इसलिए मुख्यमंत्री सभी को खुश रखने की कोशिश कर रही हैं. विशेष रूप से महिलाओं को, जिनके योगदान को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार में भाजपा की सफलता के लिए विशेष रूप से स्वीकार किया है.
तृणमूल का हमला
भाजपा ने पश्चिम बंगाल में भी बिहार जैसा ही जादू चलाने की उम्मीद पाल रखी है, तो ममता भी महिलाओं को रिझाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं. अगर भाजपा के पास गिनाने के लिए उज्जवला, स्वच्छ भारत अभियान और आयुष्मान भारत जैसी आकर्षक योजनाएं हैं, तो टीएमसी भी महिला-विशिष्ट योजनाओं का जोर-शोर से प्रचार कर रही है. इनमें नवीनतम योजना स्वास्थ्य साथी स्मार्ट कार्ड है, जिसे कुछ नए लाभों के साथ परिवार की महिला के नाम से जारी किया जा रहा है. स्वास्थ्य मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य का कहना है, ''ममता बनर्जी ने महिला को एक व्यक्ति के रूप में मान्यता दी है, उसे सम्मान दिया है और सामाजिक-आर्थिक रूप से सशक्त किया है. किसने सोचा होगा कि उसके नाम पर परिवार के लिए एक स्वास्थ्य कार्ड जारी करके वह एक घर की पितृसत्तात्मक व्यवस्था को चुनौती देंगी, जहां महिलाओं को केवल कभी किसी की मां, किसी की पत्नी या किसी की बेटी के रूप में ही पहचाना जाता रहा है?''
ममता के संदेश को राज्य के कोने-कोने तक पहुंचाने की जिम्मेदारी बंग जननी वाहिनी उठा रही है. महिलाओं की यह ब्रिगेड ममता ने 2019 में लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद शुरू की थी. इस बीच, पार्टी का महिला विंग प्रदर्शनों की अगुआई कर रहा है जिनमें अक्तूबर में हाथरस बलात्कार के खिलाफ प्रदर्शन शामिल था. उसमें महिलाओं ने 'दलित महिला हमारी बेटी है' के बैनरों के साथ विरोध प्रदर्शन किया किया था. अब यह ग्रामीण महिलाओं को उनके घर भोजन के लिए आ धमकने वाले बाहरी लोगों, जैसे हाल के दिनों में आदिवासी घरों में भाजपा नेता कर रहे हैं, के खिलाफ सचेत करने के लिए 'रन्ना घोरे रन्ना होबे' नामक एक कार्यक्रम शुरू करने की तैयारी कर रहा है.
टीएमसी, भाजपा को गलत ठहराने का कोई मौका नहीं गंवा रही है. टीएमसी भाजपा नेताओं को उनकी यौन टिप्पणियों के लिए निशाने पर ले रही है. मिसाल के तौर पर, 4 जनवरी को, जब ममता ने बीरभूम के बल्लवपुर में सड़क के किनारे चलने वाले एक ढाबे पर रुककर, वहां खाना बनाने वाली महिला की मदद के लिए हाथ बढ़ाया, तो बंगाल में भाजपा के रणनीतिकार कैलाश विजयवर्गीय ने एक ट्वीट किया: ''दीदी ने वह काम पहले ही शुरू कर दिया है जो उन्हें पांच महीने बाद करना होगा.'' इस पर विजयवर्गीय आलोचनाओं से घिर गए. लोकसभा सांसद काकोली घोष दस्तीदार ने पटलवार करते हुए ट्वीट किया, ''अगर आप एक महिला हैं और राजनीति में आने की आकांक्षा रखती हैं, तो याद रखें कि हमारा देश भाजपा के नारी-द्वेषियों से भरा पड़ा है.'' बशीरहाट की सांसद नुसरत जहां ने इसे हर उस महिला का अपमान बताया जो खाना बनाती है, परिवार की देखभाल करती है और इन सबके साथ उसकी भी कुछ आकांक्षाएं हैं. इस तरह कई मौकों पर टीएमसी ने भाजपा को निशाने पर लिया है.
भाजपा का पलटवार
जवाबी रणनीति के रूप में भाजपा, महिलाओं की सुरक्षा पर टीएमसी के रिकॉर्ड, अम्फान राहत कार्यों में हुए भेदभाव, सरकार में भ्रष्टाचार और पार्टी के डराने-धमकाने के हथकंडों को जोर-शोर से उठा रही है. कुछ महीने पहले, भाजपा के महिला मोर्चा ने अम्फान राहत वितरण और मुआवजे में भेदभाव का विरोध करने के लिए हाथों में झाड़ू के साथ एक रैली निकाली. यूपी के हाथरस में एक दलित महिला के साथ बलात्कार के मुद्दे को टीएमसी द्वारा बंगाल में जोर-शोर से उठाने से परेशान भाजपा ने 'आर नॉय महिलादार असुरक्षा' नाम से एक अभियान शुरू किया है जिसमें कार्यकर्ता लोगों के घरों तक जाकर महिलाओं को बता रहे हैं कि बंगाल किस तरह महिलाओं के लिए असुरक्षित हो गया है. केंद्रीय बाल विकास राज्यमंत्री देबाश्री चौधरी कहती हैं, ''हम आंकड़ों के साथ महिलाओं को यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि एक महिला के मुख्यमंत्री होने के बावजूद राज्य में महिलाओं के विरूद्ध अपराध और महिला तस्करी की घटनाएं बहुत अधिक हो रही हैं.'' यह दीगर बात है कि इस अभियान को ज्यादा तवज्जो नहीं मिल सकी है.
इसके अलावा, भाजपा की योजना अपने बूथ प्रबंधन रणनीति में महिलाओं को शामिल करने और उनके साथ हर बूथ और मंडल में पदयात्रा से लेकर प्रभातफेरी जैसी गतिविधियों की एक शृंखला आयोजित करने की है. प्रेसीडेंसी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एमेरिटस प्रशांत रे कहते हैं, ''मोदी बंगाल की महिलाओं के लिए एक नया फैक्टर हैं और उनकी रैलियों में उत्साह दिखने की संभावना है जैसा कि 2019 के उनके चुनाव अभियानों में नजर आता था. लेकिन मुझे लगता है कि किसानों के मुद्दों को हल करने में उनकी विफलता ने 56 इंच की छाती वाली उनकी छवि को कुछ क्षति पहुंचाई है.''
हालांकि, मानसिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता और बंगाल की एक प्रमुख नारीवादी रत्नाबोली रॉय कहती हैं, ''यह नहीं समझा जाना चाहिए कि चूंकि मुख्यमंत्री महिला हैं इसलिए उन्हें महिला वोटरों को लुभाने में विशेष लाभ होगा. लैंगिक चेतना इस पर निर्भर करती है कि आप महिलाओं के मुद्दों को लेकर क्या नजरिया रखते हैं. महिलाएं बेवकूफ नहीं हैं और उन्हें लुभाने की जरूरत नहीं है. वे कहीं बेहतर समझती हैं कि खैरात नहीं, बल्कि गौरव और सम्मान वोट दिला सकते हैं.'' महिलाओं को सशक्त बनाने का एक तरीका यह है कि ज्यादा से ज्यादा महिलाएं चुनाव लड़ें. और, टीएमसी पंचायतों, विधानसभा और संसद में अपनी पार्टी की ओरे से महिलाओं के लिए 33 फीसद प्रतिनिधित्व देने की नीति का पालन करने से झिझकी नहीं है. 2019 के लोकसभा चुनाव में उसकी 41 फीसद उम्मीदवार महिलाएं थीं.