हाल के दौर में वह किसी राज्य के पुलिस बल की कटु निंदा थी. असम के बरपेटा में एक सत्र अदालत ने 29 अप्रैल को असम पुलिस को देश के 'मेहनत से हासिल लोकतंत्र को पुलिस राज' में बदलने के खिलाफ चेतावनी दी. अदालत गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवाणी की पुलिस वैन में एक महिला पुलिस अफसर के साथ कथित बदसलूकी के मामले में जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी. मेवाणी को जमानत दी गई. जिला और सत्र न्यायाधीश अपरेश चक्रवर्ती ने मेवाणी के खिलाफ पुलिस के आरोप को 'मनगढ़ंत' करार दिया और उसे असम में तथाकथित पुलिस मुठभेड़ के चल रहे मामलों जैसा बताया. जज ने गुवाहाटी हाइकोर्ट से अनुरोध किया कि क्या इस मसले को ''राज्य में जारी पुलिस ज्यादतियों पर अंकुश'' लगाने के लिए जनहित याचिका की तरह मंजूर किया जा सकता है. असम सरकार ने जमानत आदेश के खिलाफ अपील दर्ज की तो हाइकोर्ट ने पुलिस एफआइआर को मनगढ़ंत बताने समेत निचली अदालत की कई टिप्पणियों पर रोक लगा दी. लेकिन राज्य में नई तरह की कठोर न्याय प्रक्रिया के खिलाफ माहौल गूंजने लगा है.
यह पहली बार नहीं था. गुवाहाटी हाइकोर्ट पहले ही कथित फर्जी मुठभेड़ के खिलाफ याचिका की सुनवाई कर रहा है. पिछले साल दिसंबर में दाखिल इस याचिका में दावा किया गया है कि मई 2021 में हिमंत बिस्वा सरमा के कमान संभालने के बाद राज्य में फर्जी मुठभेड़ की 80 वारदातें हुईं, जिनमें 28 लोग मारे गए और 48 जख्मी हुए. (उसके बाद संख्या में इजाफा हुआ है. 1 मई, 2022 तक सरकारी आंकड़े के मुताबिक, 39 लोग मारे गए और 123 जख्मी हुए.) कोर्ट में फरवरी 2022 में एक हलफनामे में राज्य सरकार ने कहा कि ऐसे सभी मामलों में सभी कानूनी और एनएचआरसी (राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग) के दिशानिर्देशों का पालन किया गया. लेकिन सरकार खुशी-खुशी कानून-व्यवस्था के मामले में 'कठोर' रवैए पर गर्व करती है.
सरमा के साल भर के कार्यकाल में असम पुलिस की अपराध और अपराधियों से निबटने का एक खास तरीका जाहिर हुआ है—गिरफ्तार आरोपी अमूमन पुलिस हिरासत से भागने की कोशिश करते हैं और पुलिस टीम 'गोली चलाने को मजबूर' हो जाती है. फिर, ज्यादातर आरोपी मारे जाते हैं या जख्मी हो जाते हैं. अपराध से निबटने के इस तरीके पर मुख्यमंत्री की मुहर लगती है. सरमा कहते हैं, ''अगर अपराधी पुलिस हिरासत से भागने की कोशिश करता है तो गोली चलाना सही होना चाहिए. अगर अपराधी बस भागने की कोशिश करता है तो कानून पैर में गोली मारने की इजाजत देता है. अगर वह पुलिस टीम पर हमला बोल देता है तो पुलिस टीम आत्मरक्षा में गोली चलाने को मजबूर है. बलात्कार, ड्रग का धंधा करने या गो-तस्करी जैसे संगीन अपराधों में लिप्त लोगों के लिए सहानुभूति की कोई जगह नहीं होनी चाहिए.''
दरअसल, पिछले एक साल में उनकी घोषित प्राथमिकताएं महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर अंकुश, ड्रग के धंधे और गो-तस्करी की रोकथाम के अलावा भूमि सुधार करना रही हैं. सरमा की राज्य को इन सामाजिक बुराइयों से मुक्त करने की योजना में असम पुलिस मुख्य औजार यानी उनके राजकाज के मॉडल की जल्लाद बनकर उभरी है. मुख्यमंत्री से ऐसी बिनाशर्त मंजूरी से पुलिस ने कथित बलात्कारियों, ड्रग का धंधा करने वालों, गो-तस्करों और भू-माफिया के खिलाफ बड़े पैमाने पर अभियान छेड़ दिया है. मुठभेड़ों में मारे गए या जख्मी हुए लोगों के अलावा इन अपराधों के आरोप में करीब 5,000 लोगों को पिछले एक साल में गिरफ्तार किया गया है. सितंबर 2021 में एक दिन के छापे में 453 जमीन दलालों को पकड़ा गया.
''शूटआउट''/मुठभेड़ों के दौर की शुरुआत बलात्कार की एक घटना से हुई. गुवाहाटी से करीब 240 किमी दूर कोकराझार जिले के सिंगीमारी गांव में 12 जून, 2021 को दो किशोरवय बहनों से बलात्कार और फिर उनकी हत्या कर दी गई और लाश पेड़ से लटकी पाई गई. अगले ही दिन सरमा पीड़ितों के गांव पहुंचे और पुलिस से 24 घंटे के भीतर अपराधियों को पकड़ने को कहा. 14 जून को तीन आरोपी पकड़े गए और उनमें एक कथित तौर भागने की कोशिश में बुरी तरह जख्मी हो गया.
उसके बाद से कोई न कोई हिस्ट्रीशीटर पुलिस की गोली चलाने की वारदात का शिकार होता रहा और असम में उनके कठोर और फौरी न्याय के मॉडल का डंका बजने लगा. पिछले साल नवंबर में जोरहाट में एक हिस्ट्रीशीटर ने एक छात्र नेता की दिनदहाड़े हत्या कर दी तो टीवी ऐंकर खुलकर मांग करने लगे कि अपराधी को 'एन्काउंटर ट्रीटमेंट' दिया जाना चाहिए. गिरफ्तारी के 24 घंटे बाद वह मरा हुआ पाया गया. इस बार मामला भागने के चक्कर में पुलिस की गाड़ी से दुर्घटना का था. 'दुर्घटना में मौत' को भी परोक्ष समर्थन हासिल था क्योंकि वह फौरी न्याय के सरकारी तरीके का हिस्सा जो था. एक घंटे के भीतर ही, कानून-व्यवस्था के स्पेशल डीजीपी जी.पी. सिंह ने ट्वीट किया, ''हर क्रिया की बराबर और विलोम प्रतिक्रिया होती है—न्यूटन का तीसरा नियम.'' सरमा ने समर्थन में ट्वीट किया, ''असम अपराध और अपराधियों से मुक्त होगा, चाहे जो हो.''
इस ''सबसे मुफीद एन्काउंटर'' पर सरेआम खुशी जनवरी में गुस्से में बदल गई, जब नागांव में तत्कालीन एसपी आनंद मिश्र की बनाई ऐंटी-नार्कोटिक पुलिस टीम ने ड्रग बेचने के आरोप में एक छात्र नेता को गोली मारकर घायल कर दिया. स्थानीय लोगों और परिजनों ने इसके खिलाफ आवाज उठाई और लीपापोती की कोशिश का आरोप लगाया. उसके बाद राज्य सरकार ने जांच बैठाई. जांच की सिफारिशों के आधार पर मिश्र का तबादला कर दिया गया और वारदात में शामिल पुलिसवालों को मुअत्तल कर दिया गया.
असम पुलिस को लेकर उठे विवादों में अब मेवाणी का मामला भी जुड़ गया है. असम में भाजपा के एक पदाधिकारी अरूप डे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में एक कथित 'अपमानजनक' ट्वीट के खिलाफ 18 अप्रैल को एक एफआइआर दर्ज कराई. मेवाणी को कोकराझार पुलिस ने 20 अप्रैल की रात गुजरात के पालनपुर से गिरफ्तार किया. कोकराझार की अदालत ने 25 अप्रैल को जमानत दे दी, लेकिन उन्हें बरपेटा पुलिस ने एक महिला पुलिस अफसर के इस दावे के बाद फिर गिरफ्तार कर लिया कि मेवाणी ने कथित तौर पर 'भद्दी बातें बोलीं' और 'धक्का दिया'. अब हवा का रुख चाहे जिधर मुड़े लेकिन यह घटना तो उसी सिलसिले का हिस्सा है, जो साल भर से दिख रहा है.