प्रदेश कांग्रेस (पीसीसी) अध्यक्षों का वक्त अच्छा नहीं है, चाहे मौजूदा हों या पूर्व. नवजोत सिंह सिद्धू उलझ गए हैं तो उनके पूर्ववर्ती सुनील जाखड़ ने चुनावी राजनीति से रिटायरमेंट की घोषणा कर दी. दोनों के सबसे बड़े साझा दुश्मन कांग्रेस का सीएम चेहरा ही हैं.
सिद्धू सीएम बनने की इच्छा को लेकर मुखर थे, पर जाखड़ की महत्वाकांक्षा तब जाहिर हुईं जब उनका वीडियो वायरल हुआ—जिसमें उनका दावा था कि अमरिंदर के स्थानापन्न के तौर पर वह विधायकों की पहली पसंद थे और चरणजीत चन्नी आखिरी. वहीं, पार्टी की एक परिवार, एक टिकट नीति ने बाजवा बंधुओं—प्रताप, जो 2016 तक पीसीसी अध्यक्ष थे, और उनके सहोदर फतेहजंग—को नाराज कर दिया.
फतेहजंग भाजपा में चले गए. नाराज पूर्व पीसीसी अध्यक्षों में एच.एस. हंसपाल भी हैं जो अपने पोते सुंदर सिंह को टिकट नहीं मिलने पर आप में चले गए. अन्य पूर्व पीसीसी प्रमुखों में मोहिंदर केपी व शमशेर ढुलो टिकट से वंचित रह गए.
गोवा
ईश्वर का डर या कानून का?
कभी सामूहिक दल-बदल का शिकार हुई गोवा कांग्रेस फिर शर्मिंदगी झेल रही है. कभी इसने अपने उम्मीदवारों को देवताओं के सामने पार्टी के प्रति निष्ठा की शपथ दिलाई थी. उनमें ईश्वर के डर को लेकर अनिश्चय में पड़ी पार्टी ने अब उम्मीदवारों को हलफनामा दाखिल करके घोषित करने को कहा है कि वे पार्टी के साथ बने रहेंगे चाहे भाजपा आए या कोई और. आम आदमी पार्टी ने भी यही रास्ता अपनाया है.
त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति हुई तो वे नहीं चाहते कि भाजपा उनके विधायकों को खरीद ले. वैसे, गोवा फॉरवर्ड पार्टी (जीईपी) के मुखिया विजय सरदेसाई का पूरा भरोसा ईश्वर में है. वे अपने उम्मीदवारों को मापुसा के बोडगेश्वर भगवान के पास ले जाकर शपथ दिलाते हैं कि वे कभी भी भाजपा में शामिल नहीं होंगे. माना जाता है कि बोडगेश्वर शपथ तोड़ने वालों को माफ नहीं करते.