प्रदेश की सियासत में नया उबाल आया है. राज्य में भाजपा सरकार के पहले 100 दिनों में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने चुनाव हारे वरिष्ठ भाजपा नेता प्रेम कुमार धूमल के सांसद बेटे अनुराग ठाकुर को बड़ी राहत प्रदान की है.
उन्होंने न सिर्फ अनुराग ठाकुर की अध्यक्षता वाले हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (एचपीसीए) पर बने चार पुलिस मामले वापस ले लिए, बल्कि खेल विधेयक (2015) को भी वापस ले लिया, जिसे पूर्ववर्ती कांग्रेस की वीरभद्र सिंह सरकार ने पेश किया था. यह वह बिल था जिसके माध्यम से खेल संघों पर सीधे सरकार का नियंत्रण प्रस्तावित था और पैसों के लेनदेन में पारदर्शिता बरती जानी थी.
हालांकि खेल विधेयक पर जयराम सरकार का वापसी का फैसला बीसीसीआइ के पूर्व अध्यक्ष तथा सांसद अनुराग ठाकुर को सुकून तो देगा मगर प्रदेश में आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर जयराम सरकार के खिलाफ कांग्रेस के हाथ एक बड़ा मुद्दा थमा देगा.
गौरतलब है कि भाजपा ने चुनाव से ऐन पहले प्रेम कुमार धूमल को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया था पर वे हार गए. अब उनके बेटे अनुराग की अग्निपरीक्षा आने वाले दिनों में हमीरपुर से लोकसभा चुनावों में होनी है.
वीरभद्र सिंह सरकार ने 2013 में सत्ता में आते ही अनुराग ठाकुर पर चार मामले दर्ज किए. इसमें सबसे बड़ा मुद्दा था कि धूमल के हिमाचल में मुख्यमंत्री रहते एचपीसीए पर मेहरबानी हुई. आरोप था कि एचपीसीए को गलत तरीके से जमीन दी गई. जहां होटल बनाया वहां अवैध कटान हुआ और एचपीसीए को उन्होंने 'कंपनी' बना दिया.
फिर कांग्रेस सरकार ने अप्रैल 2015 में एक खेल बिल सदन में पास किया, जिसमें सभी खेल संघों के लिए नियम बने. इसे राज्यपाल के पास स्वीकृति के लिए भेजा गया. मई 2015 से यह राज्यपाल के पास लंबित था.
इस वर्ष 3 मार्च को खेल मंत्री ने सदन में प्रस्ताव पेश करके इसे वापस ले लिया क्योंकि ''राज्यपाल के पास बिल लंबित रहने की अवधि बीत गई है.'' वीरभद्र सिंह ने इसे अनैतिक और गैरकानूनी करार देते हुए कहा, ''राज्यपाल ने अपना दायित्व नहीं निभाया.'' लेकिन मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर पुराने बिल में खामियों की बात करते हुए कहते हैं, ''इसकी जगह नया खेल बिल बनाने पर विचार होगा.''
इसके खिलाफ कांग्रेस के साथ समूचे विपक्ष ने सदन से वॉकआउट किया, ताकि इसे जनता के बीच ले जाया जा सके. इनमें विधायक दल के नेता मुकेश, विधायक राजेंद्र राणा भी शामिल थे. राजेंद्र राणा कांग्रेस के वे विधायक हैं जिन्होंने धूमल को विधानसभा चुनाव में हराया है. राणा का हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में खासा प्रभाव माना जाता है और वे वीरभद्र सिंह के करीबी भी रहे हैं.
बिल वापसी की सियासत
क्या था खेल बिल
एचपीसीए में दर्ज मामलों के बाद कांग्रेस खेल संघों को नेताओं के चंगुल से निकालने के लिए यह बिल 2015 में सदन में लाई. इसमें खेल संघ का संविधान बनाना, पंजीकरण, निर्वाचन, मताधिकार, लडऩे वाले की योग्यता, वित्त विषय, अभिलेख का निरीक्षण, जांच और मान्यता रद्द करने वगैरह का प्रावधान था. काबिले जिक्र है कि हिमाचल में लगभग हर खेल संघ नेताओं के हवाले है और इनमें पारदर्शिता की कमी है.
कहां अटका रहा बिल
मई 2015 में हिमाचल के राज्यपाल कल्याण सिंह के पास स्वीकृति के लिए भेजा गया. फिर राज्यपाल आचार्य देवव्रत के पास भी पड़ा रहा. खेल संघों ने आपत्ति जताई कि इससे संघों पर सरकार का नियंत्रण होगा. भाजपा सरकार ने इसे 3 मार्च, 2018 को सदन में वापस ले लिया.
एचपीसीए और खेल बिल
एचपीसीए से अनुराग ठाकुर की अध्यक्षता खत्म होने के बाद नियंत्रण के लिए अस्थायी कमेटी बनाई, जिसमें कुछ सदस्य हैं. वीरभद्र सिंह सरकार ने 2013 में धर्मशाला का क्रिकेट ग्राउंड अपने कब्जे में ले लिया था.
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