जब देवीलाल 1990 में वीपी सिंह सरकार को तोड़ने पर आमादा थे, मशहूर कार्टूनिस्ट अबु अब्राहम ने अपने कार्टून में ऐसे बैल को पेश किया जो अपनी ही दुकान में तोडफ़ोड़ कर रहा है (अंग्रेजी मुहावरे बुल इन चाइना शॉप की तर्ज पर). मैं उस समय इतना कनिष्ठ पत्रकार था कि राजनीति के गलियारों में उतनी पहुंच नहीं रखता था, लेकिन अगर मैं देवीलाल को जानता था और अपने हरियाणवी लोगों को भी जानता हूं तो मुझे पूरा यकीन है कि उन्होंने इसका बुरा नहीं माना होगा. इसके बदले वे यह देखकर चौंके होंगे कि कैसी-कैसी चर्चा है. किसी हरियाणवी के सबसे प्रिय उसके मवेशी होते हैं. देवीलाल के तो यकीनन थे. उन्हें आर. वेंकटरमण ने प्रेसिडेंट इस्टेट के साथ नई दिल्ली के विलिंगडन क्रिसेंट (जो अब मदरटेरेसा क्रिसेंट हो गया है) में बड़ा बंगला दिलवाया था. देवीलाल ने उसके खूबसूरत गार्डन को अपने सौ से अधिक मवेशियों के बाड़े में तबदील कर दिया था. जो भी हो, उन्होंने अबु के उस तंज को शायद ही समझा होगा. और वे वीपी सिंह सरकार को उखाड़ फेंकने में लग गए थे.
यह कहानी सिर्फ इसीलिए याद नहीं आई कि हरियाणा में बीजेपी सरकार की एक नई पहल से गाय, बैल, सांड और बछड़े वगैरह राष्टीय सुर्खियों में छा गए हैं. हरियाणा सरकार गोरक्षा के लिए एक नया कानून हरियाणा गोवंश संरक्षण और गोसंवर्धन विधेयक विधानसभा में पास करवाने जा रही है (वह भी निर्विरोध). वजह यह भी नहीं है कि नए कानून से राज्य में कोई खास हो-हल्ला मचने वाला है, जहां सामाजिक-आर्थिक और जाति आभिजात्य बिरादरी (जाट, ब्राह्मण, बनिया) ज्यादातर शाकाहारी है और जहां ईसाई नाममात्र के हैं तथा मुसलमान एक जिले तक सीमित हैं.
अब राज्य की पुलिस के पास हम सबकी 'माता' को कसाईखाने ले जाने और निर्यात करने से रोकने के लिए नए काले कानून का मोटा डंडा होगा. असल में यह डंडा और डरावना है. मसलन, अगर आप कहीं और से लाया डिब्बाबंद बीफ उत्पाद अपने यहां रखते हैं, बेचते हैं या खाते हैं तो आपको किसी की हत्या करने से भी ज्यादा बड़ी सजा हो सकती है. अगर मैं गुडग़ांव या उसके आसपास स्थित किसी कोरियाई या जापानी कंपनी का एचआर प्रमुख होता तो अपने सभी अधिकारियों को स्वदेश लौट जाने को कहता और यह भी हिदायत देता कि जाने के पहले अपने रेफ्रिजरेटर को पूरी तरह साफ कर दें ताकि बाद में कोई सुराग न मिल पाए. गुड़गांव में तमाम रेस्तरां, बार और तरह-तरह के नए पांच सितारा होटलों पर भी खानपान के मामले में फतवों की तरह पाबंदियों की फेहरिस्त लागू हो जाएगी. वैसे भी आप हरियाणा में बीफ की खपत काफी कम पाते हैं. यानी अब हमारे फ्रिज और डायनिंग टेबल से भी अपराध की बू आ सकती है. ऐसे में हम हरियाणवी लोगों को दुनियाभर में गोभक्ति के लिए नहीं, बल्कि, मैं कुछ डर के साथ कहूं तो, बैल जैसा दिमाग होने के लिए जाना जाएगा. फिर, इस कानून का दिलचस्प पहलू देख लें. यह सिर्फ देसी गायों की ही रक्षा करता है. तो, क्या जर्सी पर बंदिश नहीं है? और क्या कृत्रिम गर्भाधान रक्त शुद्घ करने के लिए अब भी जायज है?
इस हफ्ते की दलील बीफ खाने के मौलिक अधिकार के बारे में या बीजेपी के राज में शाकाहारी आतंकवाद के बढ़ने पर ही नहीं है, जहां पनीर आदर्श भोजन होगा. जिस देश में, एंथ्रोपोलॉजिकल सर्वे की रिपोर्ट (1993) के मुताबिक, भारत के लोग 4,635 समुदायों में 88 प्रतिशत मांसाहारी हैं, जिसमें हम भी शामिल किए जा सकते हैं. यह दलील बीजेपी सरकारों के बेमिसाल खब्तीपन के बारे में है जो सुशासन के महत्वपूर्ण मुद्दों से ध्यान हटाकर विरोधियों को जबान चलाने का मौका दे रहा है. यह पार्टी गायों से लेकर ईसाइयों, आइआइटी से लेकर संवेदनशील कानूनों के मामले में अध्यादेश, मुंहजोर साध्वी का हमारे वोटिंग के रुझान पर अशोभनीय बयान और अब एक वीएचपी नेता का 1857 के स्वतंत्रता संग्राम को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश. न जाने कितने ऐसे मोर्चे खोल रही है, जिसमें इसकी अपनी राजनैतिक पूंजी गंवा देने का भारी खतरा है.
फिलहाल हरियाणा की ही चर्चा की जाए क्योंकि यही वह राज्य है जहां बीजेपी अपनी उस राह से भटकती जा रही है जिसे उसने पूरे देश में दिखाया था. हरियाणा में गायों की गिनती होगी, पहचान के लिए कॉलर (पट्टे) लगाए जाएंगे. मेरा ख्याल है कि इस मामले में भी कुछ नए विचार आएंगे. मसलन, सेलफोन में निर्भया जैसा कोई एेप लगाया जाएगा ताकि गायें खतरा देखते ही पुलिस कंट्रोल रूम को आगाह कर सकें. और पुराने किस्म के बहाने भी नहीं चलेंगे, जैसे मुझे लगा कि यह भैंस का गोश्त या मटन कबाब है. वजह यह कि नए कानून में हरियाणा में गोश्त की जांच के लिए प्रयोगशालाएं बनेंगी. जरा सोचिए, जिस देश में मनुष्यों की फोरेंसिक जांच की मुकम्मल व्यवस्था नहीं है कि सुनंदा थरूर की मृत्यु के साल भर बाद उनकी बिसरा रिपोर्ट का अब भी अमेरिका से आने का इंतजार है, क्योंकि अभी पिछले महीने दिल्ली पुलिस के एक डीसीपी उसके नमूने लेकर गए हैं.
उस देश के एकराज्य में गौशालाएं बनेंगी और एक समूचा पुलिस बल तैयार किया जाएगा, जो आवारा गायों की रक्षा करेगा और कसाईखानों, दुकानों, गुड़गांव के होटलों से गोश्त के नमूनों को इकट्ठा करने के लिए होगा. गुड़गांव में बड़ी संख्या में विदेशी जो रहते हैं. यह पुलिस 'मातावध' पर एफआइआर भी दर्ज करेगी. न्यूनतम सरकार, अधिकतम सुशासन का ऐसा विचार तो किसी का नहीं है. देश के सबसे समृद्ध, तेजी से शहरीकरण की ओर बढ़ते राज्य में पुलिस की जरूरत तो महिलाओं के खिलाफ अपराधों, खाप पंचायत की ज्यादतियों और रामपाल जैसे संतों को काबू में रखने के लिए है. वहां यह नया कानून हास्यास्पद ही लगता है.
सत्ता में आकर कोई प्रचारक कभी कामयाब नहीं हुआ है. इसे नरेंद्र मोदी पर लागू न करें क्योंकि गुजरात के उनके रिकॉर्ड और 2014 में उनके वादों ने हमें आश्वस्त किया है कि अपनी विचारधारा से वे भले अभी भी बंधे हों, लेकिन वे पुरातनपंथी विचारों से आगे बढ़ गए हैं. हम अभी भी यह कयास ही लगा सकते हैं कि मोदी के तकनीक और उत्पादन आधारित विकास तथा नौकरियों के वादे पर राजनीति में बेहद रचे-बसे राज्य ने पहली बार बीजेपी को चुना तो किसने एक अनजान से प्रचारक को उसकी गद्दी सौंप दी. वहां के लोगों ने तो गाय से भी पवित्र आरएसएस को सत्ता में लाने के लिए मोल-तोल नहीं किया था. फिर भी सत्ता में आने के कुछ ही महीनों में यह सरकार वाट्स एप्प के लिए गजब की प्रेरणा बन रही है. जाहिर है, वहां का समाज छोटा और अपने में बेहतर जुड़ा हुआ समाज है जो दुनिया में सबसे उम्दा प्रजाति की अपनी भैंसों पर फख्र करता है और भैंस का दूध पीकर वहां के अधिकांश शाकाहारी पहलवान, बॉक्सर और एथलीट देश के बाकी हिस्से के लोगों से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय पदक बटोरते हैं. यही नहीं, ये अपनी गफलतों पर खूब जोर से हंसना भी जानते हैं. शायद अब भी उनके दिमाग में ऐसा ही कुछ चल रहा होगा.
हरियाणा आखिरी गैर-बीजेपी राज्य था, जिसने महज मोदी के नाम पर सरकार चलाने के लिए वोट दिया. उसने आरएसएस खाप पंचायत जैसी किसी सरकार के लिए वोट तो नहीं दिया था. यहां का समाज आस्थावान हिंदुओं का है जहां सांप्रदायिक जुनून या दंगों का कोई खास इतिहास नहीं रहा है. वहां आरएसएस को बंटवारे के बाद यहां के शहरों में आ बसे पंजाबी 'शरणार्थियों' का शगल माना जाता रहा है. राज्य में आर्य समाज आंदोलन की बड़ी मजबूत धारा रही है. यहां से 1977 में सेकुलर दलों से स्वामी अग्निवेश और आदित्यावेश चुने गए. यहां का आर्य समाज शुद्धतावादी है लेकिन उसका मुखर इजहार कभी नहीं होता. बेशक, अगर आरएसएस की मंशा प्रचारक संचालित हिंदू राष्ट्र के लिए नई प्रयोगशाला बनाना है तो उसने गलत राज्य का चुनाव कर लिया है.
हरियाणा कमोबेश एक हिंदू राज्य है. दरअसल हम हरियाणवी अपने अक्खड़पन के लिए जाने जाते हैं जो किसी से—मुसलमान, ईसाई, अमेरिकी, चीनी, पाकिस्तानी, हिंदू—नहीं डरता और अपनी इस ख्याति को हम अपने दिल से लगाए रहते हैं. हमें एक ही बात सामूहिक रूप से शर्मसार होने पर मजबूर करती है कि हम अपनी बेटियों से अच्छा बरताव नहीं करते. इससे हम स्त्री-पुरुष अनुपात के चार्ट में सबसे नीचे पहुंच गए हैं. हमें अच्छा लगेगा, अगर कोई हमें इस हालात को बदलने में मदद करे, समझाए या हम पर दबाव डाले. हमने जो सरकार हाल ही में चुनी है, वह जाति और सामंती वफादारियों के पुराने गड्ढों को यूं ही छोड़कर हमें एक विशाल गौशाला में बदल देना चाहती है. हमने अभी कोई भरोसेमंद जनमत सर्वेक्षण नहीं देखा है. लेकिन अगर आपको हरियाणवी धड़कन की थोड़ी भी समझ है तो जान लीजिए कि इस सरकार ने अपने अच्छे दिन खराब कर लिए हैं. ज्यादातर लोग बीजेपी को वोट देने के लिए खुद को कोस रहे हैं. यह बात योगेंद्र यादव से बेहतर कोई नहीं समझता. इसी से हरियाणा में 'आप' के प्रसार की उनकी बेचैनी समझ में आती है. मुझे अभी भी पूरा यकीन नहीं है कि हरियाणा 'आप' को वोट देने को तैयार है, लेकिन इतना तय है कि वह बीजेपी को बाहर का रास्ता दिखाना चाहता है.
मोदी इतने चतुर तो हैं ही कि वे समझ जाएं कि चुनावी लहर लौट चुकी है. दिल्ली ने इस तथ्य पर मुहर लगा दी. वही क्यों, महाराष्ट्र, झारखंड, जम्मू-कश्मीर में भी पार्टी का प्रदर्शन उसकी उम्मीदों से काफी कमतर रहा है जबकि कांग्रेस के खूंटे उखड़ने का सिलसिला थमा नहीं है. अगली लड़ाई बिहार में होनी है. अकालियों और कांग्रेस से बुरी तरह झल्लाए पंजाब में भी दिल्ली जैसे नतीजे आ सकते हैं, बशर्ते 'आप' कोई स्वच्छ छवि का मुख्यमंत्री का अच्छा उम्मीदवार पा जाए, जैसे कहें, मनप्रीत बादल. बिना लाग-लपेट के देखें तो दस महीने में ही भारी चुनावी जीत बेहद 'सामान्य' लगने लगी है, ठीक वैसे ही जैसे 1984 में राजीव गांधी की विशाल जीत डेढ़ साल में ही मामूली लगने लगी थी.
अगर मोदी वाकई बड़ा नेता बनने की इच्छा रखते हैं तो उन्हें आरएसएस/वीएचपी को दो-टूक शब्दों में साफ-साफ हिदायत देनी होगी. आरएसएस/वीएचपी के हाशिए के विचारों का अब कोई खरीदार नहीं है. वाजपेयी ने उन्हें दरकिनार कर दिया था, मोदी को उनसे टक्कर लेने की जरूरत है.
पुनश्चः इस हफ्ते सबसे बकवास बयान वीएचपी के महासचिव सुरेंद्र जैन (यह नाम आपने पहले सुना है?) का था. हिसार के चर्च पर हमले को जायज ठहराते हुए वे कह गए कि यह तब तक जारी रहेगा, जब तक ईसाई धर्मपरिवर्तन कराते रहेंगे, और कि 1857 का संग्राम ईसाइयों के खिलाफ धर्मयुद्ध था. मैं उन्हें विलियम डैलरिंपल की किताब द लास्ट मुगल की एक प्रति सौंपना चाहता हूं. उसमें ऐसी अनेक कथाएं हैं कि अधिकांश ऊंची जाति के हिंदुओं की फौज के सिपहसालार मुस्लिम हुआ करते थे. यह फौज नाम के 'बदशाह' जफर का मुगल झंडा लिए लड़ रही थी. मैं उसमें से एक खास संदर्भ का जिक्र करना चाहूंगा. जब लड़ाई दिल्ली के करीब पहुंच चुकी थी तब ईद का मौका था. ऐसे में उस फौज के कमांडरों (सभी मुसलमान) को चिंता सता रही थी कि गोवध की घटनाएं उनकी फौज को सांप्रदायिक आधार पर बांट सकती हैं. इसलिए उन्होंने अपने कोतवालों से डुगडुगी बजाकर लोगों में यह संदेश देने को कहा कि मुसलमान गायों को नुकसान न पहुंचाएं. यही नहीं, कोतवालों ने कोई मौका न देने के लिए आवारा गायों को पकड़कर पुरानी दिल्ली की कोतवाली की सुरक्षा में बंद कर दिया. इस तरह 1857 का युद्ध एक सेकुलर युद्ध था. भारत के इतिहास में उसका एक अलग स्थान है.