अपनी नई किताब ईडन में देवदत्त पटनायक ने यहूदी, ईसाई और इस्लामी कथाओं की भारतीय नजरिए से पड़ताल की, तो दिलचस्प नतीजे सामने आए.
●अब्राहम से जुड़े मिथों को भारतीय चश्मे से देखते वक्त बहुत ज्यादा तुलना से कैसे बचे?
जब आप दो चीजों को देखते हैं, आप तुलना करेंगे और फर्क दिखाएंगे. लेकिन मैं नहीं सोचता कि तुलना जरूरी तौर पर ऊंच-नीच पैदा करती है. मैं कभी नहीं कहता कि एक दूसरे से बेहतर है. मुझे लगता है कभी-कभी लोगों के दिमाग तंग होते हैं. मेरा मकसद दिमाग का विस्तार करना है, ताकि उसमें एक से ज्यादा विचार समाने लगें.
● किताब को चित्रों से सजाना कितना कठिन था?
जब से मैंने इस्लामिक परंपरा की सेसैनियम पेंटिग, ओटोमन भित्तिचित्र और इथियोपिया के बाइबिल के ये चित्रांकन देखे थे, बाइबिल की कहानियों को भारतीय पुट देते हुए चित्रित करना मेरा सपना था. मैं हमेशा खुद से पूछता—अगर किसी भारतीय ने उसका चित्र बनाया होता तो टॉवर ऑफ बाबेल कैसा दिखता?
●कोविड की दुनिया में मिथ और लोककथाएं क्या भूमिका निभाती हैं?
ईडन को लीजिए, यह नोआ की कहानी है. चारों तरफ सैलाब है और वह उसके बीचोबीच इस नाव पर है और उम्मीद कर रहा है कि नौका पर सवार सारे जानवर बच जाएं. इसी तरह घरों में बंद हम इनसान भी, जो कोविड के पीछे हटने का इंतजार कर रहे हैं, नोआ हैं. मानवीय रूपक में जोड़ने की ताकत है.
●प्राचीन मिथ क्या स्वाभाविक रूप से 21वीं सदी के लिए प्रासंगिक हैं या यह मिथकशास्त्रियों का काम है कि वे उन्हें संदर्भ सहित सामने रखें?
सभी कहानियां कुछ कहने की कोशिश कर रही हैं. मिथकीय कहानियां खास तौर पर ताकतवर होती हैं क्योंकि वे हमेशा उन शब्दों में बात करती हैं जिनमें सेक्युलर नैरेटिव बात नहीं करता—संसार की उत्पत्ति, संसार का अंत, जीवन का उद्देश्य. बिग बैंग की कहानी आपको जोश से नहीं भरती. यह इतना कहती है कि तुम कण हो. वैज्ञानिक ईर्ष्या, क्रोध और दुर्भाग्य सरीखी चीजें नहीं समझा सकते. कहानियां यह काम करती हैं.
—श्रीवत्स नवेतिया.