आपका नया शो सोशल मीडिया और ऐप्स की दुनिया दिखाता है. वैसे सोशल मीडिया के साथ आपका रिश्ता कैसा है?
मैं सोशल मीडिया पर ज्यादा नहीं हूं. पहले ट्विटर पर काफी ऐक्टिव था पर अब उससे भी दूर हूं क्योंकि वहां बेइंतिहां नफरत और अंधेरगर्दी मची हुई है.
बिट्टू मामा (नेवर किस...) और अलहदा किस्म के रवि गुप्ता (एस्केप लाइव) के किरदार में आपको क्या मजेदार लगा?
रवि गुप्ता के किरदार के जरिए हम देखते हैं कि कंपनियां अपने यूजर और उनकी संख्या को किस तरह से देखती हैं. दूसरी तरफ बिट्टू मामा एक आदर्शवादी रोमांटिक किरदार है...एक बड़ा ही प्यारा पंजाबी कैरेक्टर.
आज के किरदार काले और सफेद के बीच का स्पेस भी खंगाल रहे हैं. ऐसे में क्या नायक और खलनायक के बीच अंतर करना मुश्किल हो गया है?
फिल्म की सीमित लंबाई के चलते उसमें बहुत-सी चीजें छोड़नी पड़ती हैं जबकि आठ घंटे की एक सीरीज किरदारों की बहुत-सी परते उघाड़कर सामने ला सकती है. ऐक्टर्स और क्रिएटिव लोगों का यह बड़ा फायदा है.
मनोरंजन उद्योग में 35 से ज्यादा साल गुजारने के बाद क्या आपको लगता है आप वहां पर हैं जहां आपने सोचा था?
कभी-कभी लगता है कि आप और भी ज्यादा कुछ हो सकते थे पर फिर लगता है कि जो है पहले उसके लिए शुक्रिया अदा करना चाहिए. उससे आपके भीतर एक संतुलन बना रहता है. इस दौरान मैंने हर तरह का काम किया है और अब चीजें एक दिलचस्प मोड़ पर हैं.