ओडिशा ओपन जीतने के बाद किसने सबसे पहले बधाई दी?
पापा ने. वे उस वक्त कोर्ट में मेरे साथ ही थे. बाद में बॉक्सर अमित पंघाल ने भी ट्वीट करके बधाई दी.
अभी महज 14 की आपकी उम्र है, कभी ध्यान नहीं भटकता कि कोर्ट पर पसीना बहाने की बजाए थोड़ी देर कार्टून या ओटीटी पर कोई सीरीज ही देख लूं?
बिल्कुल नहीं, क्योंकि जब सोच ही लिया है कि प्लेयर बनना है तो फिर उस ऊंचाई पर पहुंचने के लिए कुछ त्याग तो करने ही पड़ते हैं ना!
बैडमिंटन के साथ पढ़ाई कैसे मैनेज कर रही हैं?
पढ़ाई को बराबर की अहमियत देते हुए मैं उसे भी अच्छी तरह से मैनेज करने की पूरी कोशिश करती हूं. पढ़ाई भी मेरे लिए उतनी ही जरूरी है. इस काम में मेरा स्कूल भी मुझे पूरा सपोर्ट करता है और पेपर के समय मेरे लिए एक्स्ट्रा क्लास लगवाई जाती है.
बैडमिंटन में उन्नति का सबसे बड़ा ड्रीम आखिर क्या है?
सबसे पहले शॉर्ट टर्म गोल तो रैंकिंग में ऊपर चढ़कर टॉप 100 में आने का है. वह कर पाई तो फिर मैं बड़े टूर्नामेंट्स में हिस्सा लेने में कामयाब हो सकूंगी. और हर प्लेयर की तरह ओलंपिक में भारत के लिए गोल्ड मेडल जीत कर लाने का सपना तो है ही. ओलंपिक की तैयारी आपको बिल्कुल शुरू से ही करनी होती है क्योंकि उस लेवल पर पहुंचना बहुत मुश्किल है. बड़ी मेहनत लगती है. वह एक दिन में नहीं होगा.
खिलाड़ियों के लिए मल्टी स्पोर्ट कितना जरूरी है?
बहुत ही जरूरी है. बैडमिंटन में जाने के बाद मैंने स्विमिंग शुरू की. गर्मियों में मैं स्विमिंग करती हूं, बैडमिंटन में आने के बाद मैंने कई और स्पोर्ट्स में भी ध्यान लगाया है.
अच्छा ये बताइए, पापा ने जब पढ़ाई से ज्यादा खेल पर ध्यान लगाने को कहा था तो आपका पहला रिएक्शन क्या था?
देखिए, मैंने सात साल की उम्र में खेलना शुरू कर दिया था. पहले पापा के साथ पार्क में खेला करती थी. फिर एकेडमी में जाने की इच्छा हुई तो छोटूराम स्टेडियम (रोहतक) में एडमिशन लिया. पापा भी स्पोट्र्स में करियर बनाना चाहते थे. पर उन्हें एकेडमिक फील्ड में जाना पड़ा. बाद में मेरा करियर बनाने के लिए उन्होंने प्रोफेसर की अपनी नौकरी छोड़ दी.