अन्स्क्रिप्टेड पढऩे में संस्मरण-सी लगती है जबकि है यह वार्तालाप. इस किताब के विचार ने किस तरह शक्ल ली?
अभिजात और मैंने जब बातचीत शुरू की तब सोचा भी नहीं था कि यह किताब बन जाएगी. पटकथा के अपने सत्रों के दौरान, वह भी पांच साल पहले, हम दोस्ताना अंदाज में कुछ बात करते जा रहे थे. और ये इसके पन्ने आल्मारी में कहीं पड़े थे. इन पर कहीं से (लेखिका) नसरीन मुन्नी कबीर की नजर पड़ गई, वो बोलीं कि इसमें तो किताब का पूरा मसाला है! हमने भी कह दिया, ‘‘हां, हां, क्यों नहीं!’’
आप कश्मीर के एक छोटे-से मोहल्ले में पले-बढ़े. आज आप हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के सबसे कामयाब फिल्मकारों में से हैं. आपकी सफलता के सूत्र क्या रहे हैं?
सच कहूं तो मेरी कामयाबी मुझे भी चौंकाती है. थ्री ईडियट्स में जैसा हमने कहा था कि अपने काम में हमेशा मैंने कामयाबी नहीं बल्कि उसे बेहतरीन बनाने के बारे में ही सोचा. आज मैं कामयाब हूं, यह एक तरह का चमत्कार ही है.
फिल्म निर्माण से जुड़े किस्सों-वाकयों के अलावा आपने इस किताब में निजी जिंदगी के बारे में भी बात की है. वह सब साझा करना कितना कठिन था आपके लिए?
अभिजात से मेरा रिश्ता 26 साल पुराना है और मेरी जिंदगी के बारे में मुझसे ज्यादा चीजें उसे याद हैं. वह मेरे भाई जैसा है. मुझे लगता है, अपनी जिंदगी की बातें साझा करने का यह शायद सबसे अच्छा और एकमात्र रास्ता था क्योंकि मैं किताब नहीं लिख रहा था बल्कि एक दोस्त से बातें कर रहा था.
किताब में कुछ बड़े ही खूबसूरत वाकए हैं—अमिताभ बच्चन आपके घर पर अपने पिता की कविता का पाठ कर रहे हैं; आर.डी. बर्मन परिंदा के लिए एक गाने की फंडिंग कर रहे हैं. आपको लगता है, इंडस्ट्री में आज भी उतनी ही गर्मजोशी है?
मेरे घर में, और मेरे दफ्तर में भी जहां मैं फिल्में बनाता हूं, अब भी वही गर्मजोशी है. इंडस्ट्री में वह गर्मजोशी है कि नहीं, यार ये आप लोग देखो. मुझे उसमें क्या लेना-देना! मुझे तो बस इसकी फिक्र है कि मेरी जिंदगी में गर्मजोशी बनी रहे. और उसके लिए हमेशा मेरी कोशिश जारी रहती है.
— श्रीवत्स नेवटिया