हमें यह बर्दाश्त नहीं कि कोई पहले से अंदाज लगा ले, फिर भी हम एक बार फिर वही करने जा रहे हैं: इससे पहले कि नया साल पूरी संजीदगी से शुरू हो, हमने जाने-माने विशेषज्ञों, विश्लेषकों और स्तंभकारों को आमंत्रित किया कि वे आएं और अर्थव्यवस्था और राजनीति की अपरिहार्य, सदाबहार हिदायतों और इबारतों से लेकर निजता के सरगर्म मुद्दों तक और सियासी बहसों से उपजी नाराजगी से लेकर सोशल मीडिया के गूंजते हुए गलियारों में चक्कर काटती फेक न्यूज तक हमें घेरने वाली चिंताओं में से कुछ से मुखातिब हों.
क्या हमारे उत्तरी पड़ोसी अच्छाई के रास्ते पर चलेंगे? क्या कभी हम स्मार्ट शहरों में जिंदगी जी पाएंगे या शहरी बदहाली ही हमारी तकदीर में बदी है? क्या सौर ऊर्जा का वाकई उज्ज्वल भविष्य है? क्या प्राचीन स्मारकों को लेकर उठते विवाद खबरों की सुर्खियों को अगवा करते रहेंगे? क्या 2018 का साल 2019 के चुनावों के इर्दगिर्द ही सिमटने जा रहा है, या कांग्रेस यह साल खत्म होने से पहले ही विधानसभा चुनावों में विलुप्त होने की कगार पर पहुंच जाएगी?
बेशक थोड़ा उकसाना पड़ा, पर हरकत में आए, तो हमारे पंडितों ने अपने भीतर के भविष्यवक्ता को उसकी बेडिय़ां खोलकर आजाद कर दिया और बताया कि आगे का रास्ता किन खंदक-खाइयों से (और कुछ सपाट समतलों से भी) भरा है. एक लेखक तो इतने बेरहम निकले कि उन्होंने यह कहने तक से गुरेज नहीं किया कि अगले साल आप यह पत्रिका नहीं पढ़ रहे होंगे—आपको पता नहीं, अब वीडियो ही चलेगा? इस पर तो खैर हम काम करेंगे ही, पर इसी अंक में एक लेख ने हमें याद दिलाया है, भविष्यवाणियों को कुछ ज्यादा ही आंका जाता है.
हम अब भी वक्त के संकेतों को पढऩे में यकीन करते हैं और जोखिम उठाने में हमें मजा आता है. भाग्य भी, जैसा क्रिकेट के पंडित कहा करते हैं, हिम्मतवालों को ही सहारा देता है (विराट कोहली के ताजातरीन फॉर्म के बावजूद). तो पेश हैं 12 लेख ताकि आप एक और दिलचस्प साल के लिए तैयार हो सकें. पढऩा मुबारक—और शुभकामनाएं!