महामारी के कारण लगे लॉकडाउन का झटका खुदरा क्षेत्र को जोरदार लगा है. स्थानीय किराना दुकान से लेकर शॉपिंग मॉल तक, लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में खुदरा दुकानदारों को बड़ी मुश्किलें पेश आई थीं. वैसे कुछ आर्थिक कामकाज पटरी पर आया जब आवश्यक चीजें बेचने वाले दुकानों को फिर से खोलने की छूट दी गई, और उन्हें कड़ी बंदिशों का पालन करना था—मसलन, दुकानों को एक दिन छोड़कर या फिर रोजाना सिर्फ कुछ घंटों के लिए खोला जाना था—और इससे बिक्री पर भारी बुरा असर पड़ा. माल ढुलाई में व्यवधान से कई जगहों पर चीजों की कमी हो गई और इसके नतीजतन महंगाई बढ़ी. अब भी शॉपिंग मॉल में ग्राहकों का आना कम ही है. इसकी वजह कड़ी सोशल डिस्टेंसिंग के मापदंड और लोगों के बीच वायरस को लेकर फैली दहशत है.
सप्ताहांत में कर्फ्यू और आंशिक लॉकडाउन अभी भी खुदरा क्षेत्र को चोट पहुंचा रहा है, क्योंकि रिटेलर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आरएआइ) का अगस्त का एक सर्वे कहता है कि खुदरा विक्रेताओं का हफ्ते का करीब 45 फीसद कारोबार सप्ताहांत में होता है. पिछले वर्ष जुलाई की तुलना में 63 फीसद कमी दर्ज की गई, वहीं जून में यह 67 फीसद था.
परिधान, खेल के सामान और सौंदर्य तथा सेहत के उत्पादों पर असर ज्यादा गंभीर पड़ा है. आरएआइ के मुताबिक, ग्राहकों ने अपनी खरीद आवश्यक वस्तुओं तक सीमित कर दी. कुछ खुदरा दुकानदारों को अपनी दुकानें बंद करनी पड़ीं क्योंकि उनके दुकान मालिकों के साथ किराए को लेकर उनकी बातचीत किसी नतीजे तक नहीं पहुंच पाई. इस क्षेत्र मेंतेजी से सुधार के मद्देनजर, आरएआइ की सिफारिश है कि छोटे खुदरा व्यापारियों के लिए जीएसटी हटा लिया जाए और करों में प्रोत्साहन पैकेज दिया जाए, क्रेडिट लिमिट को बढ़ाया जाए और विभिन्न राज्यों में कारोबार पर लगी बंदिशें कम की जाएं.
केस स्टडी
राजेश कुमार गुप्ता, 41 वर्ष
मालिक, राजेश इलेक्ट्रॉनिक्स, लखनऊ
लखनऊ के लोकप्रिय नाका हिंडोला इलेक्ट्रॉनिक्स मार्केट में राजेश इलेक्ट्रॉनिक्स नामक दुकान में सन्नाटा है. इसके मालिक राजेश कुमार गुप्ता कहते हैं कि मार्च से पहले वे हर महीने 200 आइटम बेच लेते थे और प्रति माह उनका शुद्ध लाभ 1 लाख रुपए तक होता था. त्योहारों में यह लाभ 5 लाख रुपए तक पहुंच जाता था. पर महामारी की वजह से उनका कारोबार ठप हो गया है. वे कहते हैं, ''कुछ बाजार फिर खुल गए हैं पर ग्राहक गायब हैं.
टीवी-फ्रिज की बिक्री 70 फीसद तक कम हो गई है.'' लॉकडाउन से पहले उनके यहां आठ कर्मचारी थे जो अब तीन बचे हैं. राजेश का लाभ भी महज 20,000-25,000 रुपए हो गया है. वे कहते हैं कि अपने परिवार की जरूरतें पूरी करने में मुश्किलों के कारण, वे अपनी दुकान बंद करने और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मरम्मत का वर्कशॉप खोलने की योजना बना रहे हैं.
—आशीष मिश्र