इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में निल बटा सन्नाटा होने के बाद चमड़ा और फुटवियर उद्योग धीरे-धीरे अपनी पटरी पर लौट रहा है. उम्मीद की जा रही है कि पिछले साल के कारोबार की तुलना में इस साल उस उद्योग में 8 से 10 फीसद की सिकुडऩ आएगी. फिर भी, अधिकतर उत्पादनकर्ता इस महामारी को अस्थायी बाधा ही मान रहे हैं. बड़े खिलाड़ी अपने बिजनेस मॉडल में बदलाव ला रहे हैं—पारंपरिक स्टोर की बजाए ई-कॉमर्स पर अधिक जोर दिया जा रहा है.
सरकार ने हाल में फुटवियर और चमड़ा उद्योग की मदद के लिए एक डेवलपमेंट काउंसिल का गठन किया है. अनुबंध पर उत्पादन करने वाले अधिकतर खिलाड़ी अभी ठिठके-से खड़े हैं, उनका 50 फीसद स्टॉक गोदामों में पड़ा है. बदतर कि ज्यादा कमाई वाले फॉर्मल जूतों की मांग बेहद कम है क्योंकि लोग घर से काम कर रहे हैं.
अच्छी बात यह कि निर्यात में संभावनाएं हैं. चमड़े के सामान के निर्यात बाजार, जो करीब 5.1 अरब डॉलर सालाना का है, पर अप्रैल से जुलाई के बीच 56 फीसद की मार पड़ी थी. अब जबकि अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे खुल रही है, न सिर्फ मांग में तेजी आई है (अगस्त में पिछले वर्ष के मुकाबले महज 17 फीसद कम रही) बल्कि कई देशों ने अपनी खरीददारी की सूची में से चीन को बाहर निकालना शुरू कर दिया है. भारत में सब खुल तो रहा है पर उसे आगे बढ़ाना आसान नहीं होगा. भारत हर साल 26 लाख जोड़े फुटवियर बनाता है पर यह घरेलू खपत (27 लाख जोड़े) के लिए भी पूरा नहीं पड़ता.
काउंसिल फॉर लेदर एक्सपोर्ट्स के चेयरमैन अकील अहमद पनारूना जोर देते हैं, ''सबसे पहले कारोबार में एक बदलाव आएगा, फिर नया निवेश आएगा.’’ पिछले दो महीनों में निर्यात के ऑर्डर आने लगे हैं. लेकिन ग्लोबल मार्केट पर कब्जे के लिए भारतीय खिलाडिय़ों को ग्लोबल वेंडर्स के साथ गठजोड़ करना होगा और कुछ मामलों में उन्हें कच्चे माल तथा संशाधित माल भी चाहिए होगा.
इस बीच, ताइवान की जूते निर्माता बड़ी कंपनी फाऊ चेन, जो बड़े ब्रांड्स के लिए स्पोर्ट्स शू का अनुबंध उत्पादन करती है, तेलंगाना में फैक्ट्री स्थापित करने के लिए राज्य सरकार के साथ बातचीत कर रही है. निर्माताओं को भारत में उत्पादन का एक विश्वस्तरीय माहौल बनाने की संभावनाएं इससे दिख रही है.
केस स्टडी
हरकीरत सिंह, 53 वर्ष
एमडी, एरो बर्द्स (वुडलैंड, वुड्स फुटवियर)
छंटनी: कोई नहीं
अन्य ब्रान्ड की तरह, वुडलैंड की बिक्री भी इस वित्तीय वर्ष के पहले तीन महीनों में सिफर रही. कंपनी के करीब 600 एक्सक्लूसिव स्टोर और 5,500 मल्टीब्रान्ड आउटलेट हैं जिनसे इसे तगड़ी चोट पहुंची.
वित्त वर्ष 20 में कंपनी का कारोबार 1,300 करोड़ रु. रहा जो बीते वर्ष से 50 करोड़ रु. अधिक है. इसका 60 फीसद राजस्व फुटवियर से आता है. इसे तगड़ा झटका लगा क्योंकि वुडलैंड के उत्पाद आउटडोर श्रेणी के होते हैं और कोविड व लॉकडाउन से उपभोक्ताओं का भरोसा दोबारा पाना आसान नहीं. बिक्री में तेजी आ रही है पर बीच-बीच लगे लॉकडाउन से अनिश्चितता बनी हुई है.
हरकीरत कहते हैं, ''हम अपने स्टोर के साथ डिजिटल ई-कॉमर्स का समन्वय करा रहे हैं.’’ उन्होंने समय का उपयोग तकनीकी रूप से बेहतर कपड़ों के लिए किया है. वे कहते हैं, ''हम पोलरटेक का प्रयोग जूतों-परिधानों में करते हैं. इससे पसीना तो बाहर निकल जाता पर यह पानी को अंदर नहीं जाने देता.’’
निर्यात बाजार में भारत के लिए संभावनाएं है क्योंकि कई देश अपनी खरीददारी की सूची में से चीनी वस्तुओं की जगह अन्य विकल्प की तलाश कर रहे हैं उद्योग