बोर्ड ऑफ इंडिया टुडे इकॉनॉमिस्ट्स के विशेषज्ञ बता रहे हैं कि वे क्या उम्मीद करते हैं केंद्रीय बजट 2021 से
2021 के बजट पर टिकी हैं भारी उम्मीदें—सरकार को चाहिए कि अर्थव्यवस्था को गिरते ग्रोथ, मांग और निवेश की दलदल से उबारे.
महामारी और लॉकडाउन ने सिनेमाघरों को सूना कर दिया तो एक्टरों और दर्शकों दोनों के लिए ओटीटी प्लेटफॉर्म बन गया वरदान
ऑनलाइन कक्षाएं 23 मार्च से शुरू हुईं और कॉलेज के अपने आइटी विभाग ने सभी को प्रशिक्षण दिया कि एमएस टीम्स में कक्षाएं कैसे ली जाएं.
कोविड की वजह से लगाए गए लॉकडाउन में बंद स्कूलों और ऑनलाइन पढ़ाई के बेअसर होने से शिक्षा व्यवस्था तबाही के कगार पर
प्रियांशी याद करती हैं, ‘‘त्यौहार आने वाले थे पर कोई उत्साह नहीं था.’’ उनके पति शिव 'सीजन टाइम’ में एसडीएस पर काम नहीं कर पाए.
आर्थिक मोर्चे पर मुकाबला ही 21वीं सदी का ‘‘ग्रेट गेम’’ होने वाला है. भारत को वैश्विक प्रतिस्पर्धाओं के लिए अपने द्वार खोलने होंगे. इससे अल्पावधि में रचनात्मक क्षति तो होती है लेकिन दीर्घावधि में यह आर्थिक शक्ति बनने की ओर अग्रसर करता है.
महामारी के साल में कई चुनौतियों के एक साथ आ धमकने का अर्थ है कि सरकार को फौज के आधुनिकीकरण का नए सिरे से आकलन करना होगा, बजट की प्राथमिकताएं बदलनी होंगी और रक्षा सुधारों में तेजी लानी होगी, जो पिछले दो दशक से अटके पड़े हैं.
समस्या के हल को लेकर भारत के नजरिए ने कोविड-19 की जंग में मदद की. अब आगे उसे स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति खर्च बढ़ाने, नई बीमारियों और उससे जुड़ी चिंताओं को प्राथमिकता के आधार पर पहचानने, उससे निबटने को एक अलग कार्यबल बनाने, प्राथमिक स्वास्थ्य के स्तर पर डिलिवरी सिस्टम मजबूत करने और बीमारियों से लडऩे को तकनीक का इस्तेमाल अपनी ताकत बढ़ाने के संदर्भ में करने की जरूरत
यह महामारी निश्चित रूप से दुनिया भर की अर्थव्यवस्था पर एक गहरा जख्म छोडऩे वाली है. वैश्विक अर्थव्यवस्था और राजनीति में अनिश्चितताओं को देखते हुए हमारे नीति निर्माताओं को अडिय़ल और हठधर्मी रवैया छोड़कर बहुत ही चौकस और चौकन्ना रहना होगा.
साल 2021 में नरेंद्र मोदी के कामकाज से यह तय होगा कि वे राजनीतिज्ञ की तरह उभरेंगे या फिर उनके लिए 2024 की राह मुश्किल हो जाएगी. विपक्ष के लिए भी शायद यह आखिरी मौका होगा कि वे एकजुट होकर मोदी का विजय रथ रोक लें.