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बार-बार चक्कर आना हो सकता है Vertigo का संकेत, जानिए क्या हैं लक्षण, ऐसे करें बचाव

क्रॉनिक वर्टिगो से जूझ रहे लोग सिर्फ अपनी बीमारी नहीं झेल रहे, बल्क‍ि वो दुनिया को ये भी दिखा रहे हैं कि हालात कैसे भी हों, हिम्मत और समझदारी से कैसे जिया जा सकता है. अगर आपको भी चक्कर आने की समस्या हो तो तत्काल जांच कराके इलाज शुरू कर दें. जानिए- वर्ट‍िगो क्या होता है.

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Representational photo
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सोचकर देख‍िए, जब आसपास सबकुछ घूमने लगे, तब खुद को थामना क‍ितना मुश्क‍िल लगता है. लेकिन वर्ट‍िगाे की जिंदगी में दस्तक कुछ इसी तरह के अनुभवों से दो-चार कराती है. जब पैरों तले जमीन ख‍िसकती महसूस होती है और चक्कर आते ही लोग जमीन पर ग‍िर जाते हैं.  आइए वर्ट‍िगो से जूझ रहे लोगों की जिंदगी और इस रोग के इलाज और बचाव के बारे में एक्सपर्ट से जानते हैं. 

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रेणु शर्मा (बदला हुआ नाम) सुबह 7 बजे उठती हैं, बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करती हैं. नाश्ता बनाती हैं और फिर ऑफिस जाने की तैयारी करती है. हमें ये सब आम लगता है, लेकिन रेणु जो कि क्रॉनिक वर्टिगो से जूझ रही हैं, उनके लिए बहुत मुश्क‍िल है.वर्टिगो मतलब वो एहसास जिसमें पैरों तले की जमीन हिलती लगती है, दीवारें घूमती हैं, और अचानक ऐसा लगता है कि अब ग‍िर जाएंगे. ऐसा एक बार नहीं, हफ्ते में कई बार होता है. 

बार-बार बेडरेस्ट, फिर भी नहीं थमीं

रेणु की तरह पूजा वर्मा भी पिछले 4 सालों से वर्टिगो से जूझ रही हैं. वो कहती हैं कि शुरुआत में समझ नहीं आता था कि क्या हो रहा है. कभी कभी चक्कर आते थे, उल्टी होती थी, डॉक्टर बेडरेस्ट बोल देते थे लेकिन कितनी बार बेडरेस्ट लें  पूजा कहती हैं कि जब घर चलाना हो, बच्चों की पढ़ाई देखनी हो और ऑफिस के डेडलाइन पूरे करने हों, तो बीमार पड़ने की इजाजत कहां मिलती है. 

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वर्टिगो के ट्रिगर: सोना भी मुश्किल

बहुत-सी महिलाओं के लिए वर्टिगो की सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि इसका कोई फिक्स टाइम नहीं होता. कभी रात को सोते वक्त जैसे ही करवट बदलें, चक्कर शुरू. ऑफिस में स्क्रीन पर काम करते हुए, अचानक बैलेंस बिगड़ना. बच्चों को झुककर उठाते समय, सिर चकराना. बैंक कर्मचारी स्वाति मिश्रा बताती हैं कि मेरे लिए स्क्रीन सबसे बड़ा ट्रिगर है. जब तक मॉनिटर देखती हूं, सब ठीक रहता है, जैसे ही नज़र घुमाई तो चक्कर शुरू. 

Coping मेथड्स: ज़िंदगी थमी नहीं है

फिजियोथैरेपी:  रेणु अब हर हफ्ते वेस्टिबुलर फिजियोथैरेपी सेशन लेती हैं. Pratyaksh physiotherapy and Rehabilitation centre 
 प्रत्यक्ष फिजियोथेरेपी एंड रिहैब‍िलेटेशन सेंटर की हेड डॉ ख्याति शर्मा कहती हैं कि एक्सरसाइज़ से फर्क पड़ता है. खासकर 'ब्रांट डारॉफ' और 'ईप्ले मैनूवर' जैसी थेरैपीज़ से बैलेंस कंट्रोल करना थोड़ा आसान होता है. वहीं, पूजा ने योग और मेडिटेशन को अपनी जिंदगी में शामिल किया है. वो कहती हैं कि जब अंदर का डर हावी होता है तो ध्यान मुझे शांत करता है. मैं हर सुबह 10 मिनट शांति से बैठती हूं. 

डाइट चेंज:
वर्टिगो को कंट्रोल करने के लिए हाई-सोडियम फूड से दूरी, पानी की भरपूर मात्रा और विटामिन B12 सप्लीमेंट्स से राहत मिलती है. 

एक्सपर्ट्स की राय

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डॉ. व‍िभोर उपाध्याय, मेदांता लखनऊ में न्यूरोलॉजिस्ट कहते हैं कि वर्टिगो एक सिंड्रोम है और हर व्यक्ति में इसके कारण और लक्षण अलग होते हैं. महिलाओं में हार्मोनल बदलाव और पुरुषों में थकान और स्ट्रेस भी इसे ट्रिगर कर सकते हैं. 

फिजियोथेरेपिस्ट डॉ ख्याति शर्मा बताती हैं कि वेस्टिबुलर रीहैब थैरेपी वर्टिगो के मरीजों के लिए वरदान है. एक्सरसाइज से दिमाग को दोबारा बैलेंस करने की ट्रेनिंग मिलती है. 

Emotional थकान भी करती है ट्रिगर 

स्वाति कहती हैं कि वर्टिगो सिर्फ शारीरिक तकलीफ नहीं है. वो डर, जो हर चक्कर के साथ आता है. कई बार महिलाओं को खुद पर शक करने पर मजबूर कर देता है. क्या मैं कमजोर हूं. क्या अब मैं ठीक से काम नहीं कर पाऊंगी. कई बार लगा कि नौकरी छोड़ दूं लेकिन फिर सोचा कि क्यों? बीमारी है तो इससे लड़ना ही सही कदम है.

वर्टिगो से राहत के लिए क्या करें? – हेल्थ और लाइफस्टाइल टिप्स

सही डायग्नोसिस ज़रूरी: हर बार चक्कर वर्टिगो की वजह से नहीं होता इसलिए ENT स्पेशलिस्ट या न्यूरोलॉजिस्ट से सही जांच कराएं. कभी-कभी ये Meniere’s disease, vestibular neuritis या cervical issues की वजह से भी हो सकता है. 

वेस्टिबुलर फिजियोथैरेपी अपनाएं
यह थैरेपी ब्रेन और इन्फरमेशन प्रोसेसिंग सिस्टम को दोबारा बैलेंस करने में मदद करती है. इसमें 'Epley maneuver', 'Brandt-Daroff exercises' जैसी एक्सरसाइज़ होती हैं जो dizziness कम करती हैं. 

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डाइट में ध्यान रखें ये बातें

Low sodium डाइट: ज्यादा नमक फ्लुइड रिटेंशन बढ़ाता है, जो वर्टिगो के ट्रिगर को बढ़ा सकता है. 
Hydration: दिनभर खूब पानी पिएं. 
Caffeine और alcohol से परहेज करें. 
Vitamin D और B12 की जांच कराएं, इनकी कमी वर्टिगो से जुड़ी हो सकती है. 
स्लीप हाइजीन और पोजीशन का ध्यान रखें. 
करवट बदलते समय धीरे-धीरे मूव करें और ज्यादा ऊंचा तकिया न लगाएं. 
सोने से पहले स्ट्रेचिंग करें. 
स्ट्रेस कम करने की टेक्निक्स यानी योग, प्राणायाम और माइंडफुलनेस मेडिटेशन दिमाग और शरीर दोनों को संतुलन में रखते हैं. स्ट्रेस वर्टिगो को ट्रिगर कर सकता है, इसलिए रोज़ कुछ मिनट शांत बैठना फायदेमंद है. 

डिजिटल हाइजीन
लंबे समय तक स्क्रीन देखने से बचें या फिर Anti-glare ग्लास या स्क्रीन प्रोटेक्टर का इस्तेमाल करें. हर 20 मिनट बाद 20 सेकंड के लिए 20 फीट दूर देखें (20-20-20 rule) जरूर अपनाएं. 

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