
Salman Khan is Suffering from Trigeminal neuralgia: 59 की उम्र में भी फिट और एक्टिव दिखने वाले सलमान खान ने खुलासा किया है कि वह एक नहीं बल्कि 3 गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं. ये बीमारियां ब्रेन एन्यूरिज्म, एवी मालफॉर्मेशन और ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया हैं. इनमें से दो बीमारियां दिमाग से जुड़ी हैं, जबकि तीसरी बीमारी चेहरे की नसों में दर्द का कारण बनती है. इस बीमारी को ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया कहा जाता है जो 'सुसाइड डिजीज' के नाम से भी फेमस है. सलमान को जो ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया बीमारी है ये क्या है और इसके लक्षण और ट्रीटमेंट क्या हैं और ये कितनी खतरनाक है, इस बारे में हमने डॉक्टर्स से जाना. तो आइए जानते हैं, उन्होंने इस बीमारी पर उनका क्या कहना है.
ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया क्या होता है?
ट्राइजेमिनल न्यूरलजिया (TN) एक ऐसी बीमारी है, जिसके कारण चेहरे पर बहुत तेज दर्द होता है, जो आपको बाकी सब काम छोड़कर चेहरा पड़कर बैठने पर मजबूर करती है. यह आमतौर पर तब होती है जब ब्लड वेसल आपके ब्रेनस्टेम (वो हिस्सा जो दिमाग को रीढ़ की हड्डी से जोड़ता है) के पास आपकी ट्राइजेमिनल नस पर दबाव डालती है. यह नस आपके सिर और चेहरे को सेंसेशंस देती है. ट्राइजेमिनल न्यूरलजिया एक टाइप का न्यूरोपैथिक दर्द होता है.ट्राइजेमिनल न्यूरलजिया को टिक डौलोरेक्स नाम से भी जाना जाता है.
आसान भाषा में समझें तो ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया में चेहरे के एक हिस्से में इस तरह का दर्द होता है, जैसे किसी ने बिजली का झटका दे दिया हो. यह दर्द कुछ ही सेकंड में खत्म हो जाता है.
बैंगलोर के स्पर्श हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट, न्यूरोसर्जन एंड स्पाइन सर्जन डॉ. अभिलाष बंसल ने इस बीमारी के बारे में समझाते हुए कहा,'हमारे दिमाग में एक बहुत अहम नस होती है, जिसे ट्राइजेमिनल कहा जाता है. ये नस चेहरे की स्किन से जुड़ी होती है और दिमाग तक सेंसेशंस, दर्द और यहां तक की गर्मी-ठंडक का एहसास तक पहुंचाती है. ये नस चेहरे के दोनों तरफ मौजूद होती है. ऐसे में ये दो हिस्सों में बंटी होती है.'
'हम इस बीमारी के बारे में एक तार (इलेक्ट्रिकल वायर) का उदाहरण लेकर समझते हैं. जैसे एक तार होता है, जिसके अंदर कॉपर होता है और बाहर इंसुलेशन (कोटिंग), वैसे ही इस नस के ऊपर भी एक सुरक्षा कोटिंग होती है. अगर इस नस पर किसी अन्य नस (ब्लड वेसल) का लंबे समय तक कोई दबाव पड़ता है या वह ट्राइजेमिनल से टकरा जाती है तो धीरे-धीरे इसकी कोटिंग घिस जाती है. जब कोटिंग घिस जाती है तो नस में शॉर्ट सर्किट जैसा होता है. जैसे ही ये नस एक्टिव होती है, अचानक से तेज और झटका जैसा दर्द होता है, जो इतना तेज होता है कि पीड़ित व्यक्ति अचानक से रोने लगता है.'
ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया के लक्षण क्या हैं?
दिल्ली के श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट के न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट के डायरेक्टर डॉ. राजुल अग्रवाल का कहना है, 'ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया का मुख्य रूप से सिर्फ एक ही लक्षण है और वो चेहरे पर अचानक होने वाला बहुत तेज दर्द है. यह दर्द आमतौर पर एक तरफ होता है. दर्द बिजली के झटके जैसा या सुइयों चुभने जैसा हो सकता है. दर्द के दौरान आपके चेहरे की मसल्स में ऐंठन भी हो सकती है. इसके साथ ही आपके चेहरे पर जलन भी हो सकती है और सुन्नपन का एहसास भी हो सकता है.'
ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया के प्रकार
लक्षणों के आधार पर ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया दो प्रकार का होता है.
पैरोक्सिस्मल टीएन (Paroxysmal TN): इसमें आपको चुबन वाला दर्द होता है जो बहुत तेज महसूस होता है, लेकिन ये कभी-कभी होता है. इसमें आपके चेहरे पर दर्द या जलन महसूस हो सकती है जो कुछ सेकंड से लेकर दो मिनट तक रह सकती है.
लगातार दर्द के साथ टीएन (TN with continuous pain): इसमें दर्द उतना तेज नहीं होता, जितना पैरोक्सिस्मल टीएन में होता है, लेकिन ये ज्यादा देर तक बना रहता है. आपको लगातार दर्द महसूस होता है. खास बात यह है कि आपको दर्द के साथ ही चुभन और जलन भी महसूस होती है.
आमतौर पर, ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया चेहरे के एक ही तरफ होता है, लेकिन स्पेशल केस में, यह आपके चेहरे के दोनों तरफ हो सकता है. हालांकि, दोनों तरफ एक ही समय पर दर्द नहीं होता है. कुछ पेशेंट्स में, ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया का दर्द समय के साथ बढ़ सकता है.
ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया किन लोगों को हो सकता है?
ये एक ऐसी बीमारी है जो किसी को भी हो सकती है. फिर चाहे वह छोटा बच्चा हो या फिर 50 साल से ऊपर का व्यक्ति. इसके होने की कोई तय समय सीमा नहीं है.
क्या 'सुसाइडल डिजीज' है ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया?
जब से सलमान खान ने इस बीमारी के बारे में खुलासा किया है तभी से इसे सुसाइडल डिजीज भी बुलाया जा रहा है. हालांकि, जब हमने डॉ.राजुल अग्रवाल से इस बारे में पूछा तो उन्होंने इस बात को नकार दिया और कहा कि उनके हिसाब से ये सुसाइडल डिजीज नहीं है. लोगों के बीच इस बीमारी को लेकर बस एक गलतफहमी है. इसे सुसाइडल डिजीज नहीं कहा जाना चाहिए.
डॉ. राजुल बोले, 'हम इस बीमारी को 'सुसाइडल डिजीज' नहीं कह सकते. कई जगहों पर इसे ऐसा कहा गया है, लेकिन ये सच नहीं है. शायद मीडिया या लोगों ने इसे इस तरह से लेबल कर दिया है, लेकिन मेडिकल साइंस में इसे सुसाइडल डिजीज के नाम से नहीं जाना जाता. असल में, ये एक बहुत तेज, झटके जैसा और सहन करना मुश्किल दर्द होता है, जो चेहरे की नस में होता है.'
'लोग इसे 'सुसाइडल डिजीज' इसलिए कहने लगे हैं क्योंकि दर्द इतना तेज होता है कि मरीज डिप्रेशन और स्ट्रेस में आ जाता है. मेरे 25 साल के करियर और मेडिकल कॉलेज के अनुभव में मैंने कभी भी किसी को इसे आधिकारिक रूप से 'सुसाइडल डिजीज' कहते नहीं सुना है. ये बस एक गलतफहमी है जिसे लोगों ने फैला दिया है.'
ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया का पता कैसे चलता है?
इस बीमारी का पता लगाने (डायग्नोसिस) के लिए डॉक्टर्स मरीज में दिखने वाले लक्षणों को अच्छे से ऑब्जर्व करते हैं. डॉ.राजुल बोले, 'जब कोई पेशेंट डॉक्टर के पास आता है और बताता है कि उसे चेहरे के एक तरफ बहुत तेज दर्द होता है, जो कुछ देर के लिए ही रहता है तो डॉक्टर को ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया होने का शक होता है. इसके बाद डॉक्टर एक खास तरह का MRI स्कैन करवाते हैं जिसे MRICSS कहते हैं. ये टेस्ट ट्राइजेमिनल नस को स्कैन करता है. इस स्कैन से ये देखा जाता है कि कहीं कोई खून वाली नस उस ट्राइजेमिनल नस को छू तो नहीं रही.'
इसके साथ ही ये टेस्ट ये भी देखता है कि ट्राइजेमिनल पर कोई ट्यूमर, इंफेक्शन, या सूजन तो नहीं है. ये सारी चीजें देखने से डॉक्टर ये समझ पाते हैं कि दर्द किस वजह से हो रहा है.
तो इस बीमारी का डायग्नोसिस 2 स्टेप्स में किया जाता है:
क्लिनिकल डायग्नोसिस: इसमें डॉक्टर्स पेशेंट्स के लक्षण सुनकर अनुमान लगाते हैं कि उन्हें क्या परेशानी हो सकती है.
स्कैनिंग और टेस्टिंग: ये लक्षण सुनने के बाद वह अपने दूसरे स्टेप पर पहुंचते हैं और स्कैनिंग-टेस्टिंग कराते हैं, जिससे असली कारण का पता चलता है.
कैसे किया जाता है ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया का इलाज?
डॉ.राजुल से जब ट्राइजेमिल न्यूराल्जिया के इलाज के बारे पूछा गया तो उन्होंने बताया कि इसके इलाज के लिए 4 तरीके अपनाए जाते हैं, जिनमें दवाओं से लेकर ऑपरेशन तक शामिल है.
1. दवाओं से इलाज:
इस बीमारी का इलाज करने का सबसे कॉमन तरीका दवाओं का इस्तेमाल है. पेशेंट्स को ठीक करने के लिए सबसे पहले ये दवाएं दी जाती हैं, जो नसों में होने वाले तेज दर्द को कम करती हैं. ज्यादातर सभी लोगों को इन दवाओं से आराम मिल जाता है, लेकिन कुछ लोगों पर इन दवाओं का असर देखने को नहीं मिलता है.
2. इंजेक्शन थेरेपी:
अगर किसी पेशेंट पर दवाएं काम नहीं करतीं, तो जिस नस में दर्द होता है उसमें सीधा इंजेक्शन दिया जा सकता है, जिससे दर्द में तुरंत राहत मिलती है.
3. रेडियोफ्रीक्वेंसी ट्रीटमेंट (Radiofrequency ablation):
रेडियोफ्रीक्वेंसी ट्रीटमेंट इस बीमारी का इलाज करने की एक खास तकनीक है, जिसमें नस को हल्का-सा गर्म करके दर्द को कम किया जाता है. ये तरीका भी कई मरीजों को आराम पहुंचाता है.
4. सर्जरी:
जब ऊपर दिए गए सभी तरीके फेल हो जाते हैं तब सर्जरी से उसे ठीक किया जाता है. अगर कोई खून की नस लगातार ट्राइजेमिनल नस को छू रही है, तो सर्जरी की जाती है. सर्जरी में नस और खून की नस के बीच एक सॉफ्ट कुशन जैसा हिस्सा डाला जाता है. इससे दोनों के बीच फिर कभी दबाव नहीं बनता है.
डॉ.राजुल अग्रवाल ने बताया कि कुछ पेशेंट्स में गामा नाइफ तकनीक का इस्तेमाल करके भी सर्जरी की जाती है.
यह एक ऐसी तकनीक है, जिसमें बिना चीरा लगाए या काटे बिना ही सर्जरी की जाती है. इसे एक खास मशीन से बाहर से ही किया जाता है और यह लगभग 75% मामलों में असरदार होती है.
क्या उम्र बढ़ने के बाद ये बीमारी और खतरनाक हो जाती है?
इस सवाल का जवाब देते हुए डॉ.राजुल ने बताया कि ऐसा कुछ नहीं है. वह बोले, 'नहीं, यह बीमारी सिर्फ दर्द से जुड़ी होती है. उम्र बढ़ने पर कुछ पेशेंट्स में दवाओं के साइड इफेक्ट्स ज्यादा दिख सकते हैं, लेकिन ये जानलेवा नहीं है.'