जापान के किसी भी कोने में और दिन के किसी भी वक्त चले जाइए, चावल से बनी कोई न कोई डिश मिल ही जाएगी. सादा चावल से लेकर सुशी और चाय से लेकर साके (खास तरह का अल्कोहल) में चावल का इस्तेमाल होता रहा. अब इसी देश में चावल की किल्लत हो चुकी, वो भी कुछ छोटी-मोटी नहीं. स्थिति ये है कि मार्च महीने में सरकार ने दो बार रिजर्व में रखे चावल की नीलामी कर डाली.
इस कमी की वजह क्या है, और हर चीज का तोड़ खोजने में माहिर ये देश चावल का भी विकल्प खोज लेगा? या ऑलरेडी खोजा जा चुका है?
ग्लोबल वार्मिंग से लेकर टायफून और भूकंप का असर जापान के स्टेपल फूड यानी चावल पर पड़ा. सरकारी रिकॉर्ड के हवाले से सीएनएन कहता है कि बीते दो सालों में ही टोक्यो में चावल की कीमत लगभग 55 फीसदी बढ़ गई. स्थिति इतनी भयावह है कि खुद सरकार दशकों से जमा रिजर्व निकाल रही है.
फरवरी में हुए सरकारी एलान के मुताबिक, आने वाले कुछ समय में ही 2 लाख टन से ज्यादा चावल नीलाम किया जाएगा. ये जापान सरकार के कुल भंडार का लगभग पांचवा हिस्सा है, जो साल 1995 से जमा किया जा रहा है. ये वो वक्त था जब देश में बेहद ठंडी गर्मियां पड़ी थीं और चावल की पैदावार कम हो गई थी. नतीजा ये हुआ कि ज्यादातर मामलों, खासकर चावल के मामले में खुद पर ही भरोसा करते देश को अनाज इंपोर्ट करना पड़ा था.
चावल को लेकर जापान का ये प्यार इतना गहरा है कि वहां के लोग बाहर से अनाज लेना भी पसंद नहीं करते. चावल प्रेम की जड़ें हजारों साल पुरानी हैं. माना जाता है कि यह लगभग 300 ईसा पूर्व यानी यायोई काल में शुरू हुई था. जब कोरियाई प्रायद्वीप से आए लोग अपने साथ धान भी लेकर आए थे, और आते ही मौका पाकर उसे उपजाना भी शुरू कर दिया. इससे पहले जापान के लोग जंगली फल, मांस-मछली जैसी चीजें खाते लेकिन चावल ने जैसे फूड चॉइस में एक लय डाल दी.
जल्द ही चावल की देवी इनारी की पूजा होने लगी. त्योहारों के वक्त राजा खुद खेतों में आते ताकि आम लोग भी चावल की कीमत समझ सकें. आगे चलकर ये करेंसी की तरह इस्तेमाल होने लगा. ये बार्टर सिस्टम का दौर था, जिसमें चावल के बदले आप सोना भी खरीद सकते थे. 17वीं सदी में सैनिकों को चावल ही तनख्वाह की तरह दिया जाता.
वक्त के साथ वहां चावल की कई किस्में पैदा होने लगीं. मसलन कुछ चावल चिपचिपे और सुगंधित होते हैं, तो कुछ बिल्कुल खिले हुए बनते हैं. हर डिश के लिए अलग तरह के चावल का इस्तेमाल होता रहा. जापान के लोग चावल को लेकर इतने पर्टिकुलर होते हैं कि बहुत से लोग विदेश यात्राओं के समय भी चावल साथ ले जाते रहे, या फिर फॉरेन लैंड पर खास जापानी दुकान खोजते हैं जहां उसी खासियत का अनाज मिले.
अपने किसानों को प्रमोट करने के लिए जापान सरकार खुद बहुत सीमित मात्रा में चावल बाहर से मंगवाती है. यहां सप्लाई चेन भी अलग है. डोमेस्टिक किसानों को फायदा हो सके, इसके लिए सरकार भारी सब्सिडी देती रही. किसान अपना अनाज एजेंट को बेचते हैं, जहां से वो होलसेलर्स के पास जाता है. यहीं से दुकानें और रेस्त्रां सीधे चावल खरीदते रहे.
चावल अब भी भले ही जापान के कल्चर से जुड़ा है लेकिन वक्त की मार इसपर भी पड़ी. जापान में एक टर्म आई हुई है- कोमे बनारे. इसका मतलब है चावल से अलगाव. अब जापानी घरों में डायनिंग टेबल पर चावल से बनी डिशेज की बजाए अंग्रेजी या वो खाना होता है, जो अमेरिका में प्रचलित है, जैसे ब्रेड और अंडा, जबकि पहले राइस डिश और मछली हुआ करती थी.
देश में चावल की डिस्ट्रिब्यूटर कंपनी माकिनो के एक सर्वे में निकलकर आया कि अब भी लगभग 85 फीसदी लोग रोज चावल खाते हैं लेकिन इनमें से 61 प्रतिशत लोग केवल एक समय ही राइस लेते हैं.
क्यों घट रहा चावल प्रेम
इसकी एक वजह जापानियों का देश-विदेश घूमना है. मजबूत पासपोर्ट के साथ वे आसानी से दुनिया के कई देशों की यात्रा कर सकते हैं. ज्यादातर एयरलाइंस अनाज जैसी चीजों से साथ यात्रा प्रतिबंधित करते हैं. इसके अलावा लंबे समय पर जाते हुए चावल कैरी करना, या फिर उसे अपने मुताबिक बना पाना भी संभव नहीं. नतीजा ये हुआ कि चावल प्रेमी जापानी इंटरनेशनल खानपान से जुड़ने लगे. नई पीढ़ इसमें और आगे है. वो चावल की बजाए ब्रेड को स्टेपल की तरह देखती है.
जापानी खाना बनाने में समय भी काफी लगता है. अगर चावल का कोई व्यंजन बनाना हो तो उसे सफाई से धोकर पहले उबालना होगा, फिर कोई डिश तैयार होगी. अल्ट्रा न्यूक्लियर हो चुके परिवारों में किसी के पास इतना वक्त नहीं. इसके अलावा जापान की आबादी बूढ़ी हो रही है. ऐसे में प्रोडक्शन हो भी तो डिमांड अपने-आप कम ही होगी.
देश में चावल की खपत को बढ़ाने और लोगों को चावल से फिर से जोड़ने के लिए कई अभियान तक चलाए जा रहे हैं. जैसे, लोगों के बाहर जाने के कारण चावल से दूरी नब्बे के दशक में ही दिखने लगी थी. तभी वहां आई लव राइस जैसा कैंपेन शुरू हुआ, जो लोगों को जापानी कल्चर की याद दिलाता. इसके तहत बहुत सी कॉन्टिनेंटल डिश जापानी चावल से बनाई जाने लगी.
चावल से लोगों को जोड़े रखने के लिए किसान और साइंटिस्ट भी काफी मशक्कत रह रहे हैं. कुछ साल पहले यहां नो-वॉश राइस का चलन बढ़ा. ये ऐसा चावल है, जिसे धोने में समय खर्च नहीं करना पड़ता. बता दें कि चावल धोने पर भी परंपरागत जापान में काफी वक्त बिताया जाता. अब म्यूसेनमई यानी नो-वॉश राइस मार्केट में है.
जापानी लोग चावल से दूर हो रहे हैं, इसके बाद भी यहां इसकी कमी दिख रही है. यहां तक कि इस कमी को पाटने के लिए सरकार अपना भंडार तक खाली कर रही है. चावल की नीलामी बड़ी बात है. नब्बे के दशक में यहां राइस रिजर्व की शुरुआत हुई. अब तक ये भंडार बेहद संवेदनशील समय पर ही खोला गया, जैसे साल 2011 की सुनामी या 2016 के भूकंप के दौरान. ये पहली बार है जब चावल की कमी को भरने के लिए सरकार को ऐसा कदम उठाना पड़ा.