scorecardresearch
 

साझी दुश्मनी तक सीमित या बढ़ चुका है चीन-पाकिस्तान संबंधों का दायरा, रिश्ते बिगड़े तो भारत के हिस्से क्या आएगा?

पाकिस्तान और चीन एक-दूसरे को ऑल-वेदर-फ्रेंड बताते हैं. हाल में पाक आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर ने चीन दौरे पर दोनों देशों को आयरन-ब्रदर्स तक कह दिया. चीन तारीफ में उतना खुला हुआ तो नहीं, लेकिन इस्लामाबाद के कश्मीर-राग पर हां में हां मिलाता है. क्या दोनों का आपसी सपोर्ट विशुद्ध दोस्ती है, या फिर साझा फायदे पर टिका है?

Advertisement
X
आसिम मुनीर ने बीजिंग पहुंचकर चीन के विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की. (Photo- Reuters)
आसिम मुनीर ने बीजिंग पहुंचकर चीन के विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की. (Photo- Reuters)

पाकिस्तानी आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर चीन दौरे पर हैं. वहां उन्होंने चीन के विदेश मंत्री से मुलाकात के बाद बयान दिया कि दोनों देश आयरन-बदर्स हैं. खबरों में यह भी है कि चीन ने पाक सैन्य प्रमुख को हर मुमकिन मदद देने का वादा किया. दोनों ही एशियाई देश लगातार एक-दूसरे के सहयोगी दिख रहे हैं, लेकिन क्या ये संबंध ऑर्गेनिक मित्रता का है, या फिर कुछ कॉमन है, जैसे साझा दुश्मन? क्या भारत से तनाव दोनों की दोस्ती की वजह है? यहां याद दिला दें कि कश्मीर पर चीन का साथ मिलता रहे, इसके लिए इस्लामाबाद ने पीओके का एक हिस्सा ही चीन को दे दिया था. 

क्या है इस संबंध का इतिहास

इस्लामाबाद और बीजिंग की केमिस्ट्री को समझना हो तो कुछ दशक पीछे जाना होगा. भारत की आजादी के साथ ही चीन को लगने लगा था कि उसका कंपीटिटर आ चुका है. वो सीमा को लेकर बकझक करने लगा और दोनों के रिश्ते बिगड़ने लगे. साठ की लड़ाई के बाद चीन को दक्षिण एशिया में एक ऐसा देश चाहिए था जो भारत को कमजोर कर सके, या फिर यूं कहें कि अस्थिरता ला सके. पाकिस्तान इस रोल के लिए बिल्कुल फिट था. यही वजह है कि चीन ने पाक को स्ट्रैटेजिक पार्टनर बनाना शुरू कर दिया. 

इस्लामाबाद ने क्या हित देखा

पाकिस्तान को एक मजबूत देश की जरूरत थी. अमेरिका तो दूर-दराज था, और अपेक्षाकृत ज्यादा संतुलित था. उसके और भी मसले थे, लेकिन चीन के साथ ये समस्था नहीं थी. हालांकि एक ताकतवर देश को खुश रखने के लिए पाकिस्तान को कुछ न कुछ टोकन ऑफ जेश्चर देना था. उसने बड़ा दांव खेला. साठ के दशक में ही पाकिस्तान ने पीओके की शक्सगाम वैली को ही चीन को दे दिया. सिनो पाकिस्तान फ्रंटियर एग्रीमेंट के तहत गिलगित-बाल्टिस्तान का ये बेहद लंबा-चौड़ा भाग भारत का वैध हिस्सा है. ऐतिहासिक तौर पर भी ये पक्का रहा. लेकिन बंटवारे के बाद पाक ने कश्मीर के जिन हिस्सों को हड़पा, शक्सगाम वैली उसी में आती है. 

Advertisement
chinese fm wang yi (Photo- AP)
चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने अपने लोगों की सुरक्षा को लेकर पाकिस्तान से सवाल भी किए. (Photo- AP)

क्यों किया ये सौदा

साल 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद चीन और भारत के रिश्ते बेहद बिगड़ चुके थे. पाकिस्तान ने इस मौके को परखा और चीन से मित्रता की पेशकश की. वो जानता था कि चीन को अगर वो कोई सहयोग दे, तो बदले में चीन भी भारत के खिलाफ उसके स्टैंड के साथ रहेगा. यही वजह है कि उसने पीओके का एक हिस्सा ही चीन को तोहफे में दे दिया, वो भाग जिसपर भारत का असल हक है. आसान तरीके से समझें किसी ने दूसरे का घर कब्जाकर किसी और को दे दिया. 

चीन और पाकिस्तान के बीच तब सीमा को लेकर कोई तय लाइन नहीं थी. सिनो पाक बॉर्डर एग्रीमेंट को पाकिस्तान ने यह कहते हुए लीगलाइज किया कि कश्मीर विवाद पर यह प्रोविजनल व्यवस्था है. यानी जब तक कश्मीर मसला हल न हो, यह बंदोबस्त तब तक के लिए है. हालांकि ये सीमा तय करने का नहीं, बल्कि एक लॉन्ग टर्म  रणनीतिक सौदा था. महंगा तोहफा देकर रिश्ता मजबूत करने का. 

भारत का रुख क्या था

भारत की तरफ से इस समझौते का कड़ा विरोध हुआ. उसका साफ कहना है कि पाकिस्तान का इस इलाके पर कोई वैध अधिकार नहीं, लिहाजा वो इसे किसी और को भी नहीं दे सकता. तत्कालीन सरकार से शुरू हुआ ये विरोध अब भी दोहराया जा रहा है. भारत ने यूएन के मंच पर बार-बार कहा कि शक्सगाम वैली अवैध रूप से कब्जाई गई भारतीय जमीन है. जब भी चीन या पाक वहां कोई एक्टिविटी करते हैं, देश औपचारिक तौर पर एतराज करता है. 

Advertisement

अभी शक्सगाम वैली में क्या चल रहा है

फिलहाल तक वहां कोई स्थाई बसाहट नहीं दिखी लेकिन रिपोर्ट्स के मुताबिक चीन वहां मॉडल विलेज के स्ट्रक्चर बना रहा है, ताकि लोग रहने लगें. अगर ऐसा होता है तो आमतौर पर सीमा विवाद और गहरा जाता है, जिसमें राजनीति और रणनीति के अलावा ह्यूमन सेंटिमेंट्स भी शामिल होते हैं क्योंकि बस चुके लोग अपनी जगह से उखड़ना नहीं चाहेंगे. इस चीज को देश जान-बूझकर हवा देते हैं ताकि विवाद फलता-फूलता रहे. 

Chinese officials including Xi Jinping (Photo- Reuters)
चीन की लीडरशिप ने पिछले कुछ सालों में पाकिस्तान में भारी इनवेस्टमेंट किया. (Photo- Reuters)

तो क्या रिश्ता भारत-विरोध तक सीमित

शुरुआत तो वहीं से हुई लेकिन अब बात यहीं तक सीमित नहीं. पिछले लगभग दो दशक में चीन और पाकिस्तान इकनॉमिक, रणनीतिक और कूटनीतिक तौर पर ज्यादा पक्की तरह से जुड़े. चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर पर बीजिंग अच्छा-खासा निवेश कर चुका. पाकिस्तान में खनन में भी उसके लोग हैं. यानी दोस्ती कॉमन दुश्मन से आगे आ चुकी. हालांकि भारत-विरोध अब भी साझा एजेंडा है. 

अगर दोनों देशों में दूरी आ जाए तो क्या फायदा भारत को मिलेगा

यह एक हाइपोथिटिकल सिचुएशन है. फिलहाल जैसे हालात हैं, उसमें ऐसा नहीं लगता. लेकिन अगर कभी ऐसा हो भी जाए तो भारत को इसका कूटनीतिक फायदा मिल सकता है. चीन-पाक साथ भारत के लिए दो-तरफा चुनौती है. अलगाव हुआ तो नई दिल्ली के पास अतिरिक्त वक्त होगा कि वो सीमा सुरक्षा के अलावा बाकी मुद्दों पर ज्यादा फोकस कर सके. चीन ने पाकिस्तान में भारी निवेश किया हुआ है. दोनों के बीच भरोसा डिगा और चीन ने फंड रोक लिया तो पहले से कमजोर पाक और कमजोर हो जाएगा. यह भी भारत के लिए फायदेमंद है. 

Advertisement

कई बार दोनों में हल्का-फुल्का तनाव भी दिखा

हाल ही में पाक सैन्य चीफ से पाकिस्तान में चीनी अधिकारियों की सुरक्षा पर सवाल हुए. दरअसल, पाकिस्तान में चीन के कई प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं, जिनके लिए लंबे समय तक वहां चीनी अधिकारी रहते हैं. इनमें से ज्यादातर बलूचिस्तान की तरफ तैनात हैं. इधर बलूच अलगाववादी मुहिम चला रहे हैं और पाक से आजादी चाहते हैं. इनके बीच चीनी अधिकारी भी कई बार गेहूं में घुन की तरह पिस चुके हैं. उनपर भी कई हमले हुए. अब इसे लेकर चीन कुछ आक्रामक हो रहा है. लेकिन इस रिश्ते में दोनों का जितना फायदा है, उसके आगे ये नुकसान शायद छुटपुट ही दिखे. 

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement